भारतीय इतिहास में 15 नवंबर 1949 का दिन एक गंभीर मोड़ था। इस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई। यह घटना देश के लिए एक दर्दनाक याद बन गई।
गोडसे का अंतिम दिन (Godse’s Last Day) अंबाला सेंट्रल जेल में शुरू हुआ। सूर्य निकलने से पहले ही, रात के अंधेरे में जेल में तैयारियां शुरू हो गई थीं। अधिकारियों ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। गोडसे का अंतिम दिन भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
फांसी की सुबह
सुबह के अंधेरे में जेल के अधिकारी नाथूराम गोडसे और उनके साथी नारायण आप्टे को फांसी के तख्ते की ओर ले गए। जेल के सन्नाटे में गोडसे की आवाज गूंजी – “अखंड भारत”। आप्टे ने इन शब्दों को “अमर रहे” कहकर पूरा किया। यह क्षण जेल के इतिहास में दर्ज हो गया।
अंतिम क्षणों का विवरण
जिला मजिस्ट्रेट और उनका स्टाफ फांसी के समय मौजूद था। भारतीय इतिहास का काला अध्याय (Dark Chapter of Indian History) सुबह पांच बजे से पहले ही शुरू हो गया था। आप्टे की मृत्यु तुरंत हो गई, जबकि गोडसे ने कुछ सेकंड बाद दम तोड़ा। जेल प्रशासन को स्पष्ट निर्देश थे कि अंतिम संस्कार में देरी न हो।
अंतिम संस्कार की गोपनीयता
सुरक्षा कारणों से दोनों का अंतिम संस्कार जेल परिसर में ही किया गया। परिजनों को शव नहीं सौंपा गया। जेल प्रशासन ने अस्थियों को इकट्ठा किया और उन्हें नदी में प्रवाहित किया। यह कार्य इतनी गोपनीयता से किया गया कि वाहन नदी से आगे गया और फिर लौटा, ताकि कोई देख न सके।
गांधी हत्याकांड का विवरण
30 जनवरी 1948 को गोडसे ने बापू पर तीन गोलियां चलाई थीं। चौथी गोली आप्टे ने चलाई थी। शिमला के पास ईस्ट पंजाब हाई कोर्ट में मुकदमा चला। 8 नवंबर 1949 को फांसी की सजा सुनाई गई। सात दिन बाद सजा को अमल में लाया गया। इस मामले में विनायक दामोदर सावरकर को बरी कर दिया गया था, जबकि छह अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा मिली।