भारत में महाकुंभ की परंपरा धार्मिक आस्था और अध्यात्मिकता का सबसे बड़ा संगम माना जाता है। यहां नागा साधुओं और अन्य तपस्वियों के साथ तंगतोड़ा साधु (Tangtoda Sadhu) विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। तंगतोड़ा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है और इसके लिए लिए जाने वाला इंटरव्यू संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा के इंटरव्यू से भी अधिक चुनौतीपूर्ण माना जाता है। ये अखाड़े की परंपरा और त्याग के सर्वोच्च आदर्शों का प्रतीक है।
कौन होते हैं तंगतोड़ा साधु?
महाकुंभ के अखाड़ों में विशेष रूप से श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन में तंगतोड़ा साधुओं की परंपरा निभाई जाती है। परिवार और सांसारिक सुखों का त्याग कर संन्यास धारण करने वाले त्यागियों को ही इस प्रक्रिया के लिए चुना जाता है। इन साधुओं को अखाड़े की कोर टीम का हिस्सा बनाया जाता है। इनका संन्यास लेना और अखाड़े के रिवाजों का पालन करना जीवनभर का संकल्प होता है।
तंगतोड़ा साधु बनने की कठिन परीक्षा
तंगतोड़ा साधु बनने की प्रक्रिया किसी सामान्य चयन से कहीं अधिक कठिन है। ये साक्षात्कार UPSC के इंटरव्यू से भी कठिन (Harder than UPSC interview) माना जाता है क्योंकि इसमें जो सवाल पूछे जाते हैं, उनका उत्तर किसी भी किताब में नहीं मिलता। ये ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा से मिलता है और केवल लंबे समय तक सेवा करने वाले योग्य चेले ही इन प्रश्नों के सही उत्तर दे सकते हैं।
रमता पंच: चयन समिति
तंगतोड़ा साधुओं के चयन के लिए रमता पंच, जो अखाड़े की चयन समिति होती है, उम्मीदवारों का गहन परीक्षण करती है। ये इंटरव्यू कई दिनों तक चलता है और उम्मीदवारों को कठिन मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें खुले आसमान के नीचे अलाव के सामने 24 घंटे धूना तापना शामिल होता है।
गोपनीय प्रश्नों की परीक्षा
रमता पंच द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न सेवा, टकसाल (साधुओं की संपत्ति), गुरु मंत्र, चिमटा, और धुंधा से जुड़े होते हैं। ये प्रश्न केवल संन्यास की परंपराओं को गहराई से समझने वाले साधु ही समझ सकते हैं। ये सुनिश्चित करने के बाद ही कि चेला योग्य है, उसे तंगतोड़ा की उपाधि दी जाती है।
अखाड़े की परंपरा का महत्व
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के श्रीमहंत महेश्वरदास बताते हैं कि परंपराएं गहरे अनुशासन और तपस्या पर आधारित होती हैं। तंगतोड़ा बनने के लिए अखाड़े की परंपराओं को आत्मसात करना पड़ता है और इसके लिए अनुशासन, त्याग, और गुरु-शिष्य संबंधों का पालन अनिवार्य होता है।
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