भारतीय नौसेना के लिए 21 जुलाई का दिन काले अक्षरों में लिखा जाएगा। उस दिन, मुंबई के नौसैनिक डॉकयार्ड में एक ऐसी घटना हुई, जिसने न सिर्फ नौसेना को करोड़ों का नुकसान पहुंचाया, बल्कि उसकी छवि को भी बड़ा धक्का लगा। आईएनएस ब्रह्मपुत्र, जो नौसेना का एक गर्व था, आग की चपेट में आ गया। यह घटना कई सवाल खड़े करती है और नौसेना की तैयारियों पर संदेह पैदा करती है।
आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं। 21 जुलाई को, जब आईएनएस ब्रह्मपुत्र की मरम्मत चल रही थी, अचानक उसमें आग लग गई। आग इतनी भयानक थी कि उसे बुझाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन जो नुकसान होना था, वह हो चुका था। आग बुझाने के लिए इतना पानी इस्तेमाल किया गया कि जहाज अपने एक तरफ झुक गया। अब उसे सीधा करना एक बड़ी चुनौती बन गया है।
यह जहाज कोई मामूली जहाज नहीं था। आईएनएस ब्रह्मपुत्र भारत में बना पहला गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट था। इसे अप्रैल 2000 में नौसेना में शामिल किया गया था। यह जहाज कई तरह के हथियारों से लैस था। इसमें सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें, हवा में मार करने वाली मिसाइलें, बड़ी बंदूकें, पनडुब्बी रोधी रॉकेट और कई आधुनिक उपकरण थे। इस जहाज की कीमत 6,000 करोड़ रुपये से ज्यादा थी। सोचिए, इतना महंगा और ताकतवर जहाज एक आग की वजह से इस हालत में पहुंच गया।
लेकिन यह सिर्फ पैसे का नुकसान नहीं है। इस हादसे में एक जवान की जान भी चली गई। जूनियर नाविक सीतेंद्र सिंह, जो आग बुझाने में लगा था, लापता हो गया था। तीन दिन बाद उसका शव मिला। यह घटना बताती है कि इस तरह के हादसों में जान का खतरा कितना बड़ा होता है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर यह हादसा कैसे हुआ? क्या इसे रोका जा सकता था? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए नौसेना ने एक जांच टीम बनाई है। एक रियर एडमिरल इस जांच की अगुवाई करेंगे। वे देखेंगे कि आग कैसे लगी और क्या कोई लापरवाही हुई थी। नौसेना ने कहा है कि वह जल्द ही इस मामले में जिम्मेदारी तय करेगी।
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब नौसेना के साथ ऐसा कुछ हुआ है। पिछले कुछ सालों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें नौसेना के जहाजों को नुकसान पहुंचा है। 2013 में एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 1990 के बाद से भारतीय नौसेना हर पांच साल में एक युद्धपोत खो देती है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है और नौसेना की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
सरकार के हिसाब-किताब रखने वाली संस्था CAG ने भी इस मामले पर चिंता जताई है। CAG की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 से 2016 के बीच नौसेना में 38 दुर्घटनाएं हुईं। इनमें से ज्यादातर आग लगने, धमाके होने या पानी भर जाने की वजह से हुईं। इन हादसों में कई अफसर और जवान मारे गए। CAG ने इन हादसों के लिए चालक दल की गलती और सामान के खराब होने को जिम्मेदार ठहराया।
अब आईएनएस ब्रह्मपुत्र को बचाना एक बड़ी चुनौती है। यह जहाज 3,850 टन का है और अब एक तरफ झुका हुआ है। इसे सीधा करने में कई महीने लग सकते हैं। 2016 में भी ऐसा ही एक हादसा हुआ था जब आईएनएस बेतवा नाम का जहाज पलट गया था। उसे ठीक करने में तीन महीने लगे थे। ऐसे में, आईएनएस ब्रह्मपुत्र को दोबारा चालू करने में भी काफी वक्त लग सकता है।
यह घटना नौसेना के लिए एक बड़ा सबक है। यह बताती है कि पुराने जहाजों की देखभाल और मरम्मत पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। नौसेना को अपने सुरक्षा नियमों और रखरखाव के तरीकों को बेहतर बनाना होगा। साथ ही, जहाजों की मरम्मत के दौरान सावधानी बरतनी होगी ताकि ऐसे हादसे न हों।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी नौसेना अपने जहाजों की सही देखभाल कर पा रही है? क्या हमारे पास इतने महंगे और जरूरी जहाजों को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त संसाधन और कौशल है? ये सवाल सिर्फ नौसेना के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अंत में, ये जहाज हमारी सुरक्षा की पहली कतार हैं और इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हम सबकी जिम्मेदारी है।
आईएनएस ब्रह्मपुत्र की यह दुर्घटना हमें याद दिलाती है कि तकनीक के इस युग में भी, छोटी सी चूक कितना बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। यह घटना हमें सतर्क रहने और हर काम को पूरी सावधानी से करने की याद दिलाती है। उम्मीद है कि इस घटना से सबक लेकर नौसेना अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करेगी, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाएं न हों और हमारे बहादुर नाविकों की जान खतरे में न पड़े।
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