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Election Freebies: चुनावी रेवड़ियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की सख्ती; केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी

Election Freebies: चुनावी रेवड़ियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की सख्ती; केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी
Election Freebies: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा वादा की जाने वाली मुफ्त उपहारों (चुनावी रेवड़ियां) के खिलाफ एक याचिका पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। याचिका में यह मांग की गई है कि इन चुनावी वादों को रिश्वत करार दिया जाए।

चुनावी रेवड़ियां: राजनीति या रिश्वत?

भारत में चुनावी रेवड़ियां (Election Freebies) हमेशा से राजनीतिक चर्चा का केंद्र रही हैं। राजनीतिक दलों द्वारा जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के मुफ्त उपहारों का वादा करना आम हो गया है। याचिकाकर्ता शशांक जे श्रीधर का मानना है कि चुनावों के दौरान नकद या अन्य उपहारों का वादा करना जनता को रिश्वत देने जैसा है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर बुरा असर पड़ता है।

याचिकाकर्ता के वकील बालाजी श्रीनिवासन ने अदालत के समक्ष यह दलील रखी कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार (Political Parties’ Free Gifts) का वादा, वोट के बदले रिश्वत की तरह देखा जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि इससे चुनावों की पारदर्शिता प्रभावित होती है और ये लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट का रुख: फ्रीबीज पर सख्ती

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर उनका पक्ष मांगा है। अदालत ने इस मामले को अन्य लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है, जो इसी मुद्दे से संबंधित हैं।

सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि अगर चुनावी वादों के रूप में किए गए मुफ्त उपहारों को बिना किसी कानूनी प्रावधान के छोड़ा गया, तो यह प्रथा भारतीय राजनीति में और गहरी पैठ बना सकती है। इसलिए अदालत ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि चुनाव-पूर्व अवधि में ऐसे वादों पर रोक लगाने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं।

चुनावी रेवड़ियां (Election Freebies) का मुद्दा लंबे समय से भारतीय राजनीति में एक विवाद का विषय बना हुआ है। राजनीतिक दल, चुनाव के दौरान जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के मुफ्त उपहारों का वादा करते हैं। यह प्रथा न केवल आर्थिक रूप से अस्थिर हो सकती है, बल्कि इससे चुनावी प्रक्रिया पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

वकील का तर्क और अदालत की सुनवाई

याचिकाकर्ता के वकील बालाजी श्रीनिवासन ने कोर्ट में यह दलील दी कि ऐसे मुफ्त उपहारों का वादा करना, चुनावी पारदर्शिता और निष्पक्षता को खतरे में डाल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तर्क को गंभीरता से लेते हुए केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है, ताकि इस मुद्दे पर उनका पक्ष सामने आ सके।

अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस मामले में जल्द सुनवाई की जाएगी और याचिकाकर्ता को अनुमति दी गई है कि वह सभी याचिकाओं पर जल्द सुनवाई के लिए मेंशन कर सकते हैं। अदालत का यह कदम दर्शाता है कि राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार (Political Parties’ Free Gifts) के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

क्या फ्रीबीज पर रोक लगेगी?

सुप्रीम कोर्ट का यह नोटिस निश्चित रूप से फ्रीबीज की प्रथा पर सख्ती की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब देखना यह है कि अदालत इस मामले में क्या निर्णय लेती है और केंद्र व चुनाव आयोग इस पर क्या रुख अपनाते हैं। चुनावों में चुनावी रेवड़ियां (Election Freebies) की प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनों में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।

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