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Prashant Kishor Politics: क्या बिहार में प्रशांत किशोर (PK) की ‘गाड़ी’ रफ्तार पकड़ने से पहले ही ‘सड़क’ से उतरने लगी

Prashant Kishor Politics: क्या बिहार में प्रशांत किशोर (PK) की 'गाड़ी' रफ्तार पकड़ने से पहले ही 'सड़क' पर से उतरने लगी

Prashant Kishor Politics: बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने आए प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) का सपना शायद उम्मीद से पहले ही धुंधला पड़ने लगा है। उनकी पार्टी जनसुराज (Jansuraj) में हाल ही में कुछ बड़े नेताओं ने किनारा कर लिया है। यही सवाल खड़ा होता है कि क्या प्रशांत किशोर की राजनीति का जादू लोगों पर फीका पड़ने लगा है, और क्यों उनकी ‘गाड़ी’ पटरी से उतरने के हालात में आ गई है?

पिछले दिनों हुए उपचुनावों के नतीजों ने इस तस्वीर को और साफ कर दिया। चार विधानसभा सीटों पर पूरी तैयारी के साथ उतरी जनसुराज को करारी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, प्रशांत किशोर और उनकी टीम को लगा था कि ये चुनाव बिहार में उनकी पार्टी के लिए एक मजबूत आधार बन सकते हैं।


जनसुराज में टूट का सिलसिला क्यों शुरू हुआ?

जनसुराज पार्टी के साथ शुरुआत में उन नेताओं का जुड़ाव देखने को मिला, जो अपने राजनीतिक करियर में अन्य पार्टियों में हाशिए पर आ चुके थे। इनमें से कई को उम्मीद थी कि प्रशांत किशोर उनके लिए एक नई राह खोलेंगे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, यह भरोसा कमजोर पड़ने लगा।

बेगूसराय के पूर्व सांसद मोनाजिर हसन और झंझारपुर के पूर्व सांसद देवेंद्र यादव ने पार्टी को अलविदा कह दिया। मोनाजिर ने तो सीधे तौर पर कहा कि पार्टी में कोर कमिटी का गठन बिना उनकी राय लिए कर दिया गया। उन्होंने सवाल उठाया कि 151 सदस्यों वाली कोर कमिटी बनाना आखिर कितना व्यावहारिक है।


नेताओं के जाने की असल वजह

मोनाजिर हसन ने मीडिया से बातचीत में साफ-साफ कहा कि जनसुराज पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की कमी है। उनके मुताबिक, “प्रशांत किशोर से उम्मीद थी कि वह बिहार की राजनीति को नई दिशा देंगे, लेकिन जो व्यक्ति कभी वार्ड कमीश्नर का चुनाव नहीं जीत पाया, वह लालू यादव और नीतीश कुमार से भी ज्यादा घमंड में दिखता है।”

दूसरी ओर, देवेंद्र यादव ने भी पार्टी कोर कमिटी के अपने अनुभव को निराशाजनक बताया। उन्होंने कहा कि उनके कद को देखते हुए उन्हें उचित पद दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।


क्या उपचुनावों में हार ने पीके को कमजोर कर दिया?

बिहार के चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी थी। इन सीटों में तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज शामिल थीं। लेकिन, नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आए। इनमें से दो सीटों पर पार्टी ने अपनी इज्जत बचाने में कामयाबी पाई, लेकिन बाकी जगहों पर हार इतनी बुरी थी कि जनसुराज के भविष्य पर सवाल उठने लगे।

इतना ही नहीं, तिरहुत स्नातक सीट के उपचुनाव में भी पार्टी हार गई। हालांकि, यहां पार्टी ने दूसरा स्थान पाकर थोड़ी राहत जरूर महसूस की। इस हार के बाद विपक्ष, खासकर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने जनसुराज को “फुलझरिया पार्टी” कहकर तंज कसा।


जनसुराज छोड़ने के कारण: नेताओं की असंतुष्टि

जनसुराज (Jansuraj) के नेता अब यह मानने लगे हैं कि पार्टी का आंतरिक ढांचा कमजोर है। प्रशांत किशोर का एकाधिकार और बड़े नेताओं की उपेक्षा भी इसका एक बड़ा कारण है। नेताओं को यह महसूस होने लगा है कि पार्टी में उनकी स्थिति सिर्फ नाममात्र की रह गई है।


आगे की चुनौती: प्रशांत किशोर पर सवाल

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) अभी भी कहते हैं कि 2025 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सबकी “खटिया खड़ी” कर देगी। लेकिन उपचुनावों के खराब प्रदर्शन और बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के चलते यह दावा कमज़ोर नजर आ रहा है।


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