Congress Grass: भारत के इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जिन्होंने देश की तकदीर और तस्वीर दोनों को बदला। लेकिन कुछ उपहार ऐसे भी होते हैं, जो समय के साथ अभिशाप बन जाते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है ‘कांग्रेस घास’ (Parthenium Weed), जो 1950 के दशक में अमेरिका से आए गेहूं के साथ भारत पहुँची और धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई। यह न सिर्फ किसानों के लिए सिरदर्द बन गई बल्कि आम लोगों की सेहत पर भी कहर ढाने लगी। आइए जानते हैं कि यह जहरीली घास कैसे आई और भारत में क्यों अब भी आफत बनी हुई है।
Congress Grass: कैसे आई कांग्रेस घास भारत में?
आजादी के बाद भारत भयंकर खाद्य संकट (Food Crisis) से जूझ रहा था। अनाज की भारी कमी को देखते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका से मदद मांगी। उस समय अमेरिका का एक विशेष खाद्य सहायता कार्यक्रम था, जिसे पब्लिक लॉ-480 (PL-480 Program) कहा जाता था। इसके तहत अमेरिका ने भारत को सस्ते दामों पर गेहूं देने की पेशकश की, और 20 लाख टन गेहूं भारत आ भी गया।
लेकिन इस गेहूं के साथ अनजाने में एक और संकट भी आया—पार्थेनियम घास। इसे आम भाषा में ‘कांग्रेस घास’ कहा जाता है, क्योंकि यह उसी दौर में आई थी जब कांग्रेस की सरकार थी। इस घास के बीज गेहूं के साथ मिलकर भारत पहुंचे और धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गए।
कांग्रेस घास बनी खेतों और किसानों की दुश्मन
आज स्थिति यह है कि यह जहरीली घास लगभग 20 लाख हेक्टेयर जमीन पर फैल चुकी है। यह सिर्फ एक खरपतवार नहीं बल्कि किसानों के लिए बड़ा संकट बन चुकी है। इस घास की वजह से:
- खेती योग्य भूमि बंजर होती जा रही है क्योंकि यह अन्य फसलों को पनपने नहीं देती।
- मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility) खत्म हो रही है, जिससे फसल उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है।
- मवेशी इसे नहीं खाते, क्योंकि यह जहरीली होती है, जिससे चारे की समस्या और बढ़ गई है।
- किसान लाखों रुपये खर्च करके इसे हटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह खत्म नहीं हो रही।
इस घास का बीज बहुत तेजी से फैलता है। एक अकेला पौधा लगभग 60 करोड़ परागकण (Pollen Grains) छोड़ता है, जो हवा में मिलकर और भी दूर-दूर तक फैल जाता है।
सेहत पर असर: एक धीमा जहर
पार्थेनियम घास न सिर्फ खेती की दुश्मन है बल्कि यह इंसानों की सेहत के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह घास कई गंभीर बीमारियों को जन्म देती है, जैसे:
- सांस की तकलीफ (Respiratory Issues), अस्थमा और एलर्जी
- खांसी और गले में जलन
- त्वचा रोग (Skin Diseases)
- आंखों में जलन और संक्रमण
डॉक्टरों का कहना है कि अगर यह घास खेतों या बाग-बगीचों में फैली हो, तो वहाँ रहने वाले लोग एलर्जी और अस्थमा जैसी बीमारियों से ज्यादा पीड़ित होते हैं।
क्या यह अमेरिका से ही आई थी?
2004 में अमेरिकी दूतावास ने दावा किया कि पार्थेनियम घास अमेरिका से नहीं आई, बल्कि यह पहले से ही भारत में थी। लेकिन कई भारतीय वैज्ञानिकों के शोध बताते हैं कि यह घास 1950 के दशक में अमेरिकी गेहूं के साथ ही भारत में आई और यहाँ पर तेजी से फैली।
आज हालात यह हैं कि अंडमान-निकोबार से लेकर लक्षद्वीप तक यह घास हर जगह मिलती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार और किसान हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं, लेकिन यह पूरी तरह से खत्म नहीं हो रही।
कांग्रेस घास नाम कैसे पड़ा?
इस जहरीली घास का नाम ‘कांग्रेस घास’ कैसे पड़ा? दरअसल, जब यह घास फैली तो उस समय भारत में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। चूंकि उसी दौर में यह समस्या पैदा हुई और पूरे देश में फैली, इसलिए लोगों ने इसे ‘कांग्रेस घास’ कहना शुरू कर दिया। आज भी लोग इसे इसी नाम से जानते हैं।
राजनीतिक हलकों में भी इस नाम को लेकर विवाद होता रहता है। कांग्रेस पार्टी इस नाम से बचने की कोशिश करती है, लेकिन यह घास न सिर्फ खेती में बल्कि राजनीति में भी उसका पीछा नहीं छोड़ रही!
क्या कांग्रेस घास से छुटकारा संभव है?
वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञ इसे खत्म करने के लिए जैविक और रासायनिक तरीकों पर काम कर रहे हैं। कुछ उपाय जो इस घास को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं:
- जैविक विधि (Biological Method): कुछ कीट और फंगस इस घास को नष्ट कर सकते हैं।
- रासायनिक विधि (Chemical Method): कुछ विशेष हर्बीसाइड्स का छिड़काव इसे बढ़ने से रोक सकता है।
- खेतों में गहरी जुताई (Deep Plowing): इससे इसके बीज मिट्टी के अंदर दब जाते हैं और नहीं उगते।
लेकिन अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं मिला है। किसानों को इससे बचाने के लिए सरकार को और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
अमेरिका से आया गेहूं भले ही उस समय भारत के खाद्य संकट का समाधान था, लेकिन इसके साथ आई कांग्रेस घास आज भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यह न सिर्फ खेती को बर्बाद कर रही है बल्कि इंसानों और जानवरों के लिए भी हानिकारक साबित हो रही है। इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिक तरीकों और सतर्कता की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस संकट से बचाया जा सके।
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