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मूर्ति विवाद: मल्लिकार्जुन खड़गे का आरोप, क्या लोकतंत्र की भावना का हो रहा है उल्लंघन?

मूर्ति विवाद: मल्लिकार्जुन खड़गे का आरोप, क्या लोकतंत्र की भावना का हो रहा है उल्लंघन?
मूर्ति विवाद: हाल ही में, संसद परिसर में महान नेताओं की मूर्तियों के स्थानांतरण को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस कदम पर गंभीर आपत्ति जताई है और इसे लोकतंत्र की भावना के खिलाफ बताया है। आइए इस मुद्दे पर गौर करते हैं।
मूर्तियों का स्थानांतरण 
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में संसद परिसर में ‘प्रेरणा स्थल’ का उद्घाटन किया। यहां महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर, लाला लाजपत राय, बिरसा मुंडा, महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी जैसे महान नेताओं की प्रतिमाएं एक साथ स्थापित की गई हैं। लेकिन इसके लिए गांधी जी और अंबेडकर जी की प्रतिमाओं को उनके पुराने स्थान से हटाना पड़ा।
कांग्रेस की आपत्ति
खड़गे ने इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका मानना है कि गांधी जी और अंबेडकर जी की प्रतिमाओं का पिछला स्थान बहुत महत्वपूर्ण था। गांधी जी की प्रतिमा विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बिंदु थी, जबकि अंबेडकर जी की प्रतिमा सांसदों को संविधान की भावना याद दिलाती थी।
खड़गे ने स्वयं को भी छात्र आंदोलन का हिस्सा बताया, जिसमें अंबेडकर जी की प्रतिमा स्थापित कराने की मांग की गई थी। उनका कहना है कि मूर्तियों के इस स्थानांतरण का फैसला बिना उचित विचार-विमर्श के लिया गया है।
परंपरा का उल्लंघन?
खड़गे के मुताबिक, संसद परिसर में मूर्तियां स्थापित करने के लिए एक विशेष समिति गठित की गई थी, जिसमें दोनों सदनों के प्रतिनिधि शामिल होते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस समिति का पुनर्गठन नहीं हुआ है। ऐसे में उन्होंने इस कदम को संसद की परंपराओं का उल्लंघन करार दिया है।
खड़गे का मानना है कि राष्ट्रीय महत्व के ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय विचार-विमर्श और सर्वसम्मति से लिए जाने चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ होगा।
विवाद गहरा सकता है
इस विवाद को लेकर अब दोनों पक्ष कड़े रुख अपना सकते हैं। एक ओर सरकार अपने निर्णय पर अड़ी रह सकती है, तो दूसरी ओर विपक्ष भी इसका विरोध जारी रख सकता है।
हालांकि, इस मामले में दोनों पक्षों को संयम बरतना होगा। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सभी दलों को आपसी सहमति से आगे बढ़ना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह विवाद बेवजह बढ़ेगा और संसद की गरिमा भी प्रभावित होगी।
अंत में, संसद लोकतंत्र का प्रतीक है। लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर करना हर किसी का कर्तव्य है। लोकतंत्र में विभिन्न विचारों को सम्मान देना जरूरी है। आशा है कि इस विवाद पर भी दोनों पक्ष तर्कसंगत निष्कर्ष पर पहुंचेंगे।

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