भारत में “इनमें से कोई नहीं” (None of the Above – NOTA) विकल्प को 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लागू किया गया था। इसका मकसद मतदाताओं को ये अधिकार देना था कि अगर वे किसी भी उम्मीदवार को उपयुक्त नहीं मानते, तो वे अपना विरोध दर्ज कर सकते हैं।
2014 के लोकसभा चुनावों में पहली बार EVM मशीनों में NOTA का बटन जोड़ा गया और इसे 1.08% वोट मिले। लेकिन, समय के साथ इसकी लोकप्रियता घटती गई और 2024 के चुनावों में ये आंकड़ा 0.99% तक गिर गया, जो अब तक का सबसे कम है।
2024 चुनाव में NOTA को सबसे कम वोट क्यों मिले?
2024 के लोकसभा चुनावों में NOTA को इतिहास का सबसे कम वोट शेयर मिला। इस गिरावट के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे –
राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि
पहले के मुकाबले अब लोग अपने मताधिकार का अधिक समझदारी से उपयोग कर रहे हैं। वे किसी भी प्रत्याशी को वोट न देने की बजाय, कम से कम बुरे विकल्प को चुनने की प्रवृत्ति अपना रहे हैं।
NOTA का प्रभावी न होना
मतदाता धीरे-धीरे ये समझने लगे हैं कि NOTA का सीधा असर चुनाव के नतीजों पर नहीं पड़ता। किसी भी सीट पर NOTA को चाहे जितने भी वोट मिल जाएं, उससे चुनाव के परिणाम नहीं बदलते। इस कारण कई लोग इसे बेकार मानने लगे हैं और इसका इस्तेमाल कम कर रहे हैं।
सकारात्मक बदलाव की उम्मीद
मतदाता अब चुनाव में भागीदारी को ज्यादा महत्व दे रहे हैं और ये सोच रहे हैं कि अगर उन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है, तो वे कम से कम योग्य उम्मीदवार को वोट देकर सरकार चुनने में मदद करें।
राजनीतिक दलों की रणनीति
अब राजनीतिक पार्टियां अधिक सक्रिय होकर उम्मीदवारों का चयन कर रही हैं, जिससे मतदाताओं को बेहतर विकल्प मिल रहे हैं। नतीजतन, NOTA का प्रयोग कम हुआ है।
किन राज्यों में NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिले?
हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर NOTA का वोट शेयर कम हुआ है, लेकिन कुछ राज्यों में इसका प्रभाव अभी भी दिखाई देता है।
बिहार में NOTA को सबसे ज्यादा 2.07% वोट मिले।
दादर और नगर हवेली तथा दमन और दीव में ये 2.06% रहा।
गुजरात में 1.58% वोटों के साथ इसका उपयोग किया गया।
नगालैंड में ये सबसे कम 0.21% दर्ज किया गया।
क्या भारत में NOTA का भविष्य खत्म हो रहा है?
NOTA का उद्देश्य विरोध दर्ज करना और राजनीतिक दलों को ये दिखाना था कि जनता उनके उम्मीदवारों से संतुष्ट नहीं है। लेकिन इसका कोई ठोस कानूनी असर नहीं होने के कारण इसकी लोकप्रियता कम हो रही है।
अगर सरकार NOTA को अधिक प्रभावी बनाना चाहती है, तो इसमें कुछ बदलाव किए जा सकते हैं, जैसे –
NOTA को प्रभावी बनाने के लिए नया कानून: अगर किसी क्षेत्र में NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, तो वहां दोबारा चुनाव कराए जा सकते हैं।
राजनीतिक दलों के लिए एक सख्त संदेश: NOTA को एक प्रभावशाली चेतावनी के रूप में इस्तेमाल किया जाए, जिससे दलों को बेहतर उम्मीदवार खड़े करने के लिए मजबूर किया जा सके।
जनता को इसके महत्व के बारे में अधिक जागरूक करना: कई मतदाता अभी भी NOTA के प्रभाव और इसके उपयोग को ठीक से नहीं समझते। अगर इसे सही तरीके से प्रचारित किया जाए, तो लोग इसे अधिक प्रभावी तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं।
ईवीएम और NOTA को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में EVM मशीनों की बर्न्ट मेमोरी और माइक्रोकंट्रोलर वेरीफिकेशन से जुड़ी सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की पीठ (मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता) ने पूछा कि क्या EVM की मेमोरी को सुरक्षित तरीके से सील किया जाता है? इसपर चुनाव आयोग ने ये स्पष्ट किया कि भारत की EVM मशीनें पूरी तरह सुरक्षित हैं, क्योंकि इनकी मेमोरी को एक बार प्रोग्रामिंग के बाद स्थायी रूप से लॉक कर दिया जाता है। इसका मतलब ये है कि कोई भी बाद में इसमें छेड़छाड़ नहीं कर सकता।
NOTA की लोकप्रियता में लगातार गिरावट ये दिखाती है कि मतदाता अब बेहतर उम्मीदवार को चुनने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। हालांकि, इसका ये भी मतलब है कि अगर NOTA को और प्रभावी बनाया जाए, तो ये एक सशक्त लोकतांत्रिक हथियार बन सकता है।
अब देखना होगा कि भविष्य में NOTA का क्या स्वरूप रहेगा—क्या ये पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाएगा, या इसमें बदलाव करके इसे और मजबूत बनाया जाएगा?
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