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Dailyzing system: ट्रेनों की देरी से परेशान? IIT बॉम्बे का यह सिस्टम बदल देगा रेलवे का चेहरा!

Dailyzing system: ट्रेनों की देरी से परेशान? IIT बॉम्बे का यह सिस्टम बदल देगा रेलवे का चेहरा!

Dailyzing system: भारत की रेलवे दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल नेटवर्क है, जो हर दिन 13,150 से ज्यादा यात्री ट्रेनें चलाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि इतने बड़े सिस्टम को सुचारू रूप से चलाने में कितनी मुश्किलें आती हैं? खासकर तब, जब बात उन ट्रेनों की हो जो हर दिन नहीं चलतीं। इन गैर-दैनिक ट्रेनों को शेड्यूल करना एक बड़ी चुनौती है। इसी समस्या को हल करने के लिए IIT बॉम्बे और CRIS ने मिलकर एक नया सिस्टम बनाया है, जिसे ‘डेलाइजिंग’ कहा जा रहा है। यह सिस्टम रेलवे के पुराने ढांचे को बदले बिना ट्रेनों की टाइमिंग को बेहतर बनाने का दावा करता है।

गैर-दैनिक ट्रेनों का शेड्यूल (non-daily train schedule) हमेशा से रेलवे के लिए सिरदर्द रहा है। ये ट्रेनें हफ्ते में कुछ खास दिनों पर चलती हैं, जिससे कई बार ट्रैक खाली रह जाते हैं और कई बार भीड़ की वजह से जाम हो जाते हैं। अलग-अलग रेलवे जोन अपने हिसाब से शेड्यूल बनाते हैं, जिससे पूरे नेटवर्क में तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है। IIT बॉम्बे के प्रोफेसर मधु बेलुर बताते हैं कि उनकी टीम ने इस समस्या को समझा और एक नया तरीका निकाला। उन्होंने डेलाइजिंग नाम का सिस्टम बनाया, जिसमें गैर-दैनिक ट्रेनों को उनके समय और रूट के आधार पर समूहों में बांटा जाता है। इससे ऐसा लगता है जैसे ये ट्रेनें हर दिन चल रही हों।

इस सिस्टम को समझने के लिए एक आसान उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए, कुछ ट्रेनें एक ही रूट पर चलती हैं और उनके समय में 15 मिनट से कम का अंतर है। डेलाइजिंग इन ट्रेनों को एक समूह में डाल देता है। फिर इन्हें इस तरह शेड्यूल किया जाता है कि ये एक तय पैटर्न में चलें। इससे ट्रैक का इस्तेमाल बेहतर होता है और खाली समय कम होता है। प्रोफेसर बेलुर कहते हैं कि इस तरीके से ट्रेनों को अलग-अलग देखने की बजाय एक सिस्टम का हिस्सा बनाया जाता है। इससे रेलवे को शेड्यूल में सुधार करने और संसाधनों का सही इस्तेमाल करने में मदद मिलती है।

इस सिस्टम को बनाने में IIT बॉम्बे के कई विशेषज्ञ शामिल थे। प्रोफेसर नारायण रंगराज और जोनल रेलवे व CRIS के एक्सपर्ट्स ने भी इसमें योगदान दिया। टीम ने इस मॉडल को भारत के गोल्डन क्वाड्रिलेटरल और डायगोनल्स (GQD) नेटवर्क पर आजमाया। यह नेटवर्क दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों को जोड़ता है। असल ट्रेन डेटा का विश्लेषण करने के लिए टीम ने कुछ खास तकनीकों का इस्तेमाल किया, जैसे हायरार्किकल एग्लोमरेटिव क्लस्टरिंग, DBSCAN और K-मीन। इनसे पता चला कि डेलाइजिंग से शेड्यूल ज्यादा व्यवस्थित और प्रभावी बन सकता है।

इस नए तरीके से कई फायदे सामने आए। शोधकर्ताओं ने देखा कि क्लस्टरिंग से शेड्यूल में खाली जगह कम होती है और ट्रैक का बेहतर इस्तेमाल होता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी समूह में सात से कम ट्रेनें हैं, तो खाली दिनों में नई ट्रेनें जोड़ी जा सकती हैं। इससे शेड्यूल में लचीलापन आता है। प्रोफेसर बेलुर का कहना है कि इससे भीड़भाड़ वाले हिस्सों को संभालना आसान हो जाता है, ट्रेनों की देरी कम होती है और रेलवे का प्रवाह बेहतर होता है। यह सिस्टम रेलवे को अतिरिक्त सेवाएं शुरू करने की गुंजाइश भी देता है।

भारतीय रेलवे ने इस मॉडल को अपनाना शुरू कर दिया है। GQD नेटवर्क पर डेलाइजिंग का एक संशोधित संस्करण लागू किया जा रहा है। शोधकर्ता इसे और बेहतर बनाने की कोशिश में हैं। वे चाहते हैं कि इसमें रियल-टाइम बदलाव की सुविधा भी जुड़े, ताकि सिस्टम और भी लचीला और प्रभावी बन सके। भारतीय रेलवे का यह विशाल नेटवर्क 160 साल से ज्यादा पुराना है, लेकिन इस सिस्टम से बिना बड़े बदलाव के इसे आधुनिक बनाने की राह खुल रही है। यह तकनीक न सिर्फ समय बचाती है, बल्कि यात्रियों के लिए सफर को भी आसान बना सकती है।


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