Bombay HC Seeks Reply on Women Toilets: महाराष्ट्र की सड़कों पर सफर करने वाली महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation) पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में मांग की गई है कि राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर महिलाओं के लिए हर 25 किलोमीटर पर स्वच्छ और सुरक्षित शौचालय (hygienic toilets) बनाए जाएं। यह कदम न केवल महिलाओं की गरिमा और निजता को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उनके मौलिक अधिकारों को भी मजबूती देता है।
यह कहानी उस समय शुरू हुई, जब मुंबई की वकील कंचन चिंदरकर ने महाराष्ट्र के राजमार्गों पर महिलाओं के लिए शौचालयों की कमी को लेकर जनहित याचिका दायर की। उन्होंने बताया कि राजमार्गों पर स्वच्छ शौचालयों (hygienic toilets) की अनुपस्थिति महिलाओं के लिए गंभीर समस्या पैदा करती है। खासकर गर्भवती, मासिक धर्म से गुजर रही, बुजुर्ग महिलाओं और छात्राओं को इस कमी का सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। यह स्थिति न केवल असुविधाजनक है, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत जीवन के अधिकार और गरिमा के साथ जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन भी है।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि 2001 और 2014 की महिला नीतियों (Women’s Policies), 2016 की राष्ट्रीय महिला नीति के मसौदे और स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan) के बावजूद, सरकारें इन नीतियों को लागू करने में नाकाम रही हैं। विशेष रूप से, 2014 की नीति के अध्याय 10 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हर 25 किलोमीटर पर शौचालय बनाए जाने चाहिए। लेकिन वास्तविकता में, राजमार्गों पर ऐसी सुविधाएं न के बरार हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर केवल दो शौचालय उपलब्ध हैं—खालापुर टोल प्लाजा और तलेगांव टोल प्लाजा पर। यह स्थिति उन लाखों महिलाओं के लिए परेशानी का सबब है, जो इन सड़कों पर रोजाना सफर करती हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप वी मार्ने की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान 2015 के एक पुराने आदेश का भी जिक्र किया, जिसमें नगरपालिका क्षेत्रों में महिलाओं के लिए स्वच्छ शौचालय सुविधाएं प्रदान करने के निर्देश दिए गए थे। उस आदेश में कहा गया था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य (public health) सर्वोपरि है, और राज्य सरकारों का यह कर्तव्य है कि वे स्वच्छ और सुरक्षित शौचालय सुनिश्चित करें। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि संसाधनों की कमी का बहाना बनाकर सरकारें अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकतीं।
याचिका में कई महत्वपूर्ण मांगें रखी गई हैं। सबसे पहले, यह मांग की गई है कि हर 25 किलोमीटर पर महिलाओं के लिए सुलभ, सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय बनाए जाएं। इसके अलावा, मौजूदा शौचालयों की संख्या, उनकी स्थिति और स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी देने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि नए शौचालयों के निर्माण के लिए बजट आवंटन (budget allocation) सहित एक कार्य योजना तैयार की जाए। साथ ही, राजमार्गों पर शौचालयों की स्थिति का आकलन करने के लिए समय-समय पर सर्वेक्षण और ऑडिट (periodic audits) किए जाएं।
इस मुद्दे की गंभीरता को समझने के लिए एक उदाहरण काफी है। पुणे की एक कॉलेज छात्रा, प्रिया जाधव, ने बताया कि वह अक्सर अपने परिवार के साथ मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर सफर करती है। लेकिन रास्ते में शौचालय की कमी के कारण उन्हें असुविधा का सामना करना पड़ता है। कई बार, उन्हें असुरक्षित और गंदे शौचालयों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जो उनकी सेहत और गरिमा दोनों के लिए खतरा है। प्रिया जैसी कई महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं, और यह याचिका उनके लिए एक उम्मीद की किरण है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और एनएचएआई को नोटिस जारी किया है। अगली सुनवाई 7 जुलाई 2025 को होगी, जब इन सभी पक्षों को अपना जवाब दाखिल करना होगा। यह मामला न केवल महाराष्ट्र के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश भर में शौचालय निर्माण पर जोर दिया गया है, लेकिन राजमार्गों पर महिलाओं के लिए विशेष सुविधाओं की कमी अब भी एक बड़ा मुद्दा है।
महिलाओं की गरिमा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना हर सरकार का कर्तव्य है। इस याचिका ने एक बार फिर इस बात को रेखांकित किया है कि शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा कितनी महत्वपूर्ण है। खासकर, मासिक धर्म (menstruation) के दौरान महिलाओं को स्वच्छ और सुरक्षित शौचालयों की जरूरत और भी बढ़ जाती है। याचिका में यह भी मांग की गई है कि शौचालयों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें और इस्तेमाल किए गए पैड्स के निपटान के लिए इंसिनरेटर (incinerators) लगाए जाएं। ये कदम न केवल स्वच्छता को बढ़ावा देंगे, बल्कि महिलाओं को आत्मविश्वास के साथ सफर करने में भी मदद करेंगे।