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Devadasi System History: देवदासी प्रथा का इतिहास क्या है और कर्नाटक में यह सदियों बाद भी क्यों जारी है, समझें आसान शब्दों में

Devadasi System History: देवदासी प्रथा का इतिहास क्या है और कर्नाटक में यह सदियों बाद भी क्यों जारी है, समझें आसान शब्दों में

Devadasi System History: कर्नाटक के छोटे गांवों में एक पुरानी परंपरा आज भी जिंदगी बर्बाद कर रही है। यह है देवदासी प्रथा। इसमें छोटी लड़कियों को देवता को समर्पित कर दिया जाता है। पहले यह सम्मान का काम था लेकिन अब यह शोषण बन गया है। कर्नाटक विधानसभा ने अगस्त 2025 में एक नया कानून पास किया। यह कानून देवदासी महिलाओं और उनके बच्चों को शोषण से बचाने का वादा करता है। लेकिन सवाल वही है कि यह प्रथा क्यों नहीं खत्म हो पा रही। आइए जानते हैं इसकी पूरी कहानी।

देवदासी प्रथा का मतलब है देवता की दासी। 6वीं से 12वीं सदी में दक्षिण भारत में यह बहुत आम थी। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में लड़कियों को मंदिरों में नाचने और पूजा करने के लिए चुना जाता था। वे भरतनाट्यम जैसे नृत्य करतीं। समाज उन्हें इज्जत देता था। राजा उनके खर्चे उठाते थे। मंदिरों की संस्कृति इन्हीं पर टिकी रहती थी। कर्नाटक में इन्हें बसवी कहा जाता था।

समय बीता तो सब बदल गया। मध्यकाल में सल्तनत और मुगल राज आए। फिर ब्रिटिश समय हुआ। मंदिरों को राजा की मदद कम मिलने लगी। देवदासियों की हालत खराब हो गई। जो पहले सम्मान पाती थीं वही अब गरीबी में फंस गईं। कई अमीरों के पास जाने लगीं। उनकी बेटियां भी इसी रास्ते पर आ गईं। यह प्रथा देह व्यापार में बदल गई। ब्रिटिश ने 1934 में बॉम्बे देवदासी एक्ट बनाया लेकिन वह ठीक से लागू नहीं हुआ।

आजादी के बाद भी यह चली। 1947 में मद्रास प्रांत ने कानून बनाया। कर्नाटक में 1982 का देवदासी निषेध एक्ट आया। 2009 में इसे बदला गया। फिर भी प्रथा जारी है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा मामले हैं। 2008 के सर्वे में 40,600 देवदासियां मिलीं। 2018 में 80,000 से ज्यादा। 2007-08 में 46,660 का आंकड़ा था। 1993-94 में 22,873। ज्यादातर दलित और आदिवासी परिवारों से आती हैं। उत्तर कर्नाटक के जिलों में यह ज्यादा है।

क्यों नहीं रुक रही यह प्रथा। पहली वजह गरीबी। गरीब परिवार अपनी बेटी को देवता को देकर सोचते हैं कि परिवार को आशीर्वाद मिलेगा। अंधविश्वास भी बड़ा कारण है। कुछ जगहों पर मेलों में चुपके से यह होता है। कानून का डर कम है क्योंकि अमल ढीला है। परिवार सोचते हैं कि इससे सम्मान बढ़ेगा लेकिन असल में बेटी का भविष्य बर्बाद हो जाता है। जेंडर भेदभाव और सामाजिक रिवाज इसे जिंदा रखते हैं।

सरकार अब सख्त हो रही है। 2025 का नया एक्ट आया है। कर्नाटक देवदासी सिस्टम प्रिवेंशन प्रोहिबिशन रिलीफ एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट। यह पुराने 1982 और 2009 के कानूनों को रद्द करता है। अब देवदासी बच्चों को पिता का नाम बताने का हक मिलेगा। संपत्ति का अधिकार भी। पितृत्व परीक्षण हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह प्रथा गैरकानूनी है। यह लड़कियों के अधिकारों का उल्लंघन है। एनजीओ जागरूकता फैला रहे हैं। स्किल ट्रेनिंग और शिक्षा दे रहे हैं।

कर्नाटक स्टेट ह्यूमन राइट्स कमीशन ने जून 2025 में आदेश दिया। अक्टूबर 2025 तक सारा राज्य सर्वे करो। ताकुकुल चाइल्ड डेवलपमेंट ऑफिसर करेंगे। पहले सर्वे में गलतियां हुईं। कुछ जो देवदासी नहीं थीं उन्हें लिस्ट में डाल दिया। अब सही आंकड़े चाहिए। एनएलएसआईयू ने 16 जिलों में 15,000 से ज्यादा महिलाओं से बात की। नया कानून इन्हीं सुझावों पर बना। सख्त सजा का प्रावधान है। रिहैबिलिटेशन बेहतर होगा। मकान, नौकरी ट्रेनिंग और समाज में जगह मिलेगी।

फिर भी चुनौतियां हैं। समाज का कलंक बाकी है। गरीबी खत्म नहीं हुई। अंधविश्वास मजबूत है। उत्तर कर्नाटक में प्रवास करने वाली महिलाएं फंस जाती हैं। एनजीओ जैसे एसएनईएच इंडिया लड़कियों को कानून सिखा रहे हैं। चाइल्ड राइट्स, पीओसीएसओ एक्ट बताते हैं। लेकिन बदलाव धीमा है। यह प्रथा सदियों पुरानी है। इसे मिटाने में समय लगेगा।

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