Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक नाबालिग बच्ची की जिम्मेदारी उसके दादा-दादी को सौंप दी है। कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उस बच्ची की मां ने पिछले करीब 7 सालों से बेटी से कोई संपर्क नहीं किया था। ऐसे में बेटी के हितों को ध्यान में रखते हुए दादा-दादी को संरक्षक नियुक्त करना ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने उचित समझा।
दरअसल 14 वर्षीय बच्ची के पिता की सितंबर 2011 को ब्रेन ट्यूमर की वजह से मौत हो गई थी, जिसके बाद बच्ची की मां ने दूसरी शादी कर ली और वर्तमान में वो गुजरात में रहती है। पिछले करीब 7 साल से उसने अपनी बेटी से कोई संपर्क नहीं किया। जन्म से दादा-दादी ही पोती की देखरेख कर रहे हैं। एक तरह ये कहना शायद गलत नहीं होगा कि मां ने बेटी का त्याग कर दिया है।
कुछ समय पहले दादा-दादी ने पोती के पासपोर्ट के लिए अर्जी दी थी, लेकिन पासपोर्ट ऑफिस ने अदालत के आदेश के बिना पासपोर्ट जारी करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद दादा-दादी ने पोती की नानी के जरिए मां के पास पासपोर्ट के लिए जरूरी कागज दस्तखत के लिए भेजे थे, पर सफलता नहीं मिली। दरअसल दादा-दादी सऊदी अरब उमराह के लिए जाना चाहते हैं। इसलिए वे पोती का पासपोर्ट बनवाना चाहते हैं। ताकि वे उसे अपने साथ ले जा सकें। (Mumbai News)
ऐसे में जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा और जांच की गई, तो जस्टिस रियाज छागला ने पाया कि नाबालिग की मां ने बेटी को छोड़ दिया है। पिता के निधन के बाद से वो दादा-दादी के पास रह रही है। नाबालिग को खुद की मां के ठिकाने की जानकारी नहीं है। कई सालों से मां ने बेटी से संपर्क करने का प्रयास तक नहीं किया है। नाबालिग का दादा-दादी से बेहद जुड़ाव है। दादा-दादी भी पोती के हितों को ठीक से देख रहे हैं।
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नाबालिग की मां ने बेटी के पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया में सहयोग नहीं किया है। ऐसे में याचिकाकर्ताओं (दादा-दादी) को नाबालिग (पोती) का संरक्षक नियुक्त करना पूरी तरह से उसके हित में है। इस तरह जस्टिस छागला ने दादा-दादी की पोती का संरक्षक नियुक्त करने की मांग को मंजूर कर लिया। (Mumbai News)
ऐसे में हाईकोर्ट का ये फैसला एक महत्वपूर्ण निर्णय साबित होता है, जो नाबालिग बच्चों के हितों की रक्षा के लिए एक अच्छा उदाहरण है। इस फैसले से ये साबित होता है कि अगर माता-पिता बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ होते हैं, तो दादा-दादी या अन्य करीबी रिश्तेदारों को बच्चों का संरक्षक नियुक्त किया जा सकता है। ये फैसला उन बच्चों के लिए भी एक राहत है, जिनकी मां-बाप उन्हें छोड़ देते हैं। (Mumbai News)
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