Why Ballot Box for Presidential Polls? भारत में 9 सितंबर 2025 को उपराष्ट्रपति का चुनाव हुआ, और इस बार भी वोटिंग बैलेट बॉक्स के जरिए हुई। देश के दो सबसे बड़े संवैधानिक पदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में आज भी कागजी मतपत्रों का इस्तेमाल होता है, न कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का। लेकिन ऐसा क्यों है? इसके पीछे संविधान, गोपनीयता और पारदर्शिता जैसे कई कारण हैं।
भारत का संविधान और राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम 1952 साफ कहता है कि इन चुनावों में गुप्त मतदान होगा, जिसमें हर मतदाता कागजी मतपत्र पर अलग-अलग निशान लगाता है। इस प्रक्रिया में सांसद और विधानसभा सदस्य वोट डालते हैं। कागजी मतपत्र से यह सुनिश्चित होता है कि वोट पूरी तरह गोपनीय रहे। EVM की गोपनीयता पर अभी तक पूरी तरह सहमति नहीं बनी है, इसलिए बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता है।
राष्ट्रपति चुनाव में प्राथमिकता प्रणाली भी एक बड़ा कारण है। इस प्रक्रिया में मतदाता उम्मीदवारों को प्राथमिकता के आधार पर रैंक देते हैं। कागजी मतपत्र पर यह आसानी से हो जाता है, लेकिन EVM में प्राथमिकता के हिसाब से वोट दर्ज करना संभव नहीं है। हालांकि, उपराष्ट्रपति चुनाव में यह प्रणाली लागू नहीं होती, फिर भी एक ही प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
बैलेट बॉक्स से चुनाव की प्रक्रिया पारदर्शी रहती है। अगर कोई विवाद होता है, तो मतपत्रों की दोबारा गिनती कर सत्यापन किया जा सकता है। यह प्रक्रिया लंबे समय से चली आ रही है और इसे सुरक्षित व भरोसेमंद माना जाता है। हर चुनाव में नए बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है, जो पूरी तरह खाली और सील किए गए होते हैं। चुनाव के बाद इन बॉक्स को सुरक्षित रखा जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर जांच की जा सके।
कई बार EVM से इन चुनावों को कराने की मांग उठी है। समर्थकों का कहना है कि EVM से वोटिंग तेज होगी और मानवीय गलतियों की आशंका कम होगी। लेकिन मौजूदा कानून में बदलाव के बिना यह संभव नहीं है। इसके लिए संसद में संशोधन करना होगा, जो अब तक नहीं हुआ। इतने बड़े पदों के चुनाव में जोखिम से बचने के लिए बैलेट बॉक्स को ही सुरक्षित माना जाता है।
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