सयाजीराव गायकवाड़: सपने वो नहीं जो सोते वक्त देखे जाते हैं, सपने वो हैं जो समाज को नई दिशा दें। 19वीं सदी के भारत में, जब स्वच्छता की बातें राजा-महाराजाओं के लिए कोई मायने नहीं रखती थीं, एक दूरदर्शी शासक ने अपने प्रजा की भलाई के लिए ऐसा कदम उठाया, जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी अमिट छाप छोड़ी। बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय, जिन्होंने 1875 से 1939 तक 54 साल तक शासन किया, भारत के पहले ऐसे राजा थे, जिन्होंने हर पक्के घर में शौचालय अनिवार्य करने का साहसिक आदेश दिया। ये कहानी न केवल स्वच्छता की क्रांति की है, बल्कि एक राजा के अपने लोगों के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी की भावना की भी है। आइए, इस प्रेरक कहानी को जानें!
स्वच्छता का सपना: एक अनोखा आदेश
1890 के दशक में, जब भारत में खुले में शौच आम बात थी और घरों में शौचालय बनवाना अकल्पनीय माना जाता था, महाराजा सयाजीराव ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया। उन्होंने आदेश दिया कि बड़ौदा रियासत में हर नए पक्के घर में शौचालय बनाना अनिवार्य होगा। अगर कोई घर बिना शौचालय बनाए, तो उसका नक्शा पास नहीं होगा। ये नियम न केवल शहरों, बल्कि गांवों और कस्बों पर भी लागू किया गया। महाराजा का कहना था, “शौचालय के बिना घर अधूरा है।” उनकी ये सोच उस समय के भारत में न केवल अनोखी थी, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने वाली थी।
लोगों का विरोध: धार्मिक मान्यताओं का टकराव
महाराजा का ये आदेश सुनकर लोग भड़क उठे। उस समय घरों में शौचालय बनवाना अपवित्र माना जाता था। लोगों को लगता था कि इससे घर की पवित्रता नष्ट हो जाएगी। साथ ही, शौचालय की सफाई का सवाल भी था, क्योंकि ये काम उस समय निम्न वर्ग के लोगों से जुड़ा था। विरोध इतना तीव्र था कि कई लोगों ने पक्के मकान बनवाना ही बंद कर दिया और कच्चे घरों में रहने लगे। ये देखकर महाराजा को समझ आया कि केवल आदेश से काम नहीं चलेगा; लोगों की मानसिकता बदलनी होगी।
चतुराई और प्रोत्साहन: स्वच्छता की जीत
महाराजा सयाजीराव ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक नया और चतुर कदम उठाया। उन्होंने घोषणा की कि जो भी अपने पक्के घर में शौचालय बनवाएगा, उसे सरकार की ओर से आर्थिक सहायता (सब्सिडी) दी जाएगी। ये प्रोत्साहन लोगों के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ। अब लोग न केवल शौचालय बनवाने के लिए तैयार हुए, बल्कि पक्के मकान बनाने में भी उत्साह दिखाने लगे। इस तरह, महाराजा ने न केवल स्वच्छता की नींव रखी, बल्कि सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर लोगों की सोच को भी बदला।
उस दौर में स्वच्छता की स्थिति
1890 के दशक में भारत में स्वच्छता की स्थिति दयनीय थी। अधिकांश घरों में शौचालय नहीं थे, और खुले में शौच आम प्रथा थी। केवल राजघरानों, अमीर जमींदारों या अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों में ही शौचालय जैसी सुविधाएं थीं, लेकिन आम लोगों के लिए ये सपने जैसा था। कुछ घरों में गड्ढा-आधारित या मिट्टी के घड़ों वाले शौचालय बनाए जाते थे, जिनकी सफाई का जिम्मा निम्न वर्ग के सफाईकर्मियों पर होता था। महाराजा सयाजीराव का ये कदम इसलिए ऐतिहासिक था, क्योंकि उन्होंने स्वच्छता को आम लोगों तक पहुंचाया।
महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ को “भारत में आधुनिक स्वच्छता आंदोलन का अग्रदूत” कहा जाता है। उनकी दूरदर्शिता ने न केवल बड़ौदा को स्वच्छ और स्वस्थ बनाया, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम की। उनकी ये कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची प्रगति तब होती है, जब हम रूढ़ियों को चुनौती देते हैं और समाज की भलाई के लिए साहसिक कदम उठाते हैं। आज जब हम स्वच्छ भारत मिशन की बात करते हैं, तो हमें महाराजा सयाजीराव जैसे नायकों को याद करना चाहिए, जिन्होंने सदी पहले ही स्वच्छता का सपना देख लिया था।
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