महाराष्ट्र

महाराष्ट्र की धरती पर लौटा वीरता का प्रतीक: छत्रपति शिवाजी का ‘वाघ नख’, लेकिन क्या ये वापसी अस्थायी है?

वाघ नख
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छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से जुड़ी एक ऐतिहासिक वस्तु की वापसी ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। ये वस्तु है उनका प्रसिद्ध वाघ नख, जिसने भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी थी। लेकिन इस वापसी के साथ कई सवाल भी उठ रहे हैं, जो इस घटना को और भी रहस्यमय बना रहे हैं।

दरअसल 365 साल पहले, 11 नवंबर 1659 को, एक ऐसी घटना घटी जिसने मराठा साम्राज्य की नींव रख दी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने वाघ नख का इस्तेमाल करके अफजल खान को मार गिराया था। ये वाघ नख, जो शिवाजी की वीरता और चतुराई का प्रतीक बन गया, लंबे समय से लंदन के अल्बर्ट म्यूजियम में रखा हुआ था। अब ये भारत वापस आ गया है, लेकिन सिर्फ तीन साल के लिए।

इस वाघ नख को सतारा के महल में रखा गया है, जहां शिवाजी और अफजल खान की वो ऐतिहासिक मुलाकात हुई थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस अवसर पर उपस्थित रहकर इसका स्वागत किया। ये घटना मराठा गौरव के लिए एक बड़ा क्षण है।

लेकिन इस खुशी के बीच कई सवाल भी उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये वाघ नख सिर्फ तीन साल के लिए ही क्यों लाया गया है? क्या इसे स्थायी रूप से भारत नहीं लाया जा सकता था? इसके अलावा, कई इतिहासकारों ने इस बात पर भी संदेह जताया है कि क्या ये वही असली वाघ नख है जिसका इस्तेमाल शिवाजी ने किया था।
इस घटना ने भारत की अन्य ऐतिहासिक धरोहरों की याद भी दिला दी है जो अभी भी विदेशों में हैं। शिवाजी की तीन प्रसिद्ध तलवारें – ‘भवानी’, ‘जगदंबा’, और ‘तुलजा’ – अभी भी इंग्लैंड में हैं। इसके अलावा, विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा और बुद्ध की एक कांस्य प्रतिमा भी वहीं हैं। क्या ये सभी धरोहरें कभी भारत वापस आएंगी? ये सवाल अब और भी जोर से उठ रहा है।

इस बीच, महाराष्ट्र की राजनीति में ये मुद्दा गरमा गया है। विपक्षी दलों ने सरकार पर सवाल उठाए हैं कि क्या ये कदम सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया है। मराठा समुदाय, जो महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इस घटना को लेकर बेहद उत्साहित है। शिवाजी की वीरता और उनके गौरवशाली इतिहास का उपयोग अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता रहा है।
सरकार का कहना है कि इस वाघ नख को महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शित किया जाएगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकें। लेकिन क्या ये कदम पर्याप्त है? क्या हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को स्थायी रूप से वापस लाने के लिए और अधिक प्रयास नहीं करने चाहिए?

अंत में, ये कहना गलत नहीं होगा कि वाघ नख की वापसी ने न केवल इतिहास के पन्नों को फिर से खोला है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या हम अपनी धरोहरों को वापस लाने में सफल होंगे? क्या हम अपने इतिहास को सही तरीके से संरक्षित कर पाएंगे? ये वे सवाल हैं जिनका जवाब आने वाला समय ही देगा।

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