Sambhaji Maharaj: भारत का इतिहास वीरता और बलिदान की गाथाओं से भरा हुआ है। लेकिन जब भी मराठा साम्राज्य की बात होती है, एक नाम ऐसा है जो आज भी जोश और गर्व से भर देता है, छत्रपति संभाजी महाराज। उनका जीवन शौर्य, बलिदान और अडिग संकल्प का प्रतीक है।
मराठा साम्राज्य का ‘छावा’
संभाजी महाराज, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे, का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ था। शिवाजी महाराज बड़े प्यार से उन्हें ‘छावा’ कहकर बुलाते थे, जिसका अर्थ होता है ‘शेर का बच्चा’। बचपन में ही माता सईबाई का निधन हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनकी दादी, वीरमाता जीजाबाई ने की।
शिवाजी महाराज ने अपनी पूरी जिंदगी मुगलों और अन्य आक्रांताओं के खिलाफ संघर्ष में गुज़ारी थी, और उनके निधन के बाद संभाजी महाराज ने अपने पिता की विरासत को संभाला। मात्र 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने सिंहासन संभाला और अगले 10 वर्षों में उन्होंने 100 से अधिक युद्ध लड़े और जीते। उनकी सैन्य कुशलता इतनी प्रभावशाली थी कि मुगल सम्राट औरंगजेब उन्हें हराने के लिए वर्षों तक योजनाएं बनाता रहा।
जब औरंगजेब की पूरी ताकत भी संभाजी को न हरा सकी
संभाजी महाराज एक कुशल रणनीतिकार थे। उन्होंने अपने पिता की गुरिल्ला युद्धनीति को अपनाकर मुगलों को बार-बार पराजित किया। औरंगजेब ने 1682 में दक्षिण भारत पर कब्जा करने की योजना बनाई थी, लेकिन संभाजी महाराज के नेतृत्व में मराठाओं ने लगातार उसका विरोध किया।
1687 तक भी मुगल सेना मराठा क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर पाई थी। मगर जब मराठा साम्राज्य के कुछ गद्दारों ने दुश्मन से हाथ मिला लिया, तब 1689 में संभाजी महाराज को धोखे से कैद कर लिया गया। औरंगजेब ने उन पर भारी अत्याचार किए, लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा।
औरंगजेब की क्रूरता का चरम – संभाजी महाराज की शहादत
कैद के दौरान औरंगजेब ने संभाजी महाराज से इस्लाम कबूल करने के लिए कहा। लेकिन इस वीर मराठा ने अपना धर्म बदलने से इंकार कर दिया। इस इनकार से बौखलाए औरंगजेब ने पहले उनकी आंखें निकलवा दीं, फिर उनकी ज़ुबान कटवा दी। जब इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी, तो उनके शरीर के एक-एक अंग काट दिए गए। अंत में, 11 मार्च 1689 को उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
संभाजी की मौत ने मराठाओं को और ताकतवर बना दिया
संभाजी महाराज की शहादत के बाद औरंगजेब ने उनके सिर को मराठा क्षेत्र में घुमाकर डर फैलाने की कोशिश की। लेकिन हुआ इसका उल्टा। मराठाओं का खून खौल उठा। वे पहले से भी ज़्यादा एकजुट हो गए और अंततः मराठा साम्राज्य और भी मजबूत हुआ।
संभाजी महाराज का बलिदान न केवल मराठाओं के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। उनकी वीरता की गाथाएं आज भी महाराष्ट्र और पूरे देश में गर्व से गाई जाती हैं।
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