Why India Elephant: भारत और चीन के बीच रिश्तों की बातें हमेशा चर्चा में रहती हैं। हाल ही में चीन के तियानजिन में हुए 25वें SCO शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सात साल बाद आमने-सामने आए। यह मुलाकात तब हुई जब अमेरिका ने भारत पर 50% तक टैरिफ लगाने का दबाव बढ़ाया है। ऐसे में एशिया के दो बड़े देशों के नेताओं का एक साथ दिखना दुनिया की नजरों में अहम हो गया।
शी जिनपिंग ने कहा कि भारत और चीन दुनिया की सबसे पुरानी और बड़ी सभ्यताओं में से हैं। दोनों देश ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं और पड़ोसी होने के नाते दोस्त बने रहना ही बेहतर है। उन्होंने कहा कि ड्रैगन और हाथी का एक साथ आना जरूरी है। लेकिन सवाल यह है कि चीन खुद को ड्रैगन और भारत को हाथी क्यों कहता है? इसकी कहानी बड़ी रोचक है।
भारत को हाथी की उपमा सबसे पहले विदेशी मीडिया ने दी। 2015 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने पेरिस क्लाइमेट समिट के दौरान भारत को एक सुस्त हाथी के रूप में दिखाया था, जो जलवायु परिवर्तन की ट्रेन को रोक रहा है। यानी भारत को धीमा और रुकावट डालने वाला बताया गया। वहीं, चीन को ड्रैगन कहा गया, क्योंकि उनकी संस्कृति में ड्रैगन ताकत और तेजी का प्रतीक है।
1990 के दशक में जब भारत ने आर्थिक सुधार शुरू किए, तब विदेशी पत्रिकाओं ने भारत और चीन की तुलना शुरू की। चीन को तेज और आक्रामक ड्रैगन कहा गया, जबकि भारत को कभी सुस्त तो कभी लंगड़ा हाथी बताया गया। कनाडा के लेखक डेविड एम. मालोन ने अपनी किताब में लिखा कि भारत भले ही धीमे चलता हो, लेकिन हाथी की तरह मजबूत और स्थिर है। धीरे-धीरे हाथी भारत की अंतरराष्ट्रीय पहचान बन गया।
चीन में ड्रैगन की कहानी बहुत पुरानी है। करीब 1800 साल पहले हान राजवंश ने ड्रैगन को शाही प्रतीक बनाया था। वहां के सम्राट इसे अपनी ताकत और गौरव से जोड़ते थे। आज भी चीन में ड्रैगन को भाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, पश्चिमी देशों में ड्रैगन को खतरनाक राक्षस की तरह देखा जाता है।
भारत का हाथी से रिश्ता भी कम पुराना नहीं है। सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों से लेकर भगवान गणेश तक, हाथी भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे कूटनीति में भी इस्तेमाल किया। उन्होंने कनाडा और जापान के बच्चों को उपहार में हाथी भेजे, जिसे एनिमल डिप्लोमेसी कहा गया। इस तरह ड्रैगन और हाथी की यह कहानी दोनों देशों की पहचान और सोच को दिखाती है।
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