23 दिसंबर, 2024 को केंद्र सरकार ने ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ (No Detention Policy) को हटाने का फैसला किया। ये नीति 2010 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) के तहत लागू की गई थी। इसका उद्देश्य था कि कक्षा 5 से 8 तक के छात्रों को बिना फेल किए अगले कक्षा में प्रमोट किया जाए। इस कदम को बच्चों पर परीक्षा का तनाव कम करने के लिए सराहा गया, लेकिन आलोचकों ने इसे शिक्षा के स्तर में गिरावट का कारण भी बताया।
नई नीति के तहत अब बच्चों को फेल होने पर एक और परीक्षा का अवसर दिया जाएगा। अगर वे उसमें भी असफल होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में दोबारा पढ़ना होगा।
नो-डिटेंशन पॉलिसी में बदलाव: क्या है नया?
सरकार के नए नियमों के मुताबिक, यदि छात्र फेल हो जाते हैं, तो उन्हें दो महीने के भीतर फिर से परीक्षा देने का मौका मिलेगा। अगर वे दोबारा भी फेल होते हैं, तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा। हालांकि, ये सुनिश्चित किया गया है कि 8वीं कक्षा तक के बच्चों को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा।
नई नीति ये भी सुनिश्चित करती है कि कक्षा शिक्षक (Class Teacher) छात्रों की कमजोरियों की पहचान करेंगे और उनके माता-पिता के साथ मिलकर समाधान निकालेंगे। वहीं, स्कूल प्रिंसिपल फेल हुए छात्रों की प्रगति पर निगरानी रखेंगे।
नो-डिटेंशन पॉलिसी: शुरुआत और उद्देश्य
‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ को शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत लागू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों पर परीक्षा का तनाव कम करना और उन्हें पढ़ाई के प्रति प्रोत्साहित करना था।
पॉलिसी के फायदे
बच्चों को तनावमुक्त माहौल में पढ़ाई करने का मौका मिला।
परीक्षा में असफलता के डर से बचने के लिए बच्चों ने पढ़ाई का आनंद लेना शुरू किया।
स्कूल छोड़ने की दर (Dropout Rate) में कमी आई।
पॉलिसी के साथ समस्याएं भी थीं
सीखने का स्तर (Learning Outcome) गिर गया।
बिना परीक्षा पास किए प्रमोट होने से बच्चे पढ़ाई के प्रति लापरवाह हो गए।
शिक्षकों पर छात्रों का सही मूल्यांकन करने का दबाव कम हो गया।
बच्चों के सीखने का स्तर क्यों गिरा?
2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, नो-डिटेंशन पॉलिसी के कारण कक्षा 5 के केवल 48% छात्र दूसरी कक्षा का पाठ्यक्रम पढ़ पा रहे थे। कक्षा 8 के केवल 43% छात्र ही डिवीजन जैसी सरल गणितीय क्रियाएं कर पा रहे थे। ग्रामीण क्षेत्रों में, कक्षा 5 के केवल 25% छात्र अंग्रेजी का एक वाक्य पढ़ पा रहे थे। टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी और सीएबीई (CABE) की वासुदेव देवनानी कमेटी ने भी ये बताया कि ये नीति बच्चों की बुनियादी शिक्षा और अकादमिक क्षमता को कमजोर कर रही थी।
नई पॉलिसी: फायदे और संभावनाएं
नई नीति में नियमित परीक्षा और फेल होने पर री-एग्जाम की व्यवस्था है। ये बच्चों को पढ़ाई के प्रति अधिक जिम्मेदार बनाने में मदद कर सकती है। पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आनंद कुमार झा ने कहा कि ये बदलाव बच्चों के शैक्षणिक स्तर को सुधारने में सहायक होगा। नियमित परीक्षा और री-एग्जाम के कारण बच्चे पढ़ाई पर अधिक ध्यान देंगे।
री-एग्जाम का प्रावधान बच्चों को अपनी गलतियों से सीखने और उन्हें सुधारने का मौका देगा। इससे न केवल उनकी शैक्षणिक क्षमता बढ़ेगी, बल्कि आत्मविश्वास भी मजबूत होगा।
आलोचनाएं और चुनौतियां
शिक्षाविद् डॉ. अशोक पांडे का मानना है कि नई नीति में पास और फेल होने की पूरी जिम्मेदारी बच्चों और उनके अभिभावकों पर डालने का खतरा है। उन्होंने कहा कि स्कूलों और शिक्षकों को भी जवाबदेह बनाना होगा। वहीं कई विशेषज्ञों का कहना है कि फेल होने का डर बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ा सकता है। ये जरूरी है कि बच्चों को सहायक वातावरण में शिक्षा दी जाए।
नो-डिटेंशन पॉलिसी का उद्देश्य अच्छा था, लेकिन इसके प्रभाव ने शिक्षा के स्तर को गिराने का काम किया। नई नीति में परीक्षा आधारित प्रमोशन का प्रावधान बच्चों की पढ़ाई के स्तर को सुधारने में मदद कर सकता है। हालांकि, ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि ये नीति बच्चों पर अतिरिक्त दबाव न डाले। शिक्षकों और अभिभावकों को मिलकर काम करना होगा ताकि बच्चों को बेहतर शिक्षा और सहायक वातावरण मिल सके।
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