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मिस्र के पिरामिड का रहस्य सुलझा! नदी ने बनाया था मुमकिन

मिस्र के पिरामिड
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मिस्र के पिरामिड कैसे बने, ये सवाल सदियों से लोगों को उलझाता रहा है। लेकिन अब एक नई स्टडी में इस रहस्य से पर्दा उठ गया है।

हजारों साल पहले बिना किसी मशीन के इतने भारी पत्थरों को कैसे ढोया गया, ये सोचकर ही दिमाग चकरा जाता है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने नील नदी की एक पुरानी शाखा का पता लगाया है, जिससे ये काम आसान हो गया होगा।

नील नदी ने खोला राज
मिस्र के ज्यादातर पिरामिड गीज़ा और लिश्‍ट गांव के बीच रेगिस्तान में बने हैं।
पहले ये जगह नील नदी के किनारे हुआ करती थी, लेकिन बाद में रेत में दब गई।
सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों और वैज्ञानिक जांच से इस पुरानी नदी का पता चला है।

नदी से मिली मदद
इस नदी का नाम अहरामत था और ये करीब 64 किलोमीटर लंबी थी। इससे पिरामिड बनाने वाली जगह तक पत्थर और दूसरा सामान आसानी से पहुंचाया जा सकता था। पिरामिडों के पास बने रास्ते भी इस नदी से जुड़े हुए थे, जिससे ये काम और आसान हो गया होगा।

फिर भी कमाल का काम
पत्थर लाना तो एक बात थी, उन्हें सही जगह पर लगाना और भी मुश्किल काम था। इसके लिए मजदूरों ने रैंप, लकड़ी के तख्ते, रस्सियां और औजारों का इस्तेमाल किया होगा। पिरामिड बनाने के लिए गणित और इंजीनियरिंग की अच्छी समझ भी जरूरी थी।

मिस्र का गौरव
पिरामिड मिस्र की शान हैं और दुनिया के अजूबों में से एक हैं। इनके बारे में जितना पता चलता है, उतनी ही हैरानी होती है। इस नई खोज से हमें मिस्र के इतिहास के बारे में और भी जानकारी मिली है। इस खोज से साफ है कि पुराने जमाने के लोग भी कितने होशियार थे और उन्होंने कैसे प्रकृति का इस्तेमाल करके इतने बड़े-बड़े काम किए। ये हमें आज के समय में भी प्रेरणा देती है।

पिरामिड बनाने वाले मजदूर बड़े-बड़े समूहों में रहते थे और उनके खाने-पीने का भी अच्छा इंतजाम था। इससे पता चलता है कि ये काम बहुत ही सुनियोजित तरीके से किया गया था।

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