15 अगस्त 1950 को, जब भारत अपनी आजादी की तीसरी सालगिरह मना रहा था, असम और तिब्बत में एक भयानक भूकंप आया। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे यह प्राकृतिक आपदा भारत के स्वतंत्रता दिवस के जश्न को एक दर्दनाक यादगार में बदल गई।
जब जश्न बन गया मातम: 15 अगस्त 1950 का वो खौफनाक दिन
15 अगस्त का दिन हर भारतीय के लिए खास होता है। इस दिन हम अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1950 में इसी दिन एक बड़ी मुसीबत आई थी? चलिए आपको बताते हैं क्या हुआ था उस दिन।
भूकंप ने मचाई तबाही
15 अगस्त 1950 की शाम को, जब लोग आजादी के तीन साल पूरे होने की खुशी मना रहे थे, तभी असम में जमीन हिलने लगी। यह हिलना इतना जोरदार था कि लोग समझ ही नहीं पाए कि क्या हो रहा है। यह एक बहुत बड़ा भूकंप था, जिसकी ताकत 8.7 थी।
भूकंप का असर असम के साथ-साथ पड़ोसी देश तिब्बत में भी हुआ। इस भूकंप ने दोनों जगहों पर बहुत नुकसान किया। घर गिर गए, पहाड़ों से मिट्टी खिसकने लगी, और नदियाँ उफान पर आ गईं।
जानमाल का नुकसान
इस भूकंप में बहुत सारे लोगों की जान चली गई। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब 4,800 लोग मारे गए। असम में 1,500 से ज्यादा और तिब्बत में 3,300 लोगों की मौत हुई। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि मरने वालों की संख्या 20 से 30 हजार तक हो सकती है।
भूकंप का असर लंबे समय तक रहा
यह भूकंप इतना ताकतवर था कि इसे 20वीं सदी का छठा सबसे बड़ा भूकंप माना जाता है। इसने प्रकृति का संतुलन ही बिगाड़ दिया। पहाड़ों से मिट्टी खिसकने से 70 गाँव तबाह हो गए। नदियों में बाढ़ आ गई और चारों तरफ तबाही मच गई।
इस भूकंप के बाद असम को बहुत लंबे समय तक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लोगों को अपना घर-बार फिर से बनाना पड़ा और जिंदगी को पटरी पर लाने में काफी वक्त लगा।
याद रखने की जरूरत
15 अगस्त को हम आजादी का जश्न मनाते हैं, लेकिन साथ ही हमें उन लोगों को भी याद करना चाहिए जो इस भूकंप में चले गए। यह घटना हमें याद दिलाती है कि प्रकृति कितनी ताकतवर है और हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए।
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