भारत ने एक बार फिर विज्ञान और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी काबिलियत साबित की है। देश ने दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों (drug-resistant infections) के खिलाफ पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक (indigenous antibiotic) विकसित की है, जिसे ‘नैफिथ्रोमाइसिन’ (Nafithromycin) कहा जा रहा है। यह खोज न केवल भारत बल्कि वैश्विक चिकित्सा समुदाय के लिए एक क्रांतिकारी कदम है।
कैसे बनी ‘नैफिथ्रोमाइसिन’: 14 सालों की मेहनत और 500 करोड़ का निवेश!
नैफिथ्रोमाइसिन का विकास कोई साधारण उपलब्धि नहीं है। इसे बनाने में 14 वर्षों की गहन रिसर्च और 500 करोड़ रुपये का भारी-भरकम निवेश लगा। यह एंटीबायोटिक एक अर्ध-सिंथेटिक मैक्रोलाइड (semi-synthetic macrolide) है, जो खासतौर पर दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया (drug-resistant bacteria) से निपटने के लिए तैयार की गई है। इसे मुंबई स्थित फार्मास्युटिकल कंपनी वॉकहार्ट (Wockhardt) ने विकसित किया है और इसे ‘मिकनैफ’ (Miqnaf) ब्रांड नाम से बाजार में पेश किया जाएगा।
इस दवा का प्रमुख उपयोग वयस्कों में कम्युनिटी-अक्वायर्ड बैक्टीरियल निमोनिया (Community Acquired Bacterial Pneumonia – CABP) के इलाज में किया जाएगा। यह दवा न केवल तीन दिनों के अंदर काम करना शुरू कर देती है बल्कि इसे दिन में केवल एक बार लेना होता है।
दवा-प्रतिरोधी संक्रमण: एक बढ़ता हुआ खतरा
दुनियाभर में हर साल ड्रग-रेसिस्टेंट निमोनिया (drug-resistant pneumonia) के कारण दो मिलियन से अधिक मौतें होती हैं। भारत में निमोनिया के मामलों का लगभग 23% हिस्सा दवा-प्रतिरोधी संक्रमण का है। मौजूदा एंटीबायोटिक्स जैसे एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin) कई बार इन संक्रमणों के खिलाफ बेअसर साबित हो चुके हैं।
नैफिथ्रोमाइसिन को इसी समस्या को हल करने के लिए बनाया गया है। यह दवा फेफड़ों (lungs) में लंबे समय तक बनी रहती है, जिससे इसका प्रभाव ज्यादा तेज़ और असरदार होता है। इसके क्लिनिकल ट्रायल भारत, अमेरिका और यूरोप में किए गए। इन ट्रायल्स में यह दवा मौजूदा एंटीबायोटिक्स से दस गुना ज्यादा प्रभावी पाई गई।
विशेषज्ञों की राय: क्या बदल सकती है चिकित्सा की दुनिया?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि नैफिथ्रोमाइसिन संक्रमणों के इलाज में क्रांति ला सकती है। इसके क्लिनिकल क्योर रेट (clinical cure rate) 96.7% तक है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे भोजन के साथ या बिना भोजन के लिया जा सकता है, और इसके साइड इफेक्ट्स भी न्यूनतम हैं।
डॉक्टरों ने यह भी चेतावनी दी है कि इस दवा का जिम्मेदारी से इस्तेमाल जरूरी है। अगर इसका जरूरत से ज्यादा उपयोग (overuse) किया गया, तो इसके प्रति भी बैक्टीरिया में प्रतिरोधक क्षमता (resistance) विकसित हो सकती है।
मेड-इन-इंडिया: सस्ती और सुलभ एंटीबायोटिक
एक मेड-इन-इंडिया (Made-in-India) दवा होने के कारण नैफिथ्रोमाइसिन न केवल किफायती होगी, बल्कि इसे भारतीय बाजार में आसानी से उपलब्ध कराया जाएगा। यह उन लाखों मरीजों के लिए राहत लेकर आएगी जो पारंपरिक दवाओं (traditional medicines) से फायदा नहीं उठा पा रहे।
भारत की यह उपलब्धि एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin) जैसे पुराने एंटीबायोटिक्स को पीछे छोड़ते हुए दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों से निपटने के लिए नए दरवाजे खोलती है।
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