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शिक्षा और करियर का बढ़ता तनाव: कैसे बचा सकते हैं युवा पीढ़ी को?

शिक्षा और करियर का बढ़ता तनाव: कैसे बचा सकते हैं युवा पीढ़ी को?

देश में शिक्षा और करियर को लेकर युवाओं पर बढ़ते मानसिक दबाव का मुद्दा चिंता का विषय बनता जा रहा है। एक हालिया सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़ों के अनुसार, अधिकांश छात्र शिक्षा और करियर के दबाव में जी रहे हैं, लेकिन उनमें से कई इस समस्या का समाधान ढूंढने में असमर्थ हैं। खासकर मुंबई जैसे महानगरों में, जहां प्रतिस्पर्धा और शिक्षा का स्तर ऊंचा है, छात्रों में मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है। आज, इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे, जिससे समझा जा सके कि कैसे छात्रों को मानसिक तनाव से जूझना पड़ता है और क्या उपाय किए जा सकते हैं।


शिक्षा और करियर: मानसिक दबाव की जड़

आज की युवा पीढ़ी के लिए शिक्षा और करियर सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि मानसिक तनाव का एक बड़ा कारण बन गए हैं। कई छात्र शिक्षा और करियर को लेकर गंभीर चिंताओं का सामना कर रहे हैं, जो कभी-कभी उन्हें ऐसे हालातों में डाल देते हैं, जहां से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। सर्वे में पाया गया कि 67% छात्र शिक्षा और करियर के दबाव में हैं, जो एक चिंताजनक आंकड़ा है। विशेष रूप से भारत में, जहां माता-पिता और समाज की उम्मीदें छात्रों पर भारी पड़ती हैं, यह दबाव और बढ़ जाता है।

शिक्षा में उत्तीर्ण होने का दबाव, अच्छे कॉलेज में प्रवेश और करियर बनाने की दौड़, इन सभी ने छात्रों की मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाला है। आजकल की शिक्षा प्रणाली, जहां परीक्षाओं का भार और प्रतिस्पर्धा चरम पर है, छात्रों को मानसिक और शारीरिक रूप से थका देती है। इसके अलावा, 58% छात्रों ने माना कि शैक्षणिक दबाव उनके लिए सबसे बड़ा संकट है।


मदद मांगने से क्यों बचते हैं छात्र?

इससे भी बड़ी समस्या यह है कि छात्रों में मदद मांगने की प्रवृत्ति नहीं है। सर्वे में पता चला कि केवल 15% छात्र ही मानसिक तनाव में होने पर मदद मांगते हैं। छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता नहीं होती, और जो तनाव में होते हैं, वे किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करने की बजाय खुद ही इस समस्या से निपटने की कोशिश करते हैं।

हालांकि, 58% छात्र अपने दोस्तों से मदद लेने को प्राथमिकता देते हैं। यह बताता है कि दोस्त, छात्रों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दोस्तों के साथ खुलकर बातें करना और उनके समर्थन को महसूस करना कई बार मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है। लेकिन जो छात्र मदद नहीं मांगते, उनके लिए स्थिति और गंभीर हो सकती है।


आत्महत्या के बढ़ते मामले: चिंताजनक स्थिति

शिक्षा और करियर के दबाव में आकर छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी तेजी से बढ़ रही है। मुंबई के कुछ कॉलेजों ने इस समस्या से निपटने के लिए कदम उठाए हैं। एक सर्वे में यह भी खुलासा हुआ कि 94% छात्र मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित संसाधनों का उपयोग नहीं करते हैं। यह स्थिति बेहद गंभीर है, क्योंकि मानसिक तनाव के संकेतों की पहचान न करना आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाने की संभावना को और बढ़ा देता है।

69% छात्रों ने आत्महत्या के चेतावनी संकेतों से अनभिज्ञ होने की बात कही। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। अगर सही समय पर मानसिक तनाव के संकेतों को पहचाना जाए, तो आत्महत्या जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है।


कैसे हो रहा है समाधान?

इस समस्या के समाधान के लिए मुंबई के जाने-माने कॉलेज केजे सोमैया आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज ने एक पहल की है। कॉलेज ने एक टीम बनाई है जिसे Mental Health First Aiders कहा जाता है। यह टीम मानसिक तनाव से जूझ रहे छात्रों की पहचान करती है और उन्हें काउंसलर से मिलाने का काम करती है।

यह एक सराहनीय प्रयास है, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर छात्रों के बीच अभी भी बहुत सारी भ्रांतियां हैं। इसके अलावा, कॉलेजों और स्कूलों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए, ताकि उन्हें सही समय पर सहायता मिल सके और उन्हें किसी गंभीर कदम उठाने से रोका जा सके।

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