मुंबई

Slum Rehab HC Upholds Policy: हाई कोर्ट ने दी खुली जगहों पर मंजूरी, झुग्गी पुनर्वास में 35% स्थान सार्वजनिक पार्क

Slum Rehab HC Upholds Policy: हाई कोर्ट ने दी खुली जगहों पर मंजूरी, झुग्गी पुनर्वास में 35% स्थान सार्वजनिक पार्क

Slum Rehab HC Upholds Policy: मुंबई, एक ऐसा शहर जो अपने गगनचुंबी इमारतों और तंग गलियों के लिए जाना जाता है, अब एक नई बहस का केंद्र बन गया है। यह बहस है शहर के खुले स्थानों और झुग्गी पुनर्वास योजनाओं (Slum Rehabilitation Schemes) के बीच संतुलन की। हाल ही में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें 2022 की उस सरकारी नीति को सही ठहराया गया, जो शहर के 500 वर्ग मीटर से अधिक के गैर-निर्माण योग्य खुले स्थानों को झुग्गी पुनर्वास के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति देती है। लेकिन इस फैसले में एक शर्त भी जोड़ी गई है कि ऐसे स्थानों का कम से कम 35% हिस्सा सार्वजनिक पार्क (Public Park) के रूप में विकसित किया जाए। यह फैसला मुंबई के लिए एक नई दिशा की ओर इशारा करता है, जहाँ समावेशी विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को महत्व दिया जा रहा है।

इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब गैर-सरकारी संगठन अलायंस फॉर गवर्नेंस एंड रिन्यूअल (नागर) और अन्य याचिकाकर्ताओं ने 2022 की उस नीति को चुनौती दी, जो डेवलपमेंट कंट्रोल एंड प्रमोशन रेगुलेशन्स (DCPR) 2034 के तहत लागू की गई थी। इस नीति के अनुसार, वे खुले स्थान, जो पहले पार्क, बगीचों या खेल के मैदानों के लिए आरक्षित थे, अब झुग्गी पुनर्वास योजनाओं (Slum Rehabilitation Schemes) के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह नीति शहर के जरूरी हरे-भरे स्थानों को कम कर रही है और निजी निर्माण को बढ़ावा दे रही है। लेकिन कोर्ट ने इस नीति को सही ठहराते हुए कहा कि यह शहर में असमानता को कम करने और झुग्गीवासियों को बेहतर आवास देने की दिशा में एक कदम है।

हाई कोर्ट के जजों, अमित बोरकर और सोमशेखर सुंदरेशन की पीठ ने अपने 191 पन्नों के फैसले में स्पष्ट किया कि मुंबई जैसे शहर में, जहाँ स्थान और सुविधाओं का वितरण असमान है, झुग्गीवासियों को शहर के भीतर ही औपचारिक आवास देना समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है। कोर्ट ने कहा कि यह नीति समावेशी योजना (Inclusive Planning) को बढ़ावा देती है और शहरी असंतुलन को ठीक करने में मदद करती है। यह सुनिश्चित करता है कि अधिकार और सुविधाएँ केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित न रहें, बल्कि समाज के हाशिए पर रहने वालों तक भी पहुँचें।

फैसले में कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जिन खुले स्थानों का उपयोग पुनर्वास योजनाओं के लिए किया जाएगा, उनमें से कम से कम 35% हिस्सा सार्वजनिक पार्क (Public Park) के रूप में विकसित करना होगा। यह पार्क न केवल उपयोगी और कार्यात्मक होना चाहिए, बल्कि यह आम लोगों के लिए खुला भी होना चाहिए। कोर्ट ने साफ कहा कि इस स्थान को किसी निजी समूह, निवासी संघ या डेवलपर के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, परियोजना के पूरा होने के बाद 90 दिनों के भीतर इस 35% खुले स्थान को नगर निगम को सौंपना होगा, ताकि उसका प्रबंधन किया जा सके। अगर नगर निगम और आवासीय सोसाइटी के बीच संयुक्त प्रबंधन की अनुमति दी जाती है, तब भी यह स्थान स्थानीय लोगों के लिए खुला रहेगा और इसे बंद नहीं किया जा सकेगा।

कोर्ट ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को यह भी आदेश दिया कि वह चार महीने के भीतर सभी आरक्षित खुले स्थानों का जीआईएस-आधारित मैपिंग और जियो-टैगिंग पूरा करे और इसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे। यह कदम पारदर्शिता को बढ़ावा देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि खुले स्थानों का उपयोग सही तरीके से हो। इसके अलावा, कोर्ट ने राज्य सरकार और झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) को एक समर्पित समिति बनाने या एक वरिष्ठ अधिकारी को नियुक्त करने का निर्देश दिया, जो इस नीति के जमीनी कार्यान्वयन की निगरानी करेगा। इस समिति को हर तीन महीने में अपनी रिपोर्ट SRA और शहरी विकास विभाग को सौंपनी होगी, जिसे उनकी वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि यह नीति 1992 की एक अधिसूचना का विस्तार है, जिसमें खुले स्थानों के लिए न्यूनतम आकार 1000 वर्ग मीटर था। 2022 की नीति ने इस सीमा को घटाकर 500 वर्ग मीटर कर दिया, जिससे छोटे-छोटे खुले स्थानों पर भी निर्माण संभव हो गया। उनका कहना था कि इससे मुंबई के पहले से ही कम हो रहे हरे-भरे स्थानों पर और दबाव पड़ेगा। लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह नीति शहरी पर्यावरण को बेहतर बनाने और कमजोर वर्गों को आश्रय देने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि अगर इस नीति का उल्लंघन होता है, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए और 35% से अधिक खाली स्थान रखने वाली परियोजनाओं को प्रोत्साहित किया जाए।

कोर्ट ने बीएमसी को यह भी निर्देश दिया कि वह वार्ड-वार कार्य योजनाएँ तैयार करे, जिसमें सभी आरक्षित खुले स्थानों की सूची हो और हर तीन महीने में अतिक्रमण की जाँच के लिए निरीक्षण किए जाएँ। इसके अलावा, राज्य सरकार को इस नीति की व्यापक समीक्षा दो साल के भीतर करने का आदेश दिया गया। कोर्ट ने साफ किया कि इस फैसले को शहर के खुले स्थानों को कम करने की छूट के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह फैसला मुंबई के लिए एक नई दिशा दिखाता है, जहाँ विकास और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

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