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उज्जैन की रहस्यमयी मध्य रेखा और सिंधु-सरस्वती सभ्यता का अनोखा खुलासा – NCERT की नई पाठ्यपुस्तक में क्या है ऐसा जो बदल देगा हमारी सोच?

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भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक नया मोड़ आया है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा 6 की नई पाठ्यपुस्तक में कुछ ऐसे बदलाव किए हैं, जो हमारे इतिहास को एक नए नजरिए से देखने का मौका देते हैं। आइए इन बदलावों पर एक गहरी नजर डालें और समझें कि ये कैसे हमारी ऐतिहासिक समझ को प्रभावित कर सकते हैं।

सबसे पहले बात करते हैं उज्जैन की मध्य रेखा की। क्या आप जानते थे कि ग्रीनविच मध्य रेखा से पहले भारत की अपनी एक मध्य रेखा थी? नई पाठ्यपुस्तक में बताया गया है कि यह मध्य रेखा उज्जैन से होकर गुजरती थी। इसे ‘प्रधान मध्य रेखा’ कहा जाता था। यह जानकारी हमें भारत के प्राचीन वैज्ञानिक ज्ञान की महानता का अहसास कराती है। उज्जैन शहर कई सदियों तक खगोल विज्ञान का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यह बात हमें याद दिलाती है कि भारत में विज्ञान और गणित का ज्ञान कितना उन्नत था।

अब बात करते हैं हड़प्पा सभ्यता के नए नामकरण की। NCERT ने इस प्राचीन सभ्यता को अब ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से संबोधित किया है। यह नया नाम इस बात पर जोर देता है कि यह सभ्यता सिर्फ सिंधु नदी तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि सरस्वती नदी की घाटी में भी फैली हुई थी। पाठ्यपुस्तक में बताया गया है कि सरस्वती नदी घाटी में राखीगढ़ी और गणवेरीवाला जैसे बड़े शहरों के साथ-साथ कई छोटे शहर और कस्बे भी थे। यह जानकारी इस प्राचीन सभ्यता के विस्तार और महत्व को और भी स्पष्ट करती है।

एक रोचक तथ्य यह है कि सरस्वती नदी, जो एक समय में एक विशाल नदी थी, आज भारत में ‘घग्गर’ और पाकिस्तान में ‘हाकरा’ के नाम से जानी जाती है। यह नदी अब मौसमी बन गई है, जो हमें प्राकृतिक परिवर्तनों के बारे में सोचने पर मजबूर करती है।

पाठ्यपुस्तक में किए गए एक अन्य महत्वपूर्ण बदलाव में जाति आधारित भेदभाव का उल्लेख हटाया गया है। इसके साथ ही, बी.आर. आंबेडकर के अनुभवों को भी पाठ्यपुस्तक से निकाल दिया गया है। हालांकि, वेदों का विवरण दिया गया है, जिसमें बताया गया है कि महिलाओं और शूद्रों को इन ग्रंथों का अध्ययन करने का अधिकार नहीं था। यह बदलाव कुछ विवादास्पद हो सकता है, क्योंकि यह सामाजिक असमानताओं के ऐतिहासिक पहलुओं को कम करके आंकता प्रतीत होता है।

पुरानी पाठ्यपुस्तक में वर्ण व्यवस्था का विस्तृत वर्णन था, जिसमें बताया गया था कि कैसे कुछ पुजारियों ने लोगों को चार समूहों में बांटा था। इसमें यह भी उल्लेख था कि महिलाओं और शूद्रों को वैदिक अध्ययन की अनुमति नहीं थी। नई पाठ्यपुस्तक में इन विवरणों को हटा दिया गया है, जो इतिहास के प्रस्तुतीकरण में एक बड़ा बदलाव है।

इन सभी बदलावों से यह स्पष्ट होता है कि NCERT ने भारतीय इतिहास को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। यह दृष्टिकोण अधिक समावेशी और व्यापक प्रतीत होता है, जो भारत के प्राचीन वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों पर अधिक ध्यान देता है। हालांकि, कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक-ऐतिहासिक पहलुओं को कम करके आंकने का खतरा भी है।

अंत में, यह कहा जा सकता है कि ये बदलाव हमें अपने इतिहास के बारे में नए सिरे से सोचने और चर्चा करने का अवसर देते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम इन बदलावों पर खुले दिमाग से विचार करें और उनके निहितार्थों पर गंभीरता से सोचें। क्योंकि आखिरकार, हमारा इतिहास ही हमारी पहचान और भविष्य का मार्गदर्शक है।

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