Veg-Non-Veg Food Rules: मुंबई की सड़कों पर स्वादिष्ट खाने की रेहड़ी हो या पांच सितारा रेस्तरां, खाना खाने का शौक हर किसी को है। लेकिन हाल ही में एक उपभोक्ता अदालत का फैसला सामने आया, जिसने शाकाहारी और मांसाहारी भोजन (Vegetarian and Non-Vegetarian Food) की दुनिया में एक नई बहस छेड़ दी। एक दंपति ने शिकायत की थी कि उन्हें शाकाहारी मोमोज की जगह चिकन मोमोज मिले, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी। अदालत का कहना था कि अगर वे सख्ती से शाकाहारी हैं, तो उन्हें ऐसे रेस्तरां से ऑर्डर नहीं करना चाहिए जो मांसाहारी भोजन भी परोसता हो। इस मामले ने एक बार फिर खाद्य सुरक्षा और शाकाहारी-मांसाहारी भोजन के अलगाव (Food Segregation) के नियमों पर सवाल उठाए हैं। नई पीढ़ी, जो खाने की गुणवत्ता और सुरक्षा को लेकर सजग है, के लिए यह मुद्दा बेहद अहम है।
भारत में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत बने नियमों में साफ कहा गया है कि शाकाहारी और मांसाहारी भोजन (Vegetarian and Non-Vegetarian Food) को तैयार करने, पकाने और स्टोर करने में पूरी तरह अलगाव रखना जरूरी है। खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, रेस्तरां और खाने की रेहड़ियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कच्चा मांस और शाकाहारी सामग्री अलग-अलग रखी जाए। इसके लिए अलग रेफ्रिजरेटर, अलग कटिंग बोर्ड, चाकू और बर्तनों का इस्तेमाल अनिवार्य है। साथ ही, कर्मचारियों को क्रॉस-कंटैमिनेशन से बचने के लिए प्रशिक्षित करना भी जरूरी है। इन नियमों का मकसद है कि शाकाहारी ग्राहकों को उनकी पसंद के अनुसार शुद्ध भोजन मिले और खाद्य सुरक्षा से कोई समझौता न हो।
लेकिन हकीकत में इन नियमों का पालन कितना हो रहा है? नरीमन पॉइंट की एक रेहड़ी पर जब जांच की गई, तो पाया गया कि शाकाहारी सब्जियां और चिकन एक ही रेफ्रिजरेटर में, एक के ऊपर एक रखे हुए थे। रेहड़ी के मालिक, जो तीस साल की उम्र के आसपास थे, ने कहा कि उन्हें इन नियमों की कोई जानकारी नहीं है। यही हाल कई छोटे रेस्तरां और रेहड़ियों का है, जहां न तो अलग बर्तनों का इस्तेमाल होता है और न ही कर्मचारियों को कोई खास प्रशिक्षण दिया जाता है। यह स्थिति न केवल खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि यह उन लोगों के विश्वास को भी तोड़ती है जो शाकाहारी भोजन को अपनी संस्कृति और विश्वास का हिस्सा मानते हैं।
एफडीए और खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने नियम तो बनाए हैं, लेकिन इनका पालन सुनिश्चित करने में कमी साफ दिखती है। एक वरिष्ठ एफडीए अधिकारी ने बताया कि नियम तोड़ने पर लाइसेंसधारी रेस्तरां पर 5 लाख रुपये तक और रजिस्टर्ड रेहड़ियों पर 25 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। लेकिन निरीक्षण की कमी एक बड़ी समस्या है। मुंबई में पिछले तीन सालों से केवल पांच खाद्य सुरक्षा अधिकारी हैं, जबकि जरूरत 49 की है। इस महीने 40 नए अधिकारियों की भर्ती होने की बात कही गई है, लेकिन अभी तक छोटे रेस्तरां और रेहड़ियों पर निरीक्षण न के बराबर हुए हैं। कई रेस्तरां मालिकों का कहना है कि उनके यहां दशकों से कोई जांच नहीं हुई।
बड़े रेस्तरां और चेन इस मामले में कुछ हद तक बेहतर हैं। नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और वाह! मोमो के सीईओ सागर दरयानी ने बताया कि बड़े रेस्तरां एफएसएसएआई के नियमों का पालन करते हैं। वे न केवल शाकाहारी और मांसाहारी भोजन के अलगाव (Food Segregation) को सुनिश्चित करते हैं, बल्कि अलग-अलग फ्रायर, स्टीमर और बर्तनों का भी इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, वे स्वतंत्र ऑडिटर नियुक्त करते हैं जो स्टाफ के दस्ताने पहनने से लेकर सामग्री की समाप्ति तिथि तक हर चीज की जांच करते हैं। लेकिन छोटे रेस्तरां और रेहड़ियों में यह अनुशासन देखने को नहीं मिलता। एक प्रमुख रेस्तरां मालिक ने कहा कि छोटे विक्रेता अक्सर पानी की गुणवत्ता तक पर ध्यान नहीं देते, जिससे खाद्य सुरक्षा और बिगड़ती है।
यह मुद्दा नई पीढ़ी के लिए खास तौर पर महत्वपूर्ण है, जो खाने की गुणवत्ता, स्वच्छता और अपनी पसंद के प्रति सजग है। शाकाहारी भोजन भारत की संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा है, और कई लोग इसे अपनी धार्मिक या नैतिक मान्यताओं से जोड़ते हैं। ऐसे में, रेस्तरां और रेहड़ियों की लापरवाही न केवल उनके विश्वास को ठेस पहुंचाती है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी जोखिम पैदा करती है। नियमों का पालन और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है ताकि मुंबई जैसे शहर में हर व्यक्ति को सुरक्षित और शुद्ध भोजन मिल सके।