रेडक्लिफ लाइन: 17 अगस्त 1947 को, भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐसी रेखा खींची गई जिसने इतिहास बदल दिया। इस रेखा को रेडक्लिफ लाइन कहा जाता है। आइए जानें इस रेखा की कहानी, जिसने लाखों लोगों की जिंदगी बदल दी और दो नए देशों का जन्म हुआ।
रेडक्लिफ लाइन: देश बंटवारे की दर्दनाक दास्तान
भारत की आजादी की खुशी में एक बड़ा दर्द छिपा था – देश का बंटवारा। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, तब एक नए देश पाकिस्तान का भी जन्म हुआ। लेकिन इन दोनों देशों के बीच की सीमा तय करने का काम अभी बाकी था। यह काम पूरा हुआ 17 अगस्त को, जब रेडक्लिफ लाइन खींची गई।
रेडक्लिफ लाइन क्या है?
रेडक्लिफ लाइन वो रेखा है जो भारत और पाकिस्तान को अलग करती है। इस रेखा का नाम सर सिरिल रेडक्लिफ के नाम पर रखा गया, जो एक अंग्रेज वकील थे। उन्हें ही यह बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी कि वो दोनों देशों के बीच सीमा तय करें।
रेडक्लिफ को यह काम क्यों मिला?
अंग्रेजों ने सोचा कि इस काम के लिए एक ऐसा व्यक्ति चाहिए जो भारत से जुड़ा न हो। इसलिए उन्होंने रेडक्लिफ को चुना। मजेदार बात यह है कि रेडक्लिफ पहले कभी भारत आए ही नहीं थे! उन्हें भारत की भौगोलिक या सामाजिक स्थिति के बारे में कुछ खास पता नहीं था।
रेडक्लिफ लाइन का असर
इस रेखा ने सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब और बंगाल को पहुंचाया। ये दोनों राज्य दो हिस्सों में बंट गए। पंजाब का कुछ हिस्सा भारत में रहा और कुछ पाकिस्तान में चला गया। इसी तरह बंगाल का पश्चिमी हिस्सा भारत में रहा और पूर्वी हिस्सा पाकिस्तान का हिस्सा बन गया (जो अब बांग्लादेश है)।
रेडक्लिफ के सामने चुनौतियां
रेडक्लिफ के पास इतना बड़ा काम करने के लिए सिर्फ 6 हफ्ते थे। उन्हें ऐसी रेखा खींचनी थी जिससे ज्यादातर हिंदू भारत में और ज्यादातर मुसलमान पाकिस्तान में रहें। लेकिन इतने कम समय में इतना बड़ा फैसला लेना आसान नहीं था।
बंटवारे का दर्द
17 अगस्त को जब रेडक्लिफ लाइन का ऐलान हुआ, तब लाखों लोगों की जिंदगी बदल गई। बहुत से लोगों को अपने घर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा। कई परिवार बिछड़ गए। दंगे हुए जिनमें बहुत से लोग मारे गए। यह एक ऐसा जख्म था जो आज तक नहीं भरा है।
रेडक्लिफ लाइन की कहानी हमें याद दिलाती है कि कैसे कुछ फैसले पूरे देशों की किस्मत बदल सकते हैं। यह एक ऐसी घटना थी जिसने लाखों लोगों की जिंदगी बदल दी और जिसका असर आज भी हम देख सकते हैं।
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