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जब आसमान से बरसा मौत का मलबा, चीखों से गूंज उठा किश्तवाड़, जानें कैसे इस तबाही ने लील ली अनेकों जिंदगी

किश्तवाड़
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जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले का चशोती इलाका गुरुवार को ऐसी त्रासदी का गवाह बना, जिसे सुनकर दिल कांप उठे। दोपहर करीब 12 से 1 बजे के बीच आसमान से बरसे पानी ने पलभर में कहर बरपा दिया। बादल फटते ही पहाड़ से पानी और मलबे का सैलाब लंगर में बैठे श्रद्धालुओं, दुकानों और घरों की ओर टूट पड़ा। चीख-पुकार, भागते लोग और बहती ज़िंदगियां, ये नज़ारा किसी बुरे सपने से कम नहीं था।

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खबर लिखे जाने तक 32 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 80 से अधिक घायल हैं, जिनमें कई की हालत नाज़ुक है। बचाव दल लगातार मलबे में दबे और पानी में फंसे लोगों को खोजने की कोशिश कर रहे हैं। सेना, NDRF, SDRF और स्थानीय पुलिस रात-दिन राहत कार्य में जुटी है।

तबाही का केंद्र: मचैल माता यात्रा मार्ग
चशोती गांव, जो साढ़े 9 हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित है, मचैल माता मंदिर जाने वाला अंतिम मोटरेबल पॉइंट है। यहां से 8.5 किमी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है। हादसे के समय यात्रा पर आए सैकड़ों लोग मौजूद थे। लंगर में प्रसाद बांटा जा रहा था, तभी आसमान फट पड़ा। पानी और पत्थरों के तेज बहाव में कई बसें, बाइकें, दुकानें और लंगर तक बह गए।

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तस्वीरों में दर्द और बर्बादी
सोशल मीडिया पर आई तस्वीरों में हर ओर मलबा, टूटी इमारतें, बिखरे वाहन और बर्बाद ज़िंदगियां दिख रही हैं। ऐसा लगता है मानो धरती ने खुद को फाड़ दिया हो।

बचाव में चुनौतियां
टूटी सड़कें, तेज बहाव और पहाड़ी इलाका राहत कार्य को बेहद कठिन बना रहे हैं। उधमपुर से NDRF की दो टीमें भेजी गई हैं, सेना के हेलीकॉप्टर भी रेस्क्यू के लिए तैयार हैं। लेकिन खराब मौसम मुश्किलें बढ़ा रहा है।

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देशभर से संवेदनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने गहरा दुख जताते हुए प्रशासन को हर संभव मदद के निर्देश दिए हैं। मचैल माता की वार्षिक यात्रा को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।

ये हादसा सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों के लिए हमेशा न मिटने वाला घाव है, जिन्होंने अपनों को इस बर्बादी में खो दिया। चशोती की पहाड़ियां आने वाले वर्षों तक इस दिन के ज़ख्म याद रखेंगी।

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