महाराष्ट्र में एक बार फिर हिंदी भाषा को लेकर सियासी तूफान खड़ा हो गया है! राज्य सरकार के स्कूलों में हिंदी पढ़ाने के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने खुला मोर्चा खोल दिया है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने मुंबई, ठाणे और नासिक जैसे शहरों में स्कूलों में घुसकर हिंदी की किताबें फाड़ीं, जलायीं और प्रिंसिपलों को धमकी भरे पत्र थमाए। ये विवाद अब पूरे राज्य में चर्चा का केंद्र बन गया है।
राज ठाकरे का सरकार पर हमला
बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज ठाकरे ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने गरजते हुए कहा, “हिंदी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता!” ठाकरे ने आरोप लगाया कि ये सब राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नाम पर केंद्र और राज्य सरकार की साजिश है, जिसमें IAS लॉबी का दबाव काम कर रहा है। उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने 17 जून को ही मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हिंदी को अनिवार्य न करने की मांग की थी, लेकिन सरकार ने वादा तोड़ दिया।
ठाकरे ने स्कूल प्रिंसिपलों को चेतावनी देते हुए कहा, “हम देखेंगे कि बच्चे हिंदी कैसे पढ़ते हैं। अगर सरकार ने फैसला नहीं बदला, तो हम चुप नहीं बैठेंगे!” इसके बाद मनसे कार्यकर्ताओं ने कई स्कूलों में हिंदी की पाठ्यपुस्तकें फाड़कर और विरोध प्रदर्शन कर अपना गुस्सा निकाला।
क्या है सरकार का फैसला?
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने एक सरकारी आदेश (GR) जारी किया, जिसमें त्रिभाषा फॉर्मूले के तहत कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने की बात कही गई थी। हालांकि, विवाद बढ़ने के बाद सरकार ने बैकफुट पर आते हुए “अनिवार्य” शब्द हटा दिया और कहा कि ये वैकल्पिक होगा।
आदेश के मुताबिक, अगर किसी कक्षा में 20 से ज्यादा बच्चे हिंदी के बजाय कोई और भाषा पढ़ना चाहें, तो उनके लिए उस भाषा के शिक्षक या ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
सीएम फडणवीस ने दी सफाई
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा, “मैंने राज ठाकरे से बात की है। नए आदेश में कहीं भी अनिवार्यता का जिक्र नहीं है। कुछ स्कूलों में पहले से ही हिंदी पढ़ाई जाती है, अब इसे सिर्फ औपचारिक रूप दिया गया है।” उन्होंने जोड़ा कि बच्चों को अपनी पसंद की तीसरी भाषा चुनने की आजादी है।
विपक्ष ने भी साधा निशाना
कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए तीखा हमला बोला। प्रदेश अध्यक्ष हर्षववर्धन सपकाल ने कहा, “त्रिभाषा फॉर्मूला पंडित नेहरू का सपना था, जो मातृभाषाओं को बढ़ावा देने के लिए था। लेकिन अब हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है, जो मराठी संस्कृति पर हमला है!” उन्होंने आरोप लगाया कि ये कदम RSS के एजेंडे का हिस्सा है।
सियासी रणनीति या मराठी अस्मिता?
विशेषज्ञों का कहना है कि ये विवाद आगामी BMC चुनावों के लिए मराठी मतदाताओं को एकजुट करने की रणनीति हो सकती है। राज ठाकरे पहले भी मराठी अस्मिता के मुद्दों को लेकर सियासत कर चुके हैं। इस बार फिर यह मुद्दा उसी ओर इशारा कर रहा है।
स्कूल शुरू हो चुके हैं, किताबें खरीदी जा चुकी हैं, लेकिन इस सियासी घमासान ने बच्चों की पढ़ाई को मुश्किल में डाल दिया है। मराठी, हिंदी और शिक्षा के नाम पर उठा ये विवाद अब सवाल खड़े कर रहा है – क्या भाषा की लड़ाई में बच्चों का भविष्य दांव पर लगेगा?
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