केंद्र सरकार ने हाल ही में ब्रिटिश ब्रिगेडियर-जनरल जॉन निकोलसन (John Nicholson) की प्रतिमा को ‘राष्ट्रीय महत्व के स्मारक’ का दर्जा हटाने का फैसला किया। यह फैसला ऐतिहासिक घटनाओं और निकोलसन के भारतीयों पर किए गए जुल्मों के कारण चर्चा में आया है। निकोलसन, जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, का नाम इतिहास में भारतीयों के लिए क्रूर और तानाशाही रवैये के लिए जाना जाता है।
जॉन निकोलसन कौन था? (Who was John Nicholson)
जॉन निकोलसन का जन्म 11 दिसंबर, 1822 को आयरलैंड के डबलिन में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर थे, लेकिन उनके बचपन में ही उनकी मृत्यु हो गई। निकोलसन का परिवार बाद में लिसबर्न चला गया। उनके चाचा, सर जेम्स वियर हॉग, ईस्ट इंडिया कंपनी में एक वकील थे, जिन्होंने जॉन को बंगाल इन्फैंट्री में एक सैन्य कैडेट के रूप में नौकरी दिलाई। 1839 में, मात्र 18 साल की उम्र में, निकोलसन ने भारत में अपनी सैन्य सेवा शुरू की।
बनारस में पहली पोस्टिंग और अफगान युद्ध
निकोलसन की पहली पोस्टिंग बनारस में हुई, जिसके बाद उन्हें फिरोजपुर भेजा गया। जल्द ही उनकी टुकड़ी को अफगानिस्तान भेज दिया गया, जहां उन्होंने 1839-42 के प्रथम अफगान युद्ध में भाग लिया। उन्होंने पंजाब और कश्मीर में भी राजनीतिक पदों पर काम किया।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम (1857 Rebellion) के दौरान, निकोलसन को दिल्ली में तैनात किया गया। उसने दिल्ली की घेराबंदी के दौरान विद्रोहियों से लड़ते हुए क्रूरता का प्रदर्शन किया।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम और निकोलसन की भूमिका
1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा विद्रोह था। ब्रिटिश शासन ने इसे कुचलने की जिम्मेदारी जॉन निकोलसन (John Nicholson) जैसे अधिकारियों पर सौंपी थी।
भारतीयों पर किए गए अत्याचार
निकोलसन का रवैया भारतीयों के प्रति बेहद क्रूर था। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि वह भारतीयों को बिना किसी कारण कोड़े मारता था। एक बार, जब एक व्यक्ति ने उनके सामने थूका, तो निकोलसन ने उसे जमीन से थूक चाटने पर मजबूर किया। इसी तरह, एक बार जब एक मस्जिद के इमाम ने उन्हें सलाम नहीं किया, तो उन्होंने इमाम की दाढ़ी मुंडवा दी।
इतिहासकार निकोलसन को ‘औपनिवेशिक मनोरोगी (Colonial Psychopath)’ और ‘सैडिस्टिक बुली’ के रूप में वर्णित करते हैं।
कश्मीरी गेट और उनकी मृत्यु
दिल्ली में विद्रोहियों से लड़ते हुए निकोलसन को गंभीर चोटें आईं। 23 सितंबर, 1857 को उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें कश्मीरी गेट के पास दफनाया गया। 1913 में, ब्रिटिश सरकार ने उनकी प्रतिमा स्थापित की, जो 1958 में उत्तरी आयरलैंड भेज दी गई।
केंद्र सरकार का बड़ा फैसला: राष्ट्रीय महत्व का दर्जा हटाया
3 दिसंबर, 2024 को केंद्र सरकार ने उनकी प्रतिमा और उससे जुड़े स्थल से ‘राष्ट्रीय महत्व का स्मारक’ का दर्जा हटा दिया। यह कदम इस बात का संकेत है कि अब ऐसे औपनिवेशिक प्रतीकों को सम्मानित नहीं किया जाएगा।
राष्ट्रीय स्मारकों (National Monuments) का महत्व
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तहत, राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों को संरक्षित किया जाता है। यह दर्जा किसी स्थल को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए दिया जाता है।
निकोलसन को क्यों याद किया जाता है?
निकोलसन को ब्रिटिश शासकों ने उनके योगदान के लिए सम्मानित किया। उनकी प्रतिमाएं आज भी आयरलैंड में स्थापित हैं। लेकिन भारत के लिए वह एक ऐसा नाम है, जो गुलामी और क्रूरता की कहानी बयान करता है।