Social Media in Nagpur Violence: नागपुर शहर में सोमवार को हुई हिंसा ने सबको चौंका दिया। सड़कों पर अफरा-तफरी, पत्थरबाजी और आगजनी ने पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया। लेकिन इस हिंसा के पीछे की कहानी सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं थी। पुलिस की जांच में एक हैरान करने वाला सच सामने आया है। इस बार आग भड़काने में सोशल मीडिया का बड़ा हाथ था। खासकर एक ऐसा फेसबुक अकाउंट, जो बांग्लादेश से चलाया जा रहा था। यह खबर सुनकर हर कोई सोच में पड़ गया कि आखिर यह सब कैसे हुआ।
नागपुर पुलिस ने हिंसा के बाद अपनी कार्रवाई तेज कर दी। उनका ध्यान खास तौर पर सोशल मीडिया पर गया, जहां से अफवाहें और भड़काऊ बातें फैल रही थीं। साइबर सेल ने जब छानबीन शुरू की, तो पता चला कि कुल 144 भड़काऊ पोस्ट (144 Provocative Posts) फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर फैल रही थीं। इनमें से कुछ पोस्ट में झूठी खबरें थीं, जैसे कि हिंसा में घायल दो लोगों की अस्पताल में मौत हो गई। पुलिस ने साफ कर दिया कि यह पूरी तरह से गलत है। लेकिन इन अफवाहों ने लोगों के गुस्से को और बढ़ा दिया।
सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब साइबर सेल ने एक फेसबुक अकाउंट को ट्रेस किया। यह अकाउंट बांग्लादेश से चल रहा था और इसमें लिखा था, “सोमवार की हिंसा तो बस एक ट्रेलर थी, आगे बड़ी हिंसा होगी।” इस मैसेज ने पुलिस के कान खड़े कर दिए। सुरक्षा एजेंसियों ने पुष्टि की कि यह अकाउंट वाकई बांग्लादेश से ऑपरेट हो रहा था। इसके बाद नागपुर पुलिस ने फेसबुक से इस अकाउंट को ब्लॉक करने की मांग की। यह खुलासा बताता है कि कैसे नागपुर हिंसा में सोशल मीडिया (Social Media in Nagpur Violence) ने आग में घी डालने का काम किया।
इस हिंसा की शुरुआत तब हुई जब कुछ लोगों ने औरंगजेब की मूर्ति पर हरे रंग का कपड़ा डाला। इसके बाद अफवाह फैली कि उस कपड़े पर धार्मिक बातें लिखी थीं, जिसे जलाया गया। इस बात ने दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ा दिया। लेकिन जांच में पता चला कि यह सब अफवाह थी। मौलानाओं और विशेषज्ञों की मदद से पुलिस ने उस कपड़े की जांच की और पाया कि उस पर ऐसा कुछ नहीं लिखा था। फिर भी, सोशल मीडिया पर फैली गलत खबरों ने हालात को बिगाड़ दिया।
पुलिस ने अब तक 90 लोगों को गिरफ्तार किया है। 200 से ज्यादा संदिग्धों की पहचान CCTV फुटेज से हो चुकी है और करीब 1,000 लोगों को पकड़ने की कोशिश जारी है। इसके लिए 18 स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीमें बनाई गई हैं। इतना ही नहीं, नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) भी इस मामले में शामिल हो गई है। वे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इस हिंसा के पीछे कोई विदेशी साजिश थी। यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या बांग्लादेश से चलाया गया अकाउंट अकेला था, या इसके पीछे कोई बड़ा नेटवर्क काम कर रहा था।
सोशल मीडिया की ताकत को समझना आज की पीढ़ी के लिए बहुत जरूरी है। एक छोटी सी पोस्ट भी कितना बड़ा तूफान खड़ा कर सकती है, यह नागपुर की घटना से साफ हो गया। साइबर सेल ने उन 144 पोस्ट और वीडियो को चिह्नित किया, जो नफरत फैलाने और तनाव बढ़ाने के लिए बनाए गए थे। कुछ में तो वीडियो को एडिट करके गलत कहानियां जोड़ी गई थीं। पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे ऐसी किसी भी खबर पर भरोसा न करें और न ही उसे आगे बढ़ाएं।
इस घटना ने यह भी दिखाया कि कैसे तकनीक का गलत इस्तेमाल समाज को तोड़ सकता है। बांग्लादेश से आए उस मैसेज ने न सिर्फ हिंसा को हवा दी, बल्कि लोगों के बीच डर भी पैदा किया। नागपुर पुलिस अब हर उस शख्स को ढूंढ रही है, जो इस अफवाह के पीछे था। साथ ही, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से भी सख्ती से निपटने की तैयारी है। यह सब देखकर लगता है कि आने वाले दिनों में इस मामले में और भी बड़े खुलासे हो सकते हैं।
जरा सोचिए, एक शहर जो अपनी शांति के लिए जाना जाता था, वहां अचानक इतना बवाल कैसे हो गया। यह सब एक गलत खबर और सोशल मीडिया की चिंगारी से शुरू हुआ। आज के दौर में, जहां हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन है, सच और झूठ का फर्क समझना कितना जरूरी हो गया है। नागपुर की यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम जो देखते हैं, उसे कितना सच मानें।