26/11 मुंबई आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस हमले के प्रमुख आरोपियों में से एक, तहव्वुर राणा, अब भारत की न्यायपालिका के सामने है। राणा पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, हत्या और आतंकवाद जैसे गंभीर आरोप हैं। क्या उसे मृत्युदंड की सजा हो सकती है? आइए, इस मामले को विस्तार से समझते हैं।
राणा पर लगे हैं गंभीर आरोप
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने तहव्वुर राणा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है। इनमें धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 121 (देश के खिलाफ युद्ध), 121ए (युद्ध की साजिश), 302 (हत्या), 468 (जालसाजी), और 471 (जाली दस्तावेज) शामिल हैं। इसके अलावा, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 18 और 20 के तहत भी मामला दर्ज है। इन धाराओं में मृत्युदंड का प्रावधान है, जिससे राणा के लिए सजा का रास्ता और कठिन हो सकता है।
प्रत्यर्पण और मृत्युदंड का सवाल
राणा को भारत लाने के लिए प्रत्यर्पण प्रक्रिया अपनाई गई। भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत दोनों देशों में मृत्युदंड का प्रावधान है। इसलिए, इस मामले में मृत्युदंड को बाहर रखने की कोई शर्त नहीं रखी गई। हालांकि, कुछ मामलों में, जैसे 2005 में अबू सलेम के प्रत्यर्पण के दौरान, भारत ने पुर्तगाल को मृत्युदंड न देने की गारंटी दी थी। लेकिन राणा के मामले में ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह और अभिषेक राय के अनुसार, प्रत्यर्पण एक न्यायिक प्रक्रिया है, जबकि निर्वासन कूटनीतिक। प्रत्यर्पण के तहत लाए गए राणा के मामले में, अदालत सबूतों और गवाहों के आधार पर सजा तय करेगी। भारत ने अमेरिका को ये आश्वासन दिया है कि राणा को हिरासत में पूरी सुरक्षा दी जाएगी और उसे प्रताड़ित नहीं किया जाएगा। लेकिन मृत्युदंड की संभावना को खारिज नहीं किया गया है।
भारत-अमेरिका संधि और अंतरराष्ट्रीय नियम
प्रत्यर्पण संधि के अनुसार, अगर एक देश में कोई सजा प्रतिबंधित है, तो दूसरा देश उसे लागू नहीं कर सकता। लेकिन भारत और अमेरिका, दोनों में मृत्युदंड का प्रावधान है, इसलिए ये नियम राणा पर लागू नहीं होता। इसके अलावा, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध का दूसरा वैकल्पिक प्रोटोकॉल, जो मृत्युदंड को समाप्त करने से संबंधित है, भारत ने हस्ताक्षर नहीं किया है। ऐसे में ये प्रोटोकॉल भी राणा के मामले में लागू नहीं होगा।
क्या कहता है कानून?
कानूनविदों का कहना है कि राणा के खिलाफ दर्ज धाराओं में मृत्युदंड का प्रावधान स्पष्ट है। अगर अदालत को सबूत और गवाही पर्याप्त लगे, तो मृत्युदंड की सजा सुनाई जा सकती है। हालांकि, भारत में मृत्युदंड केवल “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” मामलों में दिया जाता है। ऐसे में ये देखना होगा कि अदालत इस मामले को किस तरह से लेती है।
गौरतलब है कि तहव्वुर राणा का मामला न केवल भारत की न्यायिक प्रणाली के लिए, बल्कि भारत-अमेरिका के आपसी संबंधों के लिए भी महत्वपूर्ण है। 26/11 हमले ने देश को गहरे जख्म दिए, और अब राणा के खिलाफ कार्रवाई से पीड़ितों को न्याय की उम्मीद है। क्या राणा को मृत्युदंड मिलेगा? ये सवाल अभी अनसुलझा है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया और सबूत इस मामले में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
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