महाराष्ट्र के एक कॉलेज में हिजाब, नकाब और बुर्का पर लगाए गए प्रतिबंध ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद लागू किए गए इस बैन के खिलाफ कुछ छात्राओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि यह प्रतिबंध उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और उन्हें शिक्षा से वंचित कर सकता है। इस लेख में जानें इस विवाद की पूरी कहानी और इसके पीछे के कारण।
हिजाब बैन पर बवाल: महाराष्ट्र के छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
महाराष्ट्र के अचरा माराठे कॉलेज में हिजाब बैन (hijab ban) को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद कॉलेज में हिजाब, नकाब और बुर्का पहनने पर रोक लगा दी गई थी। अब इस फैसले के खिलाफ कुछ छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
कॉलेज का ड्रेस कोड और उसका विरोध
मई महीने में कॉलेज ने सभी छात्रों के लिए एक नया ड्रेस कोड जारी किया था। इसमें कहा गया था कि सभी को ‘औपचारिक’ और ‘सभ्य’ कपड़े पहनने होंगे। साथ ही, धार्मिक पोशाक जैसे हिजाब, नकाब और बुर्का पर रोक लगा दी गई। इस फैसले का कई मुस्लिम छात्राओं ने विरोध किया और इसे अदालत में चुनौती दी।
छात्राओं की मुश्किलें
जून के आखिर में कोर्ट के आदेश के बाद, कॉलेज ने न सिर्फ धार्मिक पोशाक पहनने वाले छात्रों को कक्षा से बाहर निकालना शुरू कर दिया, बल्कि जींस और टी-शर्ट पहनने वाले छात्रों को भी बाहर कर दिया। इससे परेशान होकर कई छात्रों ने कॉलेज छोड़कर दूसरे संस्थानों में दाखिला ले लिया।
सुप्रीम कोर्ट में अपील
अब नौ छात्राओं में से तीन ने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। इस याचिका में उन्होंने कहा है कि कॉलेज का ड्रेस कोड मुख्य रूप से मुस्लिम लड़कियों को प्रभावित करता है और उन्हें कक्षाओं में आने से रोकता है। उनका कहना है कि यह उनके साथ अप्रत्यक्ष भेदभाव है।
परिवार और संस्कृति का असर
याचिका में यह भी बताया गया है कि कई छात्राएं ऐसे परिवारों से आती हैं, जहां लड़कियों की पढ़ाई को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। अगर उन्हें धार्मिक पोशाक पहनने की इजाजत नहीं दी गई, तो ज्यादातर को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ सकती है। इससे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के सालों के प्रयास बेकार हो जाएंगे।
ड्रेस कोड का मकसद
छात्राओं का कहना है कि हिजाब बैन (hijab ban) का ड्रेस कोड से कोई लेना-देना नहीं है। ड्रेस कोड का मकसद सिर्फ ‘औपचारिक और सभ्य’ कपड़े पहनना है, जो कि बेतुका और अव्यवहारिक है। यह प्रतिबंध छात्रों की निजी आजादी और फैसला लेने के अधिकार का उल्लंघन करता है।
कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला
याचिका में यह भी कहा गया है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर रोक को सही ठहराया गया था। उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां दो जजों की बेंच ने 2022 में अलग-अलग राय दी थी। यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के सामने लंबित है।
अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला लेता है। क्या हिजाब बैन (hijab ban) जारी रहेगा या फिर छात्राओं को राहत मिलेगी, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।