विधानसभा चुनाव में हार के बाद शिवसेना (यूबीटी) के मुखिया उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व की ओर रुख करने का फैसला किया है। या यूं कह सकते हैं कि कर लिया है। क्योंकि इन दिनों वो जिस तरह के बयान दे रहे हैं उससे ये साफ छलक रहा है कि वो वापसी की राह पर हैं। हाल ही में बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार और दादर के हनुमान मंदिर तोड़ने के विरोध के बाद उन्होंने वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग दोहराई। वहीं राहुल गांधी को भी उन्होंने बड़ी नसीहत देने का काम किया है।
एमवीए में दरार और हिंदुत्व पर जोर
6 दिसंबर को एमएलसी मिलिंद नार्वेकर के बाबरी विध्वंस वाले पोस्ट पर महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में तनाव बढ़ा। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी ने इसका विरोध करते हुए एमवीए से अलग होने की घोषणा की। बीएमसी चुनाव से पहले ये संकेत मिल रहे हैं कि उद्धव ठाकरे एमवीए से अलग होकर हिंदुत्व की राह पर कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ सकते हैं।
राहुल गांधी पर निशाना
पांच वर्षों में पहली बार उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी को सीधे तौर पर नसीहत दी। दरअसल राहुल गांधी ने संसद में वीर सावरकर पर टिप्पणी करते हुए उन्हें मनुवादी करार दिया था। इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि कांग्रेस को सावरकर पर रोना बंद कर देना चाहिए। ये बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया।
हनुमान चालीसा विवाद और हिंदुत्व की वापसी
उद्धव ठाकरे के सीएम कार्यकाल के दौरान अजान बनाम हनुमान चालीसा विवाद गहराया था, तो उन्होंने बीजेपी की महाआरती की आलोचना की थी, जिससे उन पर हिंदुत्व से दूर होने के आरोप लगे। लेकिन, हाल में दादर के 80 साल पुराने हनुमान मंदिर तोड़ने के नोटिस का भी उन्होंने कड़ा विरोध किया और महाआरती का आयोजन कर अपनी हिंदुत्व की छवि को फिर से उभारा।
विधानसभा चुनाव में नुकसान और हिंदुत्व की मजबूरी
2024 के लोकसभा चुनाव में यूबीटी को 16.52% वोट मिले थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में यह घटकर 9.96% रह गए। शिंदे सेना और बीजेपी को बढ़त मिली। गौरतलब है कि बीएमसी चुनाव में कांग्रेस के साथ रहने पर यूबीटी को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका है। इसी कारण उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व और सावरकर को अपने एजेंडे का हिस्सा बना लिया है।
बीएमसी चुनाव में कांग्रेस से दूरी की संभावना
बीएमसी चुनाव के लिए बीजेपी-शिवसेना गठबंधन पहले से तैयार है। अगर विधानसभा के नतीजे बीएमसी चुनाव में दोहराए गए, तो यूबीटी के लिए ये खतरे की घंटी होगी। कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने से छवि बदलने की संभावना कम है। यही वजह है कि उद्धव ठाकरे हिंदुत्व पर जोर देकर कांग्रेस से अलग रास्ता अपनाने की तैयारी कर रहे हैं।
कह सकते हैं कि, उद्धव ठाकरे का हिंदुत्व की ओर रुख करना राजनीतिक परिस्थितियों और चुनावी मजबूरियों का नतीजा है। बीएमसी चुनाव से पहले उनका ये कदम शिवसेना (यूबीटी) की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। हिंदुत्व और वीर सावरकर के मुद्दों पर उनका जोर उनकी छवि को मजबूत कर सकता है, लेकिन इससे महाविकास अघाड़ी में दूरियां और बढ़ेंगी।
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