North Maharashtra Election Struggle: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में इस बार उत्तर महाराष्ट्र (North Maharashtra) का विशेष महत्व है। जहां नासिक, मालेगांव, धुले और नंदुरबार जैसे इलाकों में सामान्यतः राष्ट्रीय मीडिया का उतना ध्यान नहीं जाता, वहीँ इस बार सभी प्रमुख पार्टियाँ यहां जोर-शोर से जुटी हुई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह क्षेत्र महायुति (BJP) और महा विकास अघाड़ी (MVA) के बीच कड़े मुकाबले का साक्षी बनेगा, और हर सीट जीतने के लिए नेताओं को कड़ी मेहनत करनी होगी।
उत्तर महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में कई दिग्गज नेताओं का वर्चस्व रहा है, लेकिन इस बार तस्वीर बदली हुई नजर आ रही है। उत्तर महाराष्ट्र (North Maharashtra) में मतदाताओं के बीच एंटी-इनकंबेंसी (Anti-incumbency) की भावना स्पष्ट है और वोटों का विभाजन भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान से देखने पर समझ आता है कि क्षेत्रीय नेताओं को अपने पारंपरिक समर्थन का भरोसा बनाए रखने के लिए इस बार अधिक प्रयास करने होंगे।
क्षेत्रीय नेताओं की चुनौतियाँ और बदलता समीकरण
उत्तर महाराष्ट्र के दिग्गज नेताओं में NCP के छगन भुजबल, BIP के गिरीश महाजन और हाल ही में BJP छोड़कर NCP में शामिल हुए एकनाथ खडसे प्रमुख हैं। ये सभी नेता उत्तर महाराष्ट्र चुनाव संघर्ष (North Maharashtra Election Struggle) में कई बार विजयी हो चुके हैं। लेकिन इस बार उत्तर महाराष्ट्र चुनाव संघर्ष (North Maharashtra Election Struggle) में इनके लिए जीत की राह उतनी आसान नहीं दिखाई देती।
महाजन, जो वर्तमान में डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस के करीब माने जाते हैं, अपने क्षेत्र जमनेर में एंटी-इनकंबेंसी का सामना कर सकते हैं। इसी तरह, भुजबल को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है क्योंकि वे इस बार महायुति से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनके भतीजे समी भुजबल MVA के समर्थन से दूसरे क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे हैं।
खडसे की बीजेपी में वापसी की चर्चाएं थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब देखना यह है कि क्या बीजेपी अपने योजनाओं जैसे मुख्यमंत्री लाड़की बहन योजना और किसानों के लिए सीधी लाभ अंतरण योजनाओं से मतदाताओं को आकर्षित कर पाती है।
किसानों का आक्रोश और महायुति के सामने चुनौती
उत्तर महाराष्ट्र के किसान सरकार की प्याज और अन्य कृषि उत्पादों पर नीतियों से खासे नाराज हैं। इस साल की शुरुआत में प्याज निर्यात पर प्रतिबंध से लाखों किसानों को आर्थिक झटका लगा और इस नाराजगी का असर लोकसभा चुनाव में भी दिखा। अब महायुति के नेता हर रैली में यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने केंद्र सरकार को प्याज निर्यात पर लगी पाबंदी हटाने के लिए कैसे मनाया।
हालांकि, इस पर विपक्षी पार्टियां हमलावर हैं और इसे अपनी ताकत के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। इसके अलावा, नंदुरबार, धुले और नासिक जैसे जिलों में विकास की कमी, पेयजल संकट, खराब सड़कों, बिजली कटौती और सरकारी स्कूलों की बदतर हालत जैसे मुद्दों पर भी विपक्षी दल जोर-शोर से आवाज उठा रहे हैं।
उत्तर महाराष्ट्र के जनजातीय इलाकों में तो स्थिति और भी गंभीर है। वहां की सरकारी सहायता योजनाएं और शिक्षकों की स्थिति भी ठीक नहीं है। विपक्षी नेताओं द्वारा विकास की कमी को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाकर जनता का समर्थन पाने का प्रयास किया जा रहा है।
असंतुष्ट नेता और विद्रोह का माहौल
उत्तर महाराष्ट्र में वोटों का विभाजन इस बार का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। कई कद्दावर नेताओं ने बगावत कर दी है और चुनाव मैदान में उतर गए हैं। उदाहरण के लिए, पूर्व राज्य उपाध्यक्ष नरहरी जिरवाल, जो डिप्टी CM अजीत पवार के करीब माने जाते हैं, ने हाल ही में राज्य मुख्यालय मंतरालय में विरोध का प्रदर्शन किया। इस कदम ने सत्ता के खिलाफ नाराजगी के संकेत दिए।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि आगामी 4 नवंबर, जब नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख है, तब स्थिति और स्पष्ट होगी। कई बागी नेता अपने-अपने दलों से आगामी नगरपालिका चुनावों के लिए अवसर पाने की उम्मीद में नामांकन वापस लेने पर विचार कर सकते हैं। फिलहाल, स्थिति असमंजस में है और यह तय करना कठिन है कि उत्तर महाराष्ट्र का क्षेत्र किसके पक्ष में जाएगा।
महायुति की योजनाएं और वित्तीय सहायता योजनाएं उत्तर महाराष्ट्र में वोट सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं लगतीं।