महाराष्ट्र में एक ऐसा विवाद छिड़ा है, जिसने पूरे देश के प्रशासनिक ढांचे को झकझोर कर रख दिया है। यह कहानी है एक ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर की, जिसके कथित फर्जीवाड़े ने न केवल यूपीएससी और डीओपीटी जैसी संस्थाओं को हिला दिया, बल्कि पूरे देश में सिविल सेवाओं की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस पूरे विवाद की शुरुआत हुई एक सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति, वैभव कोकट की एक सोशल मीडिया पोस्ट से। महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले वैभव ने 6 जुलाई को ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट की, जिसने प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचा दी। उनकी इस पोस्ट ने न केवल मीडिया का ध्यान खींचा, बल्कि कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और आरटीआई कार्यकर्ताओं को भी सक्रिय कर दिया।
वैभव की पोस्ट में क्या था ऐसा जो इतना विवादास्पद हो गया? उन्होंने दावा किया कि प्रोबेशनरी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर ने महाराष्ट्र सरकार की वीआईपी नंबर वाली ऑडी कार का इस्तेमाल किया, जो कि नियमों के खिलाफ है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि पुणे के कलेक्टर सुहास दिवासे ने इस मामले में अपर मुख्य सचिव को एक रिपोर्ट भी सौंपी थी, जिसमें पूजा खेडकर पर अपने पद का दुरुपयोग करने और नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था।
प्रोबेशनरी IAS वापरतायेत AUDI कार ?
नियम सांगतो कि खासगी गाडीवर ‘महाराष्ट्र शासन’ अशी पाटी लावणे अयोग्य आहे. पण पुणे जिल्हाधिकारी कार्यालयात प्रोबेशनवर रुजू असणाऱ्या 2022 बॅच IAS डॉ. पूजा खेडकर यांनी VIP नंबर असलेल्या खासगी ऑडी गाडीला महाराष्ट्र शासन असा बोर्ड लाऊन घेतला. शिवाय… pic.twitter.com/DeVq4xpRKY
— Vaibhav Kokat (@ivaibhavk) July 6, 2024
लेकिन यह विवाद यहीं नहीं रुका। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि पूजा खेडकर ने कथित तौर पर नियमों का उल्लंघन कर आईएएस बनने के लिए विकलांगता कोटे का इस्तेमाल किया था। यह खुलासा इतना बड़ा था कि महाराष्ट्र सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी पड़ी। पूजा की ट्रेनिंग रोक दी गई और एक व्यापक जांच शुरू कर दी गई।
इस बीच, यूपीएससी ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया और एफआईआर दर्ज कराई। पूजा खेडकर को नोटिस भेजा गया। लेकिन यहां एक और मोड़ आया। कई वरिष्ठ नौकरशाह इस कार्रवाई से संतुष्ट नहीं थे। उनका मानना था कि इतने गंभीर आरोपों के बाद पूजा को सीधे टर्मिनेट किया जाना चाहिए था।
अब सवाल उठता है कि आखिर वैभव कोकट कौन हैं? वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लिखते हैं। वे खुद को एक सत्यशोधक और सुधारवादी बताते हैं। सोशल मीडिया पर उनकी अच्छी-खासी उपस्थिति है, ‘एक्स’ पर उनके 31 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। पूजा खेडकर विवाद के बाद उन्होंने एक और पोस्ट की, जिसमें उन्होंने लिखा कि एक पोस्ट में बहुत ताकत होती है और हमें साहसपूर्वक सच बोलना चाहिए।
वैभव ने अपनी पोस्ट में एक और महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने लिखा कि पुराने अधिकारी नए अधिकारियों से बेहतर होते थे। उनके अनुसार, आजकल के नए अधिकारी केवल अमीरी और सतही जीवन जीना चाहते हैं। वे सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं और अपने काम को गंभीरता से नहीं लेते। इसके विपरीत, पुराने अधिकारी अपने काम के प्रति अधिक जागरूक और विनम्र होते थे।
यह विवाद कई गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या हमारी प्रशासनिक सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है? क्या भर्ती प्रक्रिया में कोई खामी है जिसका फायदा उठाकर लोग गलत तरीके से प्रवेश पा रहे हैं? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या सोशल मीडिया ऐसे मुद्दों को उजागर करने का एक प्रभावी माध्यम बन गया है?
पूजा खेडकर के मामले ने न केवल प्रशासनिक जगत में हलचल मचा दी है, बल्कि आम जनता में भी इस विषय पर गहन चर्चा छिड़ गई है। यह घटना दर्शाती है कि आज के डिजिटल युग में, एक व्यक्ति की आवाज भी पूरे सिस्टम को हिला सकती है। वैभव कोकट की पहल ने साबित कर दिया है कि सोशल मीडिया की ताकत से सच को उजागर किया जा सकता है और प्रशासनिक सेवाओं में सुधार की मांग की जा सकती है।
अंत में, यह कहना गलत नहीं होगा कि पूजा खेडकर विवाद ने न केवल एक व्यक्ति के कार्यों पर सवाल उठाए हैं, बल्कि पूरी प्रणाली की जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले का क्या परिणाम निकलता है और क्या इसके चलते हमारी प्रशासनिक सेवाओं में कोई बड़ा बदलाव आता है।