Mill Workers Housing Scheme: मुंबई की चकाचौंध के बीच एक कहानी ऐसी भी है, जो दशकों से अधूरी पड़ी है। बात है गिरणी कामगार यानी उन टेक्सटाइल मिल वर्कर्स की, जिन्होंने कभी मुंबई को कपड़ा उद्योग का गढ़ बनाया था। लेकिन जब ये मिलें बंद हुईं, तो इन कामगारों के सामने सबसे बड़ा सवाल था – रहने का ठिकाना। महाराष्ट्र सरकार ने इनके लिए गिरणी कामगार आवास योजना शुरू की, जो देश में अपनी तरह की इकलौती योजना है। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि 1.5 लाख से ज़्यादा कामगारों और उनके वारिसों में से सिर्फ 10% को ही अब तक घर मिल पाया है। Mill Workers Housing Scheme के तहत क्या हो रहा है, और क्यों कामगार सड़कों पर उतर आए? आइए, इस कहानी को समझते हैं।
महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी, यानी MHADA, इस योजना को चला रही है। इसका मकसद है उन गिरणी कामगार और उनके परिवारों को घर देना, जिन्होंने मिलें बंद होने के बाद अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा किराए के मकानों में या झुग्गियों में गुज़ारा। MHADA ने इसके लिए एक खास अभियान शुरू किया, जिसमें 1,50,484 कामगारों और उनके वारिसों की पात्रता जांचने का काम चल रहा है। अब तक 1,12,434 लोगों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन आवेदन किए हैं। इनमें से 99,136 लोगों को पात्र माना गया है, और बाकियों की जांच अभी जारी है। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर आवेदनों के बावजूद, अब तक सिर्फ 15,490 फ्लैट्स ही बांटे गए हैं। ये कुल पात्र कामगारों का महज 10% है।
ये आंकड़ा सुनकर कोई भी हैरान हो सकता है। आखिर इतने सालों में इतनी कम प्रगति क्यों? Mill Workers की शिकायत है कि सरकार और MHADA ने उनके साथ वादा तो किया, लेकिन उसे पूरा करने में सुस्ती बरती। कई कामगार दशकों से इंतज़ार कर रहे हैं। उनकी मांग है कि उन्हें मुंबई में ही घर दिए जाएं, न कि दूर-दराज के इलाकों जैसे शेलू या वांगणी में। इस मांग को लेकर 9 जुलाई 2025 को गिरणी कामगार आझाद मैदान पर इकट्ठा हुए और जोरदार प्रदर्शन किया। उद्धव ठाकरे और विपक्ष के कई नेताओं ने इस प्रदर्शन को समर्थन दिया। उनका कहना था कि संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में इन कामगारों ने बड़ा त्याग किया था, और अब उन्हें उनका हक मिलना चाहिए।
MHADA के अधिकारियों का कहना है कि ये अभियान अभी चल रहा है। आने वाले समय में और लॉटरी के जरिए फ्लैट्स बांटे जाएंगे। लेकिन ये प्रक्रिया हाउसिंग स्टॉक की उपलब्धता पर निर्भर करती है। यानी अगर मुंबई में और फ्लैट्स नहीं बने, तो कामगारों का इंतज़ार और लंबा हो सकता है। गिरणी कामगार आवास योजना की शुरुआत 2012 में हुई थी, और 2020 तक सिर्फ 16,000 कामगारों को घर मिले। बाकी 1.26 लाख लोग अभी भी अपने घर का सपना देख रहे हैं।
ये कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं है। ये उन परिवारों की कहानी है, जिन्होंने मुंबई की मिलों में दिन-रात मेहनत की। उनके खून-पसीने से शहर की रौनक बढ़ी, लेकिन आज वो अपने ही शहर में एक छोटा-सा आशियाना मांग रहे हैं। Mill Workers का ये संघर्ष दिखाता है कि वादों और हकीकत के बीच कितना लंबा फासला हो सकता है।
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