अटल बांस समृद्धि योजना: महाराष्ट्र सरकार ने अपने 2024-25 के बजट में अटल बांस समृद्धि योजना की घोषणा की है। इस योजना का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की बढ़ती समस्याओं का सामना करना है। योजना के अंतर्गत, पूरे राज्य में 10,000 हेक्टेयर भूमि पर बांस के पौधे लगाए जाएंगे। इस पहल के माध्यम से महाराष्ट्र में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
योजना का उद्देश्य:
अटल बांस समृद्धि योजना का उद्देश्य बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से निपटना है। इसके तहत राज्य भर में 10,000 हेक्टेयर भूमि पर बांस लगाए जाएंगे। आदिवासी नंदुरबार जिले में 1.20 हेक्टेयर भूमि पर बांस का रोपण होगा। किसानों को बांस के रोपण और देखभाल के लिए तीन साल में 7 लाख रुपये दिए जाएंगे। योजना का 90% हिस्सा केंद्र सरकार और 10% राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा। आदिवासी क्षेत्रों में यह पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्त पोषित होगा।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में बांस की भूमिका:
पाशा पटेल ने कहा, “तापमान वृद्धि का युग अब समाप्त हो चुका है और जलने का युग शुरू हो गया है।” इस खतरे से निपटने के लिए डीजल, पेट्रोल और कोयले का उपयोग कम करना होगा और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना होगा। बांस का पौधारोपण एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद है।
बांस क्यों?
बांस पर्यावरण और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से लाभदायक है। यह तीन साल में पूरी तरह से विकसित हो जाता है, जबकि अन्य पेड़ों को पेड़ बनने में 10-15 साल लगते हैं। बांस सालाना 280 किलोग्राम ऑक्सीजन उत्पन्न करता है और 320 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है। यह तापमान में भी दो प्रतिशत की कमी लाता है।
किसानों के लिए आर्थिक लाभ:
बांस की खेती पारंपरिक खेती की जगह नहीं लेगी। किसान अपनी पारंपरिक खेती जारी रख सकते हैं और साथ ही खेत की बाड़ या नदी, तालाब के किनारे बांस की खेती कर सकते हैं। यह उनकी आय में इजाफा करेगा।
औद्योगिक नीति और रोजगार:
महाराष्ट्र जल्द ही एक औद्योगिक नीति लेकर आ रहा है, जिसमें बांस की खेती और उत्पादन को शामिल किया जाएगा। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। बांस का उपयोग सब्जियां उगाने, अचार, जैम बनाने, इथेनॉल उत्पादन, कपड़ा, कटलरी, और फर्नीचर बनाने में किया जा सकता है।
पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ:
बांस का पौधारोपण कोयला और लोहा जैसे संसाधनों का उपयोग कम करने का एक अच्छा विकल्प है। यह उच्च कैलोरी मान वाले बायोमास का विकल्प हो सकता है। सरकार 300 बांस आधारित रिफाइनरियों की योजना बना रही है, जिनमें से एक असम में पहले ही स्थापित हो चुकी है।
पानी की आवश्यकता:
बांस की खेती के लिए कम पानी की जरूरत होती है। एक हेक्टेयर में बांस की खेती के लिए सिर्फ 20 लीटर पानी की जरूरत होती है, जबकि गन्ने की खेती के लिए दो करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होती है। बांस की प्रोसेसिंग से गन्ने की तुलना में अधिक इथेनॉल बनता है।
सूखाग्रस्त क्षेत्रों में लाभ:
मराठवाड़ा का सूखाग्रस्त जिला बांस की खेती से सबसे अधिक लाभान्वित होगा। इस क्षेत्र में बांस की खेती से रोजगार और आजीविका के नए अवसर पैदा होंगे।
अटल बांस समृद्धि योजना जलवायु परिवर्तन से निपटने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बांस की खेती न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी लाभदायक है। महाराष्ट्र सरकार इस परियोजना के प्रति प्रतिबद्ध है और इसे सफल बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
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