रियल एस्टेट: आपने देखा होगा कि दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में मकान खरीदना कितना मुश्किल है! जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं। लेकिन एक नया चलन सामने आ रहा है। बिल्डर यानी जो बड़ी-बड़ी इमारतें बनाते हैं, वो अब छोटे और मझोले शहरों की तरफ बढ़ रहे हैं। आइए जानते हैं आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।
बड़े शहरों की भागम-भाग से दूर, छोटे शहरों में ज़िंदगी की रफ्तार थोड़ी धीमी होती है। लेकिन तेज़ी से विकास भी हो रहा है। सड़कें अच्छी बन रही हैं, हवाई अड्डे बन रहे हैं। ऐसे में बिल्डरों को लगता है कि छोटे शहरों में जमीन सस्ती मिलेगी और लोग अपने घर का सपना पूरा कर पाएंगे। इससे बिल्डरों को अच्छा मुनाफा भी होगा!
इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं। इंडियालैंड ग्रुप के चेयरमैन हरीश फैबियानी कहते हैं कि छोटे शहरों में मकान बनाने की लागत कम होती है, इसीलिए लोग कम पैसों में घर खरीद सकते हैं। वहीं, बिल्डरों को सस्ती मिली जमीन पर बने मकानों से लंबे समय में अच्छा मुनाफा कमाने की उम्मीद है। बीसीडी ग्रुप और आर्बर इन्वेस्टमेंट्स जैसी कंपनियों ने लखनऊ और रायपुर जैसे शहरों में ज़बरदस्त मांग देखी है।
गार्डियंस रियल एस्टेट एडवाइजरी का कहना है कि बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों में कई मायनों में फायदा है – कम जमीन के दाम, बेहतर होता बुनियादी ढांचा, और लोगों में अपने घर का सपना पूरा करने की इच्छा। विशेषज्ञ मानते हैं कि छोटे शहरों में आगे भी रियल एस्टेट बढ़ता रहेगा। यहां तक कि कई कंपनियां ऐसी हैं जो खासतौर पर छोटे शहरों के पास बन रहे कारखानों में काम करने के लिए श्रमिकों को किफायती मकान उपलब्ध करा रही हैं। विश्व व्यापार केंद्र संघ ( वर्ल्ड ट्रेड सेंटर्स एसोसिएशन) का मानना है भारत में रियल एस्टेट का भविष्य छोटे शहरों में ही है।