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Weapon worship on Vijayadashami: RSS की विजयादशमी शस्त्र पूजा, क्यों दशहरे पर संघ करता है हथियारों की पूजा?

Weapon worship on Vijayadashami: RSS की विजयादशमी शस्त्र पूजा, क्यों दशहरे पर संघ करता है हथियारों की पूजा?
Weapon worship on Vijayadashami: विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। विजयादशमी के दिन ही 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना हुई थी, जिसे आज तक शस्त्र पूजा (Weapon Worship) की परंपरा के साथ मनाया जाता है।

RSS और शस्त्र पूजा का महत्व:

विजयादशमी के अवसर पर RSS द्वारा की जाने वाली शस्त्र पूजा न केवल प्रतीकात्मक होती है, बल्कि यह भारतीय परंपराओं और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा भी है। संघ के प्रत्येक सदस्य के लिए यह दिन बेहद खास होता है, क्योंकि यह संगठन की स्थापना का दिन है। इस दिन शस्त्रों की पूजा कर उन्हें विजय और धर्म की रक्षा के प्रतीक के रूप में माना जाता है।

शस्त्र पूजा की प्राचीन परंपरा: Weapon worship on Vijayadashami

शस्त्र पूजा (Weapon Worship) की परंपरा को हिंदू धर्म में शक्ति पूजा के रूप में देखा जाता है। देवी दुर्गा और काली की पूजा के साथ शस्त्रों का पूजन किया जाता है, जो युद्ध और शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं। विजयादशमी पर नौ दिनों की नवरात्रि उपासना के बाद दसवें दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है। यह पूजा इस बात का प्रतीक है कि सत्य की विजय के लिए शक्ति का होना आवश्यक है, और धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रों का प्रयोग न्यायसंगत है।

संघ का उद्देश्य और सांस्कृतिक धरोहर

RSS का उद्देश्य भारतीय संस्कृति और समाज के मूल्यों को बनाए रखना है। इसके सदस्य नियमित रूप से शारीरिक प्रशिक्षण और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। संघ की सबसे छोटी इकाई शाखा कहलाती है, जहां स्वयंसेवक शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण के लिए इकट्ठा होते हैं। शस्त्र पूजा का महत्व भी यहीं पर निहित है कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। शस्त्र पूजा के दौरान शस्त्रों को देवी-देवताओं से संबंधित मानकर पूजा जाता है, ताकि समाज में एकता और शक्ति की भावना को बढ़ावा मिले।

RSS द्वारा की जाने वाली शस्त्र पूजा केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की रक्षा के उद्देश्य को भी उजागर करती है। यह आयोजन इस बात का संदेश देता है कि शक्तिशाली बनकर ही समाज और धर्म की रक्षा की जा सकती है।

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