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Rare Earth: तेल गया, अब चुंबक का दौर! कैसे धरती में दबी ताकत से पूरी दुनिया का टेंटुआ दबा रहा चीन

Rare Earth: तेल गया, अब चुंबक का दौर! कैसे धरती में दबी ताकत से पूरी दुनिया का टेंटुआ दबा रहा चीन

Rare Earth: पहले तेल की ताकत से दुनिया हिलती थी। सत्तर के दशक में अरब देशों ने दिखाया था कि तेल पर कब्जा मतलब पूरी दुनिया पर दबाव। लेकिन अब समय बदल गया है। तेल की जगह ले ली है रेयर अर्थ मिनरल्स ने, और इस खेल का बादशाह बन बैठा है चीन। ये रेयर अर्थ मिनरल्स कोई जादू नहीं, बल्कि 17 खास धातुओं का समूह हैं, जो आज की हाई-टेक दुनिया की रीढ़ हैं। स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक कारें और हवाई जहाज तक, हर चीज में इनका इस्तेमाल होता है।

रेयर अर्थ मिनरल्स को निकालना और साफ करना बेहद मुश्किल काम है। ये धातुएं जमीन में मिल तो जाती हैं, लेकिन इन्हें शुद्ध करने की प्रक्रिया महंगी और जटिल है। पहले इनका ज्यादा इस्तेमाल नहीं था, लेकिन जैसे ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों, स्मार्टफोन और विंड टर्बाइन का दौर आया, इनकी कीमत आसमान छूने लगी। इनसे बने सुपर मैगनेट आज हर आधुनिक टेक्नोलॉजी का आधार हैं। चाहे टेस्ला की इलेक्ट्रिक कार हो, आपके फोन का वाइब्रेशन सिस्टम हो या हवाई जहाज का इंजन, बिना इन मैगनेट के कुछ भी नहीं चल सकता।

चीन ने इस मौके को तीस-चालीस साल पहले भांप लिया था। उसने अपनी खदानों को खोला, रिफाइनिंग प्लांट लगाए और मैगनेट बनाने की फैक्ट्रियां शुरू कीं। आज दुनिया की 90 फीसदी रेयर अर्थ रिफाइनिंग चीन में होती है, और 70 फीसदी खनन भी वही करता है। इतना ही नहीं, चीन ने म्यांमार, अफ्रीका और पाकिस्तान के बलूचिस्तान तक की खदानों पर कब्जा कर लिया। यानी सिर्फ अपने देश में नहीं, बल्कि दुनिया भर की रेयर अर्थ सप्लाई पर उसका दबदबा है।

पहले अमेरिका जैसे देश रेयर अर्थ का खनन करते थे, लेकिन चीन ने इतने सस्ते दाम पर मैगनेट बेचने शुरू किए कि बाकी देशों ने अपनी खदानें बंद कर दीं। 2002 में अमेरिका ने अपना बड़ा रेयर अर्थ प्लांट बंद कर दिया, क्योंकि चीन से खरीदना सस्ता पड़ता था। लेकिन जब इलेक्ट्रिक गाड़ियों और हाई-टेक प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ी, तो चीन ने अपनी ताकत दिखाई। उसने रेयर अर्थ की सप्लाई पर कंट्रोल शुरू कर दिया, जिससे अमेरिका, यूरोप और बाकी देशों की इंडस्ट्री को बड़ा झटका लगा।

चीन के पास अनुमानित 4.4 करोड़ टन रेयर अर्थ मिनरल का भंडार है, जो दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है। दूसरे नंबर पर ब्राजील है, जिसके पास 2.1 करोड़ टन है। भारत के पास भी करीब 70 लाख टन का भंडार है, लेकिन हम अभी इस दिशा में शुरुआती कदम उठा रहे हैं। भारत ने नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन शुरू किया है, जिसका मकसद अपनी खदानों को विकसित करना और रिफाइनिंग की तकनीक हासिल करना है। लेकिन यह काम आसान नहीं है। इसमें कई साल लग सकते हैं, और तब तक दुनिया को चीन पर निर्भर रहना पड़ सकता है।

यह जंग अब सिर्फ खनन की नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और ताकत की है। रेयर अर्थ मिनरल्स के बिना इलेक्ट्रिक गाड़ियां, स्मार्टफोन, विंड टर्बाइन और डिफेंस सिस्टम बनाना नामुमकिन है। चीन ने इस ताकत को समझ लिया और इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। जैसे कभी तेल की सप्लाई रोककर देशों को दबाव में लिया जाता था, वही खेल अब रेयर अर्थ के साथ हो रहा है। भारत और बाकी देश अब इस जाल से निकलने की कोशिश में हैं, लेकिन यह रास्ता लंबा और मुश्किल है।

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