महाराष्ट्र

Thackeray brothers Rift: राज-उद्धव के बीच किसने बनाई दरार? नीतेश राणे के बड़े खुलासे से मचा हंगामा, बोले- ये सभी पुराने शिवसैनिक जानते है

Thackeray brothers Rift: राज-उद्धव के बीच किसने बनाई दरार? नीतेश राणे के बड़े खुलासे से मचा हंगामा, बोले- ये सभी पुराने शिवसैनिक जानते है

Thackeray brothers Rift: महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से चर्चा का केंद्र रही है। यहाँ की सियासत में नाटकीय मोड़, गठबंधन और टकराव कोई नई बात नहीं। हाल ही में, शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नेता राज ठाकरे के बीच गठबंधन की खबरों ने एक बार फिर सुर्खियाँ बटोरीं। लेकिन इस गठबंधन की चर्चा के बीच, बीजेपी नेता नितेश राणे के एक बयान ने सियासी हलकों में तूफान ला दिया। उन्होंने दावा किया कि उद्धव और राज के बीच की दरार की वजह कोई और नहीं, बल्कि उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे और उनके परिवार के कुछ लोग हैं। इस खुलासे ने न केवल ठाकरे बंधुओं के रिश्तों पर सवाल उठाए, बल्कि महाराष्ट्र की सियासत में एक नया अध्याय भी जोड़ा। आइए, इस कहानी को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि महाराष्ट्र की सियासत (Maharashtra Politics) में यह नया मोड़ क्या संदेश देता है।

ठाकरे बंधुओं का इतिहास और सियासी रिश्ता

शिवसेना, जिसकी नींव बालासाहेब ठाकरे ने रखी, महाराष्ट्र की सियासत में एक मज़बूत पहचान रखती है। बालासाहेब के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे इस विरासत को आगे ले जाने की कोशिश में जुटे। लेकिन दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना छोड़कर मनसे का गठन किया, जिसके बाद दोनों के बीच सियासी और निजी दूरी बढ़ती चली गई। कई मौकों पर दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ तीखे बयान दिए, लेकिन महाराष्ट्र के हितों की बात आने पर उनके सुर कभी-कभी एक जैसे भी दिखे। हाल ही में, राज ठाकरे ने उद्धव के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा, जिसे उद्धव ने एक शर्त के साथ स्वीकार करने की बात कही। इस प्रस्ताव ने सबको चौंका दिया, क्योंकि दोनों के बीच की कड़वाहट किसी से छिपी नहीं थी। लेकिन नितेश राणे का बयान इस गठबंधन की चर्चा को एक नया रंग दे गया।

नितेश राणे ने एक मीडिया चैनल से बातचीत में कहा कि राज ठाकरे से उद्धव को कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि यह दिक्कत घर के भीतर से थी। उन्होंने बिना नाम लिए इशारा किया कि रश्मि ठाकरे और उनके करीबी लोग राज ठाकरे के खिलाफ थे। यह बयान न केवल सनसनीखेज था, बल्कि इसने पुराने शिवसैनिकों की यादों को भी ताज़ा कर दिया। राणे के मुताबिक, यह बात शिवसेना के पुराने कार्यकर्ताओं को अच्छी तरह पता है। इस बयान ने सवाल उठाया कि क्या वाकई ठाकरे परिवार के भीतर की सियासत ने इन दो भाइयों को अलग किया? और अगर ऐसा है, तो इसका ठाकरे बंधुओं की दरार (Thackeray Brothers Rift) पर क्या असर पड़ेगा?

एमवीए सरकार और फैसलों का सच

नितेश राणे ने अपने बयान में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के दौर पर भी टिप्पणी की। उन्होंने दावा किया कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब उनके हर फैसले के पीछे रश्मि ठाकरे और उनके भाई का हाथ होता था। राणे का कहना था कि उद्धव के नाम पर फैसले भले ही लिए जाते थे, लेकिन असल नियंत्रण किसी और के पास था। यह बयान उस समय की सियासत को फिर से चर्चा में लाया, जब एमवीए सरकार में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) साथ थे। उस दौरान कई बार यह बात उठी थी कि उद्धव के फैसलों में उनके करीबी सलाहकारों की बड़ी भूमिका थी। राणे के इस खुलासे ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या एमवीए सरकार के पतन में भी इन आंतरिक समीकरणों की कोई भूमिका थी?

2019 से 2022 तक चली एमवीए सरकार ने कई बड़े फैसले लिए, जैसे मराठा आरक्षण पर जोर देना और कोविड-19 महामारी के दौरान राहत योजनाएँ शुरू करना। लेकिन सरकार की स्थिरता हमेशा सवालों के घेरे में रही। एकनाथ शिंदे के विद्रोह ने इस गठबंधन को तोड़ दिया, जिसके बाद महायुति सत्ता में आई। राणे का दावा है कि उद्धव के फैसलों में परिवार के हस्तक्षेप ने शायद पार्टी के भीतर असंतोष को बढ़ावा दिया, जिसका फायदा शिंदे जैसे नेताओं ने उठाया। यह बात महाराष्ट्र की सियासत में एक नए दृष्टिकोण को सामने लाती है, जहाँ पारिवारिक समीकरण और सियासी रणनीति आपस में टकराते हैं।

महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे बंधुओं का भविष्य

नितेश राणे ने यह भी कहा कि राज ठाकरे का स्वभाव बालासाहेब ठाकरे से काफी मिलता है। उनके इस बयान ने राज की सियासी छवि को फिर से चर्चा में ला दिया। राज ठाकरे अपनी तीखी बयानबाजी और क्षेत्रीय मुद्दों पर मुखर रुख के लिए जाने जाते हैं। दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को एक व्यापक दृष्टिकोण देने की कोशिश की है, जिसमें राष्ट्रीय मुद्दों पर भी उनकी पार्टी सक्रिय रही है। दोनों नेताओं की विचारधारा और कार्यशैली अलग होने के बावजूद, महाराष्ट्र के हित उनके लिए हमेशा प्राथमिकता रहे हैं।

राणे ने यह भी दावा किया कि भले ही राज और उद्धव साथ आ जाएँ, इसका महाराष्ट्र की सियासत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उनके मुताबिक, 2024 के विधानसभा चुनावों में महायुति को मिला भारी जनादेश इस बात का सबूत है कि जनता विकास और स्थिरता चाहती है। महायुति, जिसमें बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल हैं, ने 230 सीटें जीतकर एक मज़बूत सरकार बनाई। राणे का कहना है कि इस जनादेश के सामने विपक्षी गठबंधन, चाहे वह एमवीए हो या राज-उद्धव का संभावित गठबंधन, कोई बड़ा बदलाव नहीं ला सकता।

महायुति में सब कुछ ठीक?

नितेश राणे ने महायुति गठबंधन के भीतर किसी भी तरह की अंदरूनी कलह से इनकार किया। हाल के महीनों में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के बीच तनाव की खबरें सामने आई थीं। कुछ लोग मानते हैं कि शिंदे को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से उनकी नाराज़गी बढ़ी। लेकिन राणे ने इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि फडणवीस, शिंदे और अजित पवार के बीच शानदार तालमेल है। उन्होंने बताया कि तीनों नेता अनुभवी हैं और अपने-अपने तरीके से काम करते हैं। कैबिनेट में कोई असहमति नहीं है, और महायुति एकजुट होकर महाराष्ट्र के विकास के लिए काम कर रही है।

महायुति की एकता का दावा करते हुए राणे ने यह भी कहा कि जनता ने 2024 में इस गठबंधन पर भरोसा जताया है। लाड़ली बहन योजना जैसी योजनाओं ने विशेष रूप से महिलाओं के बीच इस सरकार की लोकप्रियता बढ़ाई। इसके अलावा, शिंदे और फडणवीस ने मराठा आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी एकजुटता दिखाई। राणे का यह बयान महायुति की मज़बूत छवि को और पुख्ता करता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह एकता लंबे समय तक कायम रह पाएगी?

महाराष्ट्र की जनता का नज़रिया

महाराष्ट्र की जनता के लिए सियासत सिर्फ़ नेताओं के बयानों तक सीमित नहीं है। यहाँ के लोग विकास, रोज़गार और सामाजिक समरसता को प्राथमिकता देते हैं। ठाकरे बंधुओं के बीच की दरार और उनके संभावित गठबंधन की खबरें भले ही सियासी हलकों में चर्चा का विषय हों, लेकिन आम जनता के लिए असल सवाल यह है कि कौन सी सरकार उनके हितों को सबसे बेहतर तरीके से पूरा कर सकती है। राणे के बयान ने यह सवाल और गहरा कर दिया है कि क्या पारिवारिक सियासत और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ महाराष्ट्र के विकास के रास्ते में बाधा बन सकती हैं?

महाराष्ट्र की सियासत में छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत हमेशा से एक प्रेरणा रही है। राणे ने अपने बयान में इसका ज़िक्र करते हुए कहा कि यह राज्य शिवाजी महाराज का है, और यहाँ की जनता अपने हितों को सबसे ऊपर रखती है। चाहे ठाकरे बंधु एक हों या अलग, महाराष्ट्र की जनता का ध्यान उन नीतियों और नेताओं पर है जो उनके लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकें।

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