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Fevicol Controversial Ad: मुंबई लोकल ट्रेनों पर फेविकॉल विज्ञापन ने मचाया बवाल

Fevicol Controversial Ad: मुंबई लोकल ट्रेनों पर फेविकॉल विज्ञापन ने मचाया बवाल

Fevicol Controversial Ad: मुंबई, जिसे भारत की आर्थिक राजधानी कहा जाता है, अपनी रफ्तार और रंगों के लिए मशहूर है। इस शहर की धड़कन हैं यहाँ की लोकल ट्रेनें, जो हर दिन लाखों लोगों को उनके गंतव्य तक पहुँचाती हैं। लेकिन हाल ही में, इन ट्रेनों को लेकर एक नया विवाद सामने आया है। बात शुरू हुई एक विज्ञापन से, जो फेविकॉल (Fevicol) ने बनाया था। इस विज्ञापन ने न सिर्फ पश्चिमी रेलवे (Western Railway) का ध्यान खींचा, बल्कि सोशल मीडिया पर भी तीखी प्रतिक्रियाएँ बटोरीं। आइए, इस कहानी को थोड़ा करीब से समझते हैं और जानते हैं कि आखिर क्या हुआ।

एक पुरानी तस्वीर ने मचाया बवाल

बांद्रा में लगे एक होर्डिंग ने सबका ध्यान खींचा। इस होर्डिंग पर फेविकॉल का विज्ञापन था, जिसमें मुंबई की लोकल ट्रेनों की भीड़भाड़ वाली पुरानी तस्वीर दिखाई गई थी। तस्वीर में ट्रेन के दरवाजों पर लटके हुए लोग और भारी भीड़ नजर आ रही थी। यह छवि कई साल पुरानी थी, जो उस समय की ट्रेनों की स्थिति को दर्शाती थी। लेकिन पश्चिमी रेलवे को यह विज्ञापन पसंद नहीं आया। उन्होंने इसे भ्रामक विज्ञापन (Misleading Ad) करार दिया और कहा कि यह आज की मुंबई लोकल ट्रेनों की सही तस्वीर नहीं दिखाता।

पश्चिमी रेलवे का कहना था कि यह विज्ञापन पुराने स्टीरियोटाइप को बढ़ावा देता है। उनके मुताबिक, पिछले कुछ सालों में मुंबई की लोकल ट्रेनों में काफी सुधार हुआ है। नई और आधुनिक ट्रेनें, डीसी से एसी बिजली सिस्टम में बदलाव, और यहाँ तक कि एयर-कंडीशन्ड कोच भी अब उपलब्ध हैं। ऐसे में, एक पुरानी तस्वीर का इस्तेमाल करके ट्रेनों की छवि खराब करना उचित नहीं है।

फेविकॉल और रेलवे का आमना-सामना

पश्चिमी रेलवे ने इस विज्ञापन को लेकर महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) को एक शिकायत पत्र लिखा, क्योंकि यह होर्डिंग MSRDC की संपत्ति पर लगाया गया था। रेलवे ने माँग की कि इस विज्ञापन को तुरंत हटाया जाए, क्योंकि यह उनकी मेहनत और सुधारों को कमतर दिखाता है। रेलवे के एक बयान में कहा गया कि हर दिन 70 लाख से ज्यादा यात्री पश्चिमी और मध्य रेलवे की सेवाओं पर निर्भर हैं। ऐसे में, इस तरह की तस्वीरें न सिर्फ गलत धारणा बनाती हैं, बल्कि रेलवे की सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे में किए गए निवेश को भी कम आँकती हैं।

इस शिकायत के जवाब में, फेविकॉल की मालिक कंपनी पिडिलाइट इंडस्ट्रीज ने तुरंत कदम उठाया। उन्होंने घोषणा की कि यह होर्डिंग शनिवार तक हटा लिया जाएगा। और जैसा कहा गया, वैसा किया गया। बांद्रा सी लिंक के पास लगा यह विज्ञापन जल्द ही हटा दिया गया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

सोशल मीडिया पर छाया मुद्दा

जैसे ही यह खबर फैली, सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएँ आने लगीं। कुछ लोग पश्चिमी रेलवे के रुख का समर्थन कर रहे थे, तो कुछ ने इसे मजाक का विषय बना लिया। कई यूजर्स ने व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ कीं, जैसे कि “क्या अब ट्रेनों में भीड़ नहीं होती?” या “फेविकॉल ने तो बस हकीकत दिखाई!” कुछ लोगों ने गंभीर सवाल भी उठाए कि क्या रेलवे वाकई इतना सुधार कर चुकी है, जितना दावा किया जा रहा है।

सोशल मीडिया की यह बहस इस बात का सबूत थी कि मुंबई की लोकल ट्रेनें सिर्फ एक परिवहन का साधन नहीं हैं, बल्कि इस शहर की संस्कृति और भावनाओं का हिस्सा हैं। लोग इन ट्रेनों से इतना जुड़ाव महसूस करते हैं कि एक विज्ञापन भी उनके लिए चर्चा का बड़ा विषय बन गया।

ट्रेनों में हुए बदलावों की सैर

पश्चिमी रेलवे ने अपने बयान में जो सुधारों की बात की, वह वाकई ध्यान देने लायक हैं। पिछले एक दशक में, मुंबई की लोकल ट्रेनों ने कई बड़े बदलाव देखे हैं। नई ट्रेनें अब ज्यादा आरामदायक और सुरक्षित हैं। एयर-कंडीशन्ड कोच ने गर्मी भरी यात्राओं को थोड़ा सुकून दिया है। इसके अलावा, स्टेशनों पर भी सुधार हुआ है, जैसे कि बेहतर टिकटिंग सिस्टम और सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे।

हालाँकि, हर मुसाफिर की अपनी कहानी होती है। कोई कहता है कि भीड़ अब भी वैसी ही है, तो कोई मानता है कि पहले से हालात बेहतर हैं। लेकिन यह सच है कि रेलवे ने कोशिशें की हैं, और ये कोशिशें धीरे-धीरे रंग ला रही हैं।

विज्ञापन की ताकत और जिम्मेदारी

फेविकॉल का यह विज्ञापन हमें एक और बात सिखाता है। विज्ञापन सिर्फ प्रोडक्ट बेचने का जरिया नहीं हैं, बल्कि वे समाज की सोच को भी प्रभावित करते हैं। एक तस्वीर, जो शायद मजाक या रचनात्मकता के लिए इस्तेमाल की गई हो, कई लोगों के लिए गलत संदेश दे सकती है। फेविकॉल ने अपनी गलती को जल्दी सुधार लिया, लेकिन इस घटना ने यह सवाल उठाया कि क्या ब्रांड्स को अपनी जिम्मेदारी और सावधानी से काम करना चाहिए।

मुंबई की लोकल ट्रेनें इस शहर की रीढ़ हैं। ये सिर्फ स्टील और बिजली का जाल नहीं, बल्कि लाखों लोगों के सपनों और मेहनत का प्रतीक हैं। शायद यही वजह है कि एक छोटा-सा विज्ञापन भी इतना बड़ा मुद्दा बन गया।


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