Indian Law in Akharas: भारत में साधु-संतों की दुनिया आम लोगों से काफी अलग होती है। इनकी एक अलग परंपरा, अनुशासन और नियम होते हैं, जिन्हें ये पूरी तरह मानते हैं। खासकर जो साधु किसी अखाड़े से जुड़े होते हैं, उन्हें इन नियमों का पालन करना बेहद जरूरी होता है। देश में शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के कुल 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं, और हर अखाड़े के अपने नियम होते हैं।
हाल ही में प्रयागराज के महाकुंभ में एक घटना ने सभी का ध्यान खींचा, जब मशहूर अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पदवी दी गई। लेकिन विवाद बढ़ने के बाद अखाड़े ने उन्हें इस पद से हटा दिया और अखाड़े से भी निकाल दिया। यही नहीं, किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को भी अखाड़े से अलग कर दिया गया।
इस घटना के बाद यह सवाल उठने लगा कि अखाड़ों में किस तरह के नियम लागू होते हैं? क्या वहां भारतीय कानून नहीं चलता? अगर कोई साधु गलती करता है, तो उसे किस तरह की सजा मिलती है? आइए, इन सवालों का जवाब विस्तार से जानते हैं।
अखाड़ों का संचालन और नियम
अखाड़े एक तरह के धार्मिक संगठन होते हैं, जो साधु-संतों की आध्यात्मिक और सामाजिक गतिविधियों का संचालन करते हैं। हर अखाड़े का अपना एक अनुशासन होता है और जो साधु उससे जुड़े होते हैं, उन्हें पूरी तरह इन नियमों का पालन करना होता है।
भारत में इन सभी अखाड़ों की एक सर्वोच्च संस्था होती है, जिसे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद कहा जाता है। इस परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी हैं। धार्मिक आयोजनों या विवादों में अखाड़ों से जुड़े फैसले यही संस्था करती है और किसी साधु को सजा देने का अधिकार भी इसी के पास होता है।
अगर कोई साधु गलती करता है तो उसे क्या सजा मिलती है?
अखाड़ों में रहने वाले संन्यासियों को धार्मिक अनुशासन का पालन करना जरूरी होता है। अगर कोई साधु नियम तोड़ता है, तो अखाड़ा परिषद उसे सजा देती है।
अगर किसी साधु से छोटी गलती होती है, तो उसे गंगा में 108 बार डुबकी लगाने की सजा दी जाती है। यह सजा अखाड़े के कोतवाल की निगरानी में पूरी करनी होती है। इसके बाद साधु को भीगे कपड़ों में ही देवस्थान पर वापस लौटकर क्षमा मांगनी होती है। सजा पूरी होने के बाद, उसे प्रसाद दिया जाता है और दोषमुक्त कर दिया जाता है।
अगर कोई साधु गंभीर गलती करता है, जैसे कि किसी अन्य संन्यासी का अपमान करना या अखाड़े के नियमों का बार-बार उल्लंघन करना, तो उसे अखाड़े से कुछ समय के लिए निष्कासित कर दिया जाता है। इस दौरान वह अखाड़े की किसी भी धार्मिक गतिविधि में हिस्सा नहीं ले सकता और उसे दूसरों से अलग रहना पड़ता है।
Indian Law in Akharas: क्या भारतीय कानून अखाड़ों में लागू नहीं होता?
यह बिल्कुल गलत धारणा है कि अखाड़ों में भारतीय कानून लागू नहीं होता। अखाड़े अपने संन्यासियों को धार्मिक और अनुशासनात्मक नियमों के हिसाब से सजा देते हैं, लेकिन अगर कोई साधु कानूनी अपराध करता है, जैसे कि हत्या, दुष्कर्म या ठगी, तो उस पर भारतीय कानून के तहत ही मुकदमा चलता है।
अगर किसी संन्यासी पर कोई गंभीर आपराधिक आरोप लगता है, तो अखाड़ा परिषद उसे तुरंत निष्कासित कर देती है। इसके बाद, भारतीय संविधान के तहत उस पर कानूनी कार्यवाही होती है। कई मामलों में पुलिस और न्यायालय भी संन्यासियों पर कार्रवाई कर चुके हैं।
अखाड़ों की धार्मिक सजा और कानूनी सजा में क्या फर्क है?
अखाड़े सिर्फ उन्हीं मामलों में दंड दे सकते हैं, जो धार्मिक और अनुशासनात्मक होते हैं। यह सजा अधिकतर तपस्या, माफी मांगने या कुछ समय के लिए निष्कासन जैसी होती है। लेकिन अगर मामला गंभीर है और वह अपराध की श्रेणी में आता है, तो फिर भारतीय कानून के तहत उसे सजा मिलती है।
अगर कोई संन्यासी हत्या, दुष्कर्म, चोरी या धोखाधड़ी जैसे अपराध करता है, तो अखाड़ा उसे अपने नियमों के मुताबिक बाहर निकाल सकता है, लेकिन कानूनी सजा उसे कोर्ट और पुलिस के माध्यम से ही मिलेगी।
अखाड़े भी कानून से ऊपर नहीं हैं
अखाड़ों में नियमों का पालन करवाने के लिए अखाड़ा परिषद काम करती है, जो साधुओं को अनुशासन सिखाने और धार्मिक सजा देने का अधिकार रखती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय कानून वहां लागू नहीं होता।
अगर कोई साधु धार्मिक गलती करता है, तो अखाड़ा परिषद उसे सजा देती है, लेकिन अगर वह कानूनी अपराध करता है, तो उसे भारतीय संविधान के तहत ही सजा मिलेगी। इसलिए अखाड़ों को कानून से अलग मानना सही नहीं होगा।
मूल रूप से, अखाड़ों में संन्यासियों के लिए कुछ धार्मिक और सामाजिक नियम होते हैं, जिनका पालन वे अपनी स्वेच्छा से करते हैं। लेकिन अगर कोई मामला आपराधिक होता है, तो भारतीय कानून उसे किसी आम नागरिक की तरह ही सजा देता है।
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