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एक देश, एक वोट: क्या एक साथ चुनाव से मिलेगी विकास को रफ्तार?

एक देश, एक वोट: क्या एक साथ चुनाव से मिलेगी विकास को रफ्तार?

एक साथ चुनाव: भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, एक नए और रोमांचक मोड़ पर खड़ा है। हाल ही में, सरकार ने एक साथ चुनाव (One Nation One Election) की अवधारणा पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया है। यह विचार नया नहीं है, लेकिन अब इसे नए सिरे से देखा जा रहा है। आइए समझते हैं कि यह क्या है और इसका क्या मतलब हो सकता है हमारे देश के लिए।

एक साथ चुनाव का मतलब क्या है?

जब हम एक साथ चुनाव की बात करते हैं, तो इसका मतलब है कि देश में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और यहां तक कि स्थानीय निकायों के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएं। ये चुनाव हर पांच साल में होंगे। इस तरह, हर वोटर को एक ही दिन में कई मतपत्र मिलेंगे – एक केंद्र सरकार के लिए, एक राज्य सरकार के लिए, और शायद एक स्थानीय निकाय के लिए भी।

क्या यह पहले भी हुआ है?

हां, बिल्कुल! भारत में आजादी के बाद के शुरुआती सालों में ऐसा ही होता था। 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। लेकिन धीरे-धीरे, कई कारणों से यह व्यवस्था टूट गई। कभी किसी सरकार का गिरना, तो कभी राज्यों का बंटवारा – ऐसी कई घटनाओं ने चुनावों के कार्यक्रम को अलग-अलग कर दिया।

एक साथ चुनाव के फायदे

एक साथ चुनाव कराने के कई फायदे हो सकते हैं। सबसे पहले तो इससे पैसे की बचत होगी। हर बार चुनाव कराने में सरकार का बहुत पैसा खर्च होता है। एक साथ चुनाव कराने से यह खर्च काफी कम हो सकता है।

दूसरा बड़ा फायदा समय की बचत है। अलग-अलग चुनावों में नेताओं और अफसरों का बहुत समय लगता है। एक साथ चुनाव से यह समय बच सकता है, जो विकास के काम में लगाया जा सकता है।

एक और महत्वपूर्ण बात है आचार संहिता का कम असर। चुनाव के दौरान लागू होने वाली आचार संहिता कई सरकारी कामों को रोक देती है। एक साथ चुनाव से यह समस्या कम होगी और सरकार लगातार काम कर पाएगी।

चुनौतियां और सवाल

हालांकि इस विचार के कई फायदे हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां और सवाल भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती है संविधान में बदलाव। एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कई बदलाव करने होंगे। यह एक बड़ी और मुश्किल प्रक्रिया हो सकती है।

कुछ छोटे राजनीतिक दल चिंतित हैं कि इससे उन्हें नुकसान हो सकता है। उनका कहना है कि बड़े राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय मुद्दों को दबा देंगे। यह एक वाजिब चिंता है जिस पर ध्यान देना होगा।

एक और बड़ा सवाल है – अगर कोई सरकार बीच में गिर जाती है, तो क्या होगा? क्या फिर से पूरे देश में चुनाव कराए जाएंगे? इस तरह के सवालों का जवाब ढूंढना होगा।

आगे का रास्ता

सरकार ने इस विचार पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है। एक कमेटी बनाई गई है जो इस पर विचार कर रही है। इस कमेटी में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृह मंत्री अमित शाह, और कई अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं।

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कई सुझाव दिए हैं। जैसे, सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जा सकता है। पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं और दूसरे फेज में 100 दिनों के अंदर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं।

लेकिन यह एक बड़ा बदलाव होगा। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों, विशेषज्ञों और आम लोगों से बात करनी होगी। सबकी राय लेकर ही कोई फैसला लिया जा सकता है।

दुनिया के अन्य देशों का अनुभव

दुनिया के कई देशों में पहले से ही एक साथ चुनाव होते हैं। जैसे, दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हर 5 साल पर एक साथ होते हैं। स्वीडन में राष्ट्रीय, प्रांतीय और स्थानीय चुनाव हर चार साल पर एक साथ होते हैं। इंग्लैंड में भी चुनाव का एक निश्चित कार्यक्रम है।

इन देशों के अनुभव से हम सीख सकते हैं। हमें देखना होगा कि उन्होंने किन चुनौतियों का सामना किया और उन्हें कैसे हल किया।

एक साथ चुनाव का विचार रोमांचक है, लेकिन इसे लागू करने में कई चुनौतियां हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह विचार कैसे आगे बढ़ता है। क्या यह सच में भारतीय लोकतंत्र का नया अध्याय लिखेगा? यह तो समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है, अगर यह लागू होता है तो यह भारतीय लोकतंत्र में एक बड़ा बदलाव होगा।

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