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Maharashtra Faces Water Crisis: पुणे से मराठवाड़ा तक, महाराष्ट्र में जल संकट; डैम में 41% पानी, गर्मी में क्या होगा हाल?

Maharashtra Faces Water Crisis: पुणे से मराठवाड़ा तक, महाराष्ट्र में जल संकट; डैम में 41% पानी, गर्मी में क्या होगा हाल?

Maharashtra Faces Water Crisis: महाराष्ट्र की धरती पर गर्मी अपने तेवर दिखा रही है, और इसके साथ ही एक और चिंता ने लोगों का ध्यान खींचा है। जल संकट (Water Crisis) अब केवल खबरों की सुर्खियां नहीं, बल्कि हर घर की हकीकत बनता जा रहा है। अप्रैल 2025 की शुरुआत में ही राज्य के डैमों में पानी का स्तर 41.3 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा सुनकर शायद मन में सवाल उठे कि आखिर इतने बड़े राज्य में पानी की कमी क्यों हो रही है? खासकर जब गर्मी का मौसम अपने चरम पर पहुंचने वाला है, और बारिश की उम्मीद अभी दूर की कौड़ी है। आइए, इस कहानी को करीब से समझते हैं।

राज्य में कुल 2,997 डैम हैं, जिनमें छोटे से लेकर बड़े जलाशय शामिल हैं। इनकी कुल क्षमता 40,498 मिलियन क्यूबिक मीटर है। लेकिन इस साल अप्रैल के मध्य तक इनमें केवल 30,034 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बचा है। यह स्थिति पिछले साल की तुलना में थोड़ी बेहतर जरूर है, जब पानी का स्तर 35.16 प्रतिशत था, लेकिन गर्मी की तपिश और बारिश की देरी ने चिंताएं बढ़ा दी हैं। खास तौर पर पुणे क्षेत्र की स्थिति सबसे नाजुक है, जहां डैमों में केवल 36.31 प्रतिशत पानी बचा है। दूसरी ओर, अमरावती क्षेत्र में 50.09 प्रतिशत पानी के साथ स्थिति थोड़ी स्थिर दिखती है। लेकिन यह स्थिरता कितने दिन टिकेगी, यह सवाल हर किसी के मन में है।

पुणे की बात करें तो यहां के लोग पहले से ही पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं। गर्मी बढ़ने के साथ ही पानी की मांग और ज्यादा हो गई है। कई इलाकों में लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए वाटर टैंकर (Water Tanker) पर निर्भर हैं। एक परिवार की कहानी सुनें, जो पुणे के बाहरी इलाके में रहता है। सुबह-सुबह घर की महिलाएं टैंकर का इंतजार करती हैं, क्योंकि उनके घर में नल से पानी की बूंद तक नहीं आती। जब टैंकर आता है, तो पूरा मोहल्ला जमा हो जाता है। पानी भरने की जल्दी में कभी-कभी छोटी-मोटी बहस भी हो जाती है। यह दृश्य अब पुणे ही नहीं, बल्कि मराठवाड़ा और नासिक जैसे क्षेत्रों में भी आम हो गया है।

मराठवाड़ा का हाल तो लंबे समय से चिंताजनक रहा है। यहां डैमों में पानी का स्तर 40.49 प्रतिशत है। यह क्षेत्र पहले भी सूखे की मार झेल चुका है, और अब गर्मी की लहर ने हालात को और मुश्किल कर दिया है। मराठवाड़ा के एक गांव में रहने वाले किसान ने बताया कि उनके खेतों में पानी की कमी के कारण फसलें सूख रही हैं। गांव में एकमात्र कुआं भी अब जवाब दे चुका है। ऐसे में वाटर टैंकर (Water Tanker) ही उनकी आखिरी उम्मीद है। लेकिन टैंकर का पानी सिर्फ पीने के लिए पर्याप्त है, खेती के लिए नहीं। ऐसे में किसानों की चिंता बढ़ना लाजमी है।

राज्य सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए कदम उठा रही है। अप्रैल की शुरुआत तक 223 टैंकर 178 गांवों और 606 बस्तियों में पानी पहुंचा रहे हैं। सतारा जिले में सबसे ज्यादा 40 टैंकर काम कर रहे हैं, जबकि जालना में 32 और ठाणे में 30 टैंकर लोगों की प्यास बुझाने में जुटे हैं। यह आंकड़े सुनने में छोटे लग सकते हैं, लेकिन इनके पीछे लाखों लोगों की जिंदगी जुड़ी है। ठाणे जैसे शहरी इलाके में भी टैंकरों की जरूरत पड़ना इस बात का सबूत है कि जल संकट (Water Crisis) अब केवल गांवों तक सीमित नहीं रहा।

कॉन्कण क्षेत्र की स्थिति थोड़ी बेहतर है, जहां डैमों में 49.96 प्रतिशत पानी बचा है। नासिक में 43.9 प्रतिशत और नागपुर में 41.49 प्रतिशत पानी के साथ ये क्षेत्र भी चिंता के दायरे में हैं। गर्मी का मौसम अभी और सख्त होने वाला है, और मौसम विभाग ने भी तापमान बढ़ने की चेतावनी दी है। ऐसे में पानी की हर बूंद कीमती हो गई है। एक बुजुर्ग ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पहले उनके गांव में तालाब और कुएं गर्मी में भी भरे रहते थे। लेकिन अब नदियां सूख रही हैं, और कुओं का पानी भी गहराई में चला गया है।

यह संकट सिर्फ पानी की कमी की कहानी नहीं है। यह उस बदलते पर्यावरण की कहानी है, जहां गर्मी की तपिश हर साल बढ़ रही है। यह उन नीतियों की कहानी है, जो शायद समय पर पूरी तरह लागू नहीं हो पाईं। और यह उन लोगों की कहानी है, जो हर दिन पानी के लिए जूझ रहे हैं। मराठवाड़ा के एक स्कूल में बच्चे अब पानी की बोतलें साथ लाते हैं, क्योंकि स्कूल का टैंक खाली है। पुणे के एक ऑफिस में कर्मचारी अपने घर से पानी लाकर काम चला रहे हैं। ये छोटी-छोटी कहानियां उस बड़े संकट का हिस्सा हैं, जो महाराष्ट्र के सामने खड़ा है।


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