Sikh Religion Last Rites: भारत विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों का संगम है, और हर धर्म की अपनी खास परंपराएं हैं। इनमें सिख और हिंदू धर्म के अंतिम संस्कार के तरीके भी अलग-अलग हैं। यह अंतर उनकी धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों में झलकता है। हाल ही में, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर यह चर्चा शुरू हुई कि सिख धर्म में यह प्रक्रिया हिंदू धर्म से कितनी अलग है। आइए सिख धर्म में अंतिम संस्कार (Sikh Religion Last Rites) की परंपराओं को समझें और जानें कि ये कैसे हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों से अलग हैं।
सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया
सिख धर्म में अंतिम संस्कार को “अंतिम अरदास” या “अंतिम सेवा” कहा जाता है। यह पूरी प्रक्रिया आध्यात्मिक होती है और इसका मुख्य उद्देश्य मृतक की आत्मा की शांति और उसे परमात्मा से जोड़ना होता है। जब किसी का निधन होता है, तो उसके पार्थिव शरीर को शमशान घाट ले जाने से पहले स्नान कराया जाता है। इस दौरान सिख धर्म के पाँच प्रतीक चिह्नों—कंघा, कटार, कड़ा, कृपाल और केश—का विशेष ध्यान रखा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ये प्रतीक मृतक की धार्मिक पहचान को बनाए रखते हैं।
शव को तैयार करने के बाद, परिवार और करीबी लोग “वाहेगुरु” का जाप करते हुए शवयात्रा में शामिल होते हैं। शमशान घाट पर चिता सजाई जाती है और बेटा, बेटी या कोई करीबी रिश्तेदार चिता को मुखाग्नि देता है।
महिलाओं की भागीदारी
सिख धर्म की सबसे खास बात यह है कि महिलाएं भी अंतिम संस्कार में पूरी तरह से भाग ले सकती हैं। जहां हिंदू धर्म में अक्सर महिलाओं को शमशान घाट जाने से रोका जाता है, वहीं सिख धर्म में यह परंपरा नहीं है। यह सिख धर्म की समानता और समरसता की भावना को दर्शाता है।
हिंदू धर्म से मुख्य अंतर
हिंदू और सिख धर्म दोनों में शव को जलाने की परंपरा है, लेकिन दोनों धर्मों की प्रक्रिया और उद्देश्य में बड़ा फर्क है। हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के बाद पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्मकांड किए जाते हैं, ताकि मृतक की आत्मा को मोक्ष मिल सके। वहीं, सिख धर्म की प्रक्रिया सरल और अधिक आध्यात्मिक होती है।
सिख धर्म में शव के दाह संस्कार के बाद, परिवार 10 दिनों तक “गुरु ग्रंथ साहिब” का पाठ करता है। इस दौरान अरदास (प्रार्थना) और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। यह मृतक की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।
गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ और अरदास
अंतिम संस्कार के बाद “गुरु ग्रंथ साहिब” का पाठ शुरू होता है, जिसे “सहज पाठ” कहते हैं। यह पाठ मृतक की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। भजन-कीर्तन और अरदास में परिवार और समुदाय के लोग भाग लेते हैं।
यह प्रक्रिया 10 दिनों तक चलती है। अंतिम दिन एक विशेष अरदास के बाद मृतक के लिए की गई प्रार्थनाओं का समापन होता है। इस दौरान परिवार और समुदाय के लोग इकट्ठा होकर मृतक को श्रद्धांजलि देते हैं और गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
समाज को संदेश
सिख धर्म के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया न केवल आत्मा की शांति के लिए की जाती है, बल्कि यह समाज के लिए एक संदेश भी है। यह प्रक्रिया समानता, सहानुभूति और समुदाय की एकता को बढ़ावा देती है। सिख धर्म सिखाता है कि जीवन अस्थायी है, और हर व्यक्ति का अंतिम उद्देश्य “वाहेगुरु” से जुड़ना है।
सिख धर्म का अंतिम संस्कार (Sikh Religion Last Rites) हिंदू धर्म से इसलिए अलग है क्योंकि यह ज्यादा सरल और आध्यात्मिक होता है। इसमें दिखावे या अनावश्यक कर्मकांडों से बचा जाता है और आत्मा की शांति व परमात्मा से जुड़ाव पर जोर दिया जाता है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार में भी इन रीति-रिवाजों का पालन होगा। यह उनकी सिख परंपरा और धर्म के प्रति निष्ठा को दर्शाएगा। सिख धर्म सिखाता है कि अंतिम विदाई केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि आत्मा को वाहेगुरु से जोड़ने की एक आध्यात्मिक यात्रा है।































