Truth of India Working Poor: भारत में बहुत से लोग मेहनत-मजदूरी करते हैं, सुबह-शाम दफ्तर जाते हैं, लेकिन महीने के आखिर में उनकी जेब खाली रहती है। ऐसे लोगों को नौकरीपेशा गरीब कहा जाता है। 2019 में भारत सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी EWS कैटेगरी बनाई, ताकि उन लोगों को मदद मिले जो जातिगत आरक्षण जैसे SC, ST या OBC में नहीं आते, लेकिन उनकी आमदनी कम है। सरकार ने तय किया कि जिन परिवारों की सालाना आय 8 लाख रुपये से कम है, वे EWS कैटेगरी में आ सकते हैं। इसके अलावा, कुछ और शर्तें भी हैं, जैसे उनके पास 5 एकड़ से ज्यादा खेती की जमीन या 1000 स्क्वायर फुट से बड़ा फ्लैट नहीं होना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि भारत में कितने लोग इस कैटेगरी में आते हैं और इनकम टैक्स के आंकड़े क्या कहते हैं? आइए, आसान भाषा में समझते हैं।
EWS कैटेगरी का मतलब उन लोगों से है, जो जनरल कैटेगरी में आते हैं और उनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम है। यानी अगर कोई परिवार महीने में 65-70 हजार रुपये तक कमाता है, तो वह EWS में शामिल हो सकता है। लेकिन हकीकत यह है कि भारत में ज्यादातर लोग इससे भी बहुत कम कमाते हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के 2019 के एक सर्वे के मुताबिक, देश के सिर्फ 2.3% परिवार ही ऐसे हैं, जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से ज्यादा है। इसका मतलब है कि 97.7% परिवारों की कमाई 8 लाख रुपये या उससे कम है। यह आंकड़ा सभी जातियों को मिलाकर है, यानी इसमें जनरल, SC, ST और OBC सभी शामिल हैं।
इनकम टैक्स के आंकड़ों को देखें, तो और भी हैरान करने वाली बात सामने आती है। ज्यादातर टैक्सपेयर्स की सालाना आय 5 से 10 लाख रुपये के बीच है। जिन लोगों की कमाई 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है, उनकी संख्या पूरे देश में बहुत कम है। इससे साफ है कि भारत में अमीर लोग गिनती के हैं, जबकि ज्यादातर लोग मिडिल क्लास या उससे नीचे के हैं। यही वजह है कि EWS कैटेगरी में बड़ी संख्या में लोग आते हैं। नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के आधार पर अनुमान है कि जनरल कैटेगरी की 18.2% आबादी, यानी करीब 3.5 करोड़ लोग, EWS कैटेगरी में फिट बैठते हैं।
लेकिन इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद, EWS के लिए 10% आरक्षण सबको नहीं मिल पाता। इसका कारण है कि इस कैटेगरी में आने वाले लोगों की संख्या आरक्षण की सीमा से कहीं ज्यादा है। सरकार ने अभी तक EWS के लिए कोई सटीक जनगणना या सर्वे नहीं किया है, लेकिन नीति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि यह एक बड़ा वर्ग है। इन लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10% आरक्षण का फायदा मिलता है, जो 2019 में 103वें संविधान संशोधन के जरिए लागू किया गया था।
नौकरीपेशा गरीब की हकीकत भी कम कड़वी नहीं है। भारत में करोड़ों लोग सुबह-शाम काम पर जाते हैं, सरकारी या प्राइवेट नौकरी करते हैं, लेकिन उनकी सैलरी इतनी कम होती है कि किराया, बच्चों की पढ़ाई, दवाइयां और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते-करते पैसे खत्म हो जाते हैं। यही कारण है कि मिडिल क्लास को भी कई बार नौकरीपेशा गरीब कहा जाता है। इनकम टैक्स के आंकड़े और सर्वे इस बात की तस्दीक करते हैं कि भारत में ज्यादातर लोग मेहनत तो खूब करते हैं, लेकिन उनकी कमाई उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं होती।
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