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Grass Bread: महाराणा प्रताप ने क्या वाकई खाई घास की रोटी? साइंस ने खोला राज

Grass Bread: महाराणा प्रताप ने क्या वाकई खाई घास की रोटी? साइंस ने खोला राज

Grass Bread: क्या आपने सुना है कि महाराणा प्रताप ने जंगलों में मुश्किल वक्त के दौरान घास की रोटी खाई थी? ये बात सालों से लोग कहते आ रहे हैं, खासकर कन्हैयालाल सेठिया की कविता ‘हरे घास री रोटी’ के बाद। लेकिन क्या ये सच है या सिर्फ कहानी को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया? साइंस और इतिहासकार इस बारे में क्या कहते हैं, आइए जानते हैं।

साइंस साफ कहता है कि इंसान घास को पचा नहीं सकता। घास में सेल्यूलोज नाम का तत्व बहुत ज्यादा होता है, जिसे इंसान का पेट तोड़ नहीं पाता। गाय, भैंस या बकरी जैसे जानवर घास पचा लेते हैं क्योंकि उनके पेट में खास बैक्टीरिया और कई पाचन चैंबर होते हैं। लेकिन इंसान के पाचन तंत्र में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है। अगर इंसान घास खाए, तो वो बिना पचे ही निकल जाएगी और पेट की तकलीफ भी हो सकती है।

फिर भी, इतिहास में कई बार अकाल या युद्ध के दौरान लोग मजबूरी में घास खाते थे। यूरोप में मध्ययुग और द्वितीय विश्व युद्ध के समय, जब अनाज की कमी थी, लोग घास, भूसा या पेड़ की छाल को पीसकर थोड़े से आटे में मिलाते थे। इससे रोटी जैसी चीज बनती थी, जो पेट भरने के लिए खाई जाती थी। रूस और चीन में भी अकाल के समय ऐसा हुआ। लेकिन ऐसी रोटियां पौष्टिक नहीं होती थीं और कई बार जहरीली भी हो सकती थीं क्योंकि कुछ घास में हानिकारक तत्व होते हैं।

महाराणा प्रताप के बारे में कहा जाता है कि हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद, जब वे जंगलों में मुगलों से लड़ते हुए छिप रहे थे, तब उनके परिवार और सैनिकों को खाने की बहुत दिक्कत हुई। कुछ कहानियों में बताया जाता है कि उन्होंने घास की रोटी खाई। लेकिन इतिहासकार डॉ. रीमा हूजा कहती हैं कि ये बात बढ़ा-चढ़ाकर कही गई होगी। मेवाड़ का खजाना कभी इतना खाली नहीं हुआ कि उन्हें ऐसी मजबूरी आए। हां, ये हो सकता है कि जंगलों में रहते वक्त उनका खाना बहुत साधारण रहा हो, जैसे ज्वार, बाजरा या जंगली अनाज से बनी रोटियां।

‘घास की रोटी’ का मतलब शायद उस वक्त की मुश्किल हालत को दिखाने के लिए था, न कि सचमुच घास से बनी रोटी। राजस्थानी कवियों और भाटों ने महाराणा प्रताप की वीरता और त्याग को बढ़ाने के लिए ऐसी कहानियां जोड़ी होंगी। आज के समय में कुछ लोग व्हीटग्रास या जौ की घास को पीसकर हेल्थ ड्रिंक बनाते हैं, लेकिन ये पूरी तरह अलग है। ये घास पौष्टिक होती है और सीमित मात्रा में ली जाती है, रोटी की तरह नहीं।

कुछ खास जंगली घास, जैसे क्विनोआ या जंगली चावल के बीज, पीसकर आटा बनाया जा सकता है। लेकिन सामान्य घास को रोटी बनाकर खाना इंसानों के लिए न पौष्टिक है, न सुरक्षित। महाराणा प्रताप की कहानी में घास की रोटी शायद उनके संघर्ष को बयान करने का एक तरीका थी, लेकिन साइंस कहता है कि इसे खाना आसान नहीं है।

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