नई दिल्ली विधानसभा (New Delhi Legislative Assembly) का इतिहास बेहद रोचक और कई कहानियों से भरा हुआ है। आज की नई दिल्ली विधानसभा का स्वरूप 2008 के परिसीमन के बाद तैयार हुआ, लेकिन इसका अस्तित्व इससे पहले एक अलग तरीके से था। ये विधानसभा गोल मार्केट और मिंटो रोड की पुरानी विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाई गई। पहले इन सीटों के नाम से ही ये क्षेत्र पहचाना जाता था।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव 2025 में ये सीट एक बार फिर से चर्चा में है। दिल्ली की जनता 5 फरवरी 2025 को मतदान करेगी, और 8 फरवरी को परिणाम घोषित किए जाएंगे। पर क्या आप जानते हैं कि नई दिल्ली विधानसभा का निर्माण कैसे हुआ और इसका इतिहास कितना दिलचस्प है? चलिए, आपको इसकी पूरी कहानी बताते हैं।
दिल्ली के पहले विधानसभा चुनाव का इतिहास
दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव 27 मार्च 1952 को हुआ। तब देश ने आजादी के कुछ ही साल पूरे किए थे और राजनीति अपनी नई दिशा तय कर रही थी। उस समय दिल्ली में कुल 48 विधानसभा सीटें थीं। दिलचस्प बात ये है कि उस समय कुछ सीटों से एक नहीं, बल्कि दो-दो विधायक चुने जाते थे। ये परंपरा आज के चुनावों से बिल्कुल अलग थी।
1952 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व देखने को मिला। कांग्रेस ने 47 सीटों पर चुनाव लड़ा और 39 पर जीत दर्ज की। भारतीय जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी) ने 31 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिसमें से 5 ने जीत हासिल की। अन्य पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी अपनी जगह बनाई, लेकिन कांग्रेस का दबदबा स्पष्ट था।
दो सीटों को मिलाकर बनी नई दिल्ली विधानसभा
नई दिल्ली विधानसभा (New Delhi Legislative Assembly) की कहानी 2008 के चुनावी परिसीमन से शुरू होती है। इससे पहले, इस क्षेत्र को गोल मार्केट और मिंटो रोड सीटों के नाम से जाना जाता था। लेकिन परिसीमन के बाद इन दोनों सीटों को मिलाकर नई दिल्ली विधानसभा बनाई गई।
ये बदलाव सिर्फ नाम का नहीं था। नई दिल्ली विधानसभा, जो अब राष्ट्रीय राजधानी के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है, तबसे लगातार सुर्खियों में रही है। यहां का विकास और राजनीतिक गतिविधियां पूरे देश का ध्यान खींचती हैं।
1952 में दिल्ली के पहले चुनाव का विशेष महत्व
1952 के पहले विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 48 सीटों में से 6 ऐसी थीं, जहां से दो-दो विधायक चुने गए। इन सीटों में रीडिंग रोड, रहगर पुरा देव नगर, सीताराम बाजार तुर्कमान गेट, पहाड़ी धीरज बस्ती जुलाहा, नरेला और मेहरौली शामिल थीं।
दिलचस्प बात ये है कि उस समय एक उम्मीदवार एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ सकता था, और अगर वो दोनों सीटों पर जीतता, तो उसे एक सीट छोड़नी पड़ती थी।
1993 में दिल्ली की विधानसभा का पुनर्गठन
1952 के बाद, दिल्ली केंद्र सरकार के अधीन आ गई और विधानसभा का अस्तित्व खत्म हो गया। हालांकि, 1993 में, एक बार फिर दिल्ली को अपनी विधानसभा मिली और लोकतंत्र की परंपरा को बहाल किया गया। इस नए अध्याय ने दिल्ली की राजनीति में नई दिशा दी और आम जनता को अपने क्षेत्र के विकास में भागीदारी का मौका दिया।
नई दिल्ली विधानसभा: एक प्रतिष्ठित सीट
नई दिल्ली विधानसभा (New Delhi Legislative Assembly) आज दिल्ली की सबसे प्रतिष्ठित सीटों में से एक है। यहां के विधायक हमेशा से मीडिया और जनता के केंद्र में रहे हैं। चाहे वो विकास कार्यों की बात हो या राजनीतिक बहस, ये सीट हमेशा चर्चा में रहती है।
गोल मार्केट और मिंटो रोड को मिलाकर बनाई गई इस सीट का राजनीतिक महत्व आज भी वैसा ही है। यहां के चुनाव परिणाम न केवल दिल्ली की राजनीति को, बल्कि देश की राजनीतिक दिशा को भी प्रभावित करते हैं।
नई दिल्ली विधानसभा का इतिहास केवल राजनीतिक घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि ये दिल्ली और भारत के लोकतंत्र के विकास का एक अहम हिस्सा भी है। 1952 के पहले चुनाव से लेकर 2025 के आगामी चुनाव तक, इस विधानसभा का सफर अनेक उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है।
नई दिल्ली विधानसभा का इतिहास (History of New Delhi Legislative Assembly) हमें ये समझने का मौका देता है कि कैसे एक क्षेत्र का नाम और उसकी पहचान बदलते समय के साथ राजनीतिक और प्रशासनिक जरूरतों के हिसाब से ढलता गया। ये कहानी केवल इतिहास नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की ताकत का प्रतीक भी है।
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