भारत में पानी की किल्लत: भारत में भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। IIT गांधीनगर की एक ताजा रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पिछले 20 सालों में उत्तर भारत ने 450 घन किलोमीटर भूजल खो दिया है, जो देश के सबसे बड़े जलाशय इंदिरा सागर बांध को 37 बार भरने के लिए पर्याप्त है।
भूजल का गिरता स्तर
रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत में भूजल की कमी का मुख्य कारण मानसून की बारिश में कमी और सर्दियों के मौसम में तापमान का बढ़ना है। 2002 से 2021 तक उत्तर भारत में 450 घन किलोमीटर भूजल कम हुआ है। बारिश की कमी और गर्म सर्दियों के कारण फसलों की सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भरता बढ़ गई है।
बारिश और तापमान में बदलाव
1951 से 2021 के बीच, मानसून के मौसम में बारिश में 8.5% की कमी आई है। इसी अवधि में सर्दियों का तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के शोधार्थियों के अनुसार, भविष्य में कम बारिश और बढ़ते तापमान के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और भूजल रिचार्ज में कमी आएगी।
सिंचाई पर बढ़ी निर्भरता
रिपोर्ट में पाया गया कि 2022 की सर्दियों में गर्म मौसम और मानसून की कमी के कारण भूजल पर निर्भरता बढ़ी है। मिट्टी की नमी कम हो रही है, जिससे अधिक सिंचाई की आवश्यकता हो रही है। भूजल रिचार्ज में 6-12% की गिरावट आने का अनुमान है।
रिपोर्ट में पाया गया कि 2022 की सर्दियों में गर्म मौसम और मानसून की कमी के कारण भूजल पर निर्भरता बढ़ी है। मिट्टी की नमी कम हो रही है, जिससे अधिक सिंचाई की आवश्यकता हो रही है। भूजल रिचार्ज में 6-12% की गिरावट आने का अनुमान है।
भविष्य की चुनौतियां
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि मानसून की बारिश में कमी और सर्दियों के तापमान में वृद्धि के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग 20% तक बढ़ सकती है। 2009 में कम मानसून और सर्दियों के तापमान में 1 डिग्री की बढ़ोतरी से भूजल भंडारण में 10% की कमी आई थी।
समाधान की दिशा में कदम
इस स्थिति को सुधारने के लिए हमें मानसून के दौरान हल्की और लगातार बारिश की जरूरत है। भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए मानसून की बारिश और सिंचाई के पानी का सही तरीके से उपयोग करना महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का मानना है कि पानी की बचत और प्रभावी भूजल प्रबंधन के उपायों को अपनाना होगा ताकि भविष्य में पानी की किल्लत से बचा जा सके।